बुद्ध की शिक्षाएं एवं धर्मोंपदेश मानव जीवन के कल्याणार्थ। इं•भीमराज

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2568वीं त्रिविधपावनी “बुद्ध पूर्णिमा” समारोह का आयोजन धर्मोदय बुद्ध विहार, नयापुरवा पुरनिया, सीतापुर रोड, लखनऊ, में बौद्ध कल्याण संस्थान उत्तर प्रदेश लखनऊ (पंजीकृत) के तत्वावधान में बड़े धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में इंजीनियर भीमराज साहब, अधीक्षण अभियन्ता (से•नि•) ने भगवान बुद्ध के संबंध में बताया कि वैशाख पूर्णिमा (वेसाक्कोमासो) के दिन राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म हुआ, भगवान बुद्ध को वैशाख पूर्णिमा के ही दिन ज्ञान प्राप्त हुआ, वैशाख पूर्णिमा के ही दिन भगवान बुद्ध का 80 वर्ष की आयु में महापरिनिर्वाण हुआ। यह तीनों घटनाएं एक ही दिन, वैशाख पूर्णिमा को हुई थी, इसीलिए इसे त्रिविध पावनी कहते हैं।

संयोग से जिस दिन राजकुमार सिद्धार्थ और राजकुमारी यशोधरा का मंगल परिणय (विवाह) संपन्न हुआ वह दिन भी वैसाख पूर्णिमा का ही दिन था। भगवान बुद्ध ने 45 वर्षों तक अविरल अपने पवित्र धम्म की देशना की। बौद्ध धम्म में जो गुण हैं वे श्रेष्ठ है, सत्य की खोज, उत्कृष्ट नैतिक गुणों की शिक्षा, कारण और कार्य की पारस्परिक अभिन्नता का प्रतीत्यसमुत्पाद चक्र, चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग आदि। इन गुणों के कारण बौद्ध धम्म अतिशीघ्र सर्वत्र प्रचारित हो गया। अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक तथागत ने प्रचार किया, चारिका किया। भगवान धम्मदूत की तरह सर्वत्र विचरण करने लगे थे।

श्रावस्ती और राजगृह उनके धर्म प्रचार के मुख्य स्थान थे। उन्होंने 25 वर्षावास श्रावस्ती में पूरे किये। उन्होंने अपने जीवन के 46 वर्षवासों में से 25 वर्षावास श्रावस्ती में इसलिए बिताएं कि, उन्हें श्रावस्ती की प्राकृतिक छटा सबसे प्रिय अधिक थी। उन्होंने 24 बार राजगृह में आगमन किया। कपिलवस्तु एवं वैशाली भी 6बार गये। इसके अलावा वे अनेक स्थानों पर गये। जैसे-उकट्टा,नादिका,अस्सपुर, घोसिताराम, नालंदा,सूनापरांत आदि स्थान पर भी गये। भगवान प्रचार के लिए ओपसाद, इच्छानंगल, चांडालकप्प, कुशीनगर गये थे। इस तरह वे संपूर्ण बिहार और उत्तर प्रदेश गये थे। उन्होंने पदयात्राएं की थी। यात्रा के समय तथागत तीन चीवर अपने साथ रखते थे। दिन में एक बार भोजन करते थे। प्रातः घर- घर जाकर भिक्खा लेते थे। रात हो जाने पर किसी वृक्ष के नीचे विहार करते थे। बाद में जब उपासकों ने उन्हें विहार बना कर दे दिया, तब वह विहार में निवास और वर्षावास पूरे करने लगे थे। वहां विहार कर वे अनुयायियों को प्रवचन देते थे। भिक्खुओ को देशना करते। जिसके मन में धम्म के बारे में शंका होती, उनकी शंकाओं का समाधान करते। विरोधियों के तर्क का उत्तर देते थे। जिनकी उन पर अगाध श्रद्धा थी, उन्हें वे सुमार्ग दिखाते थे। कार्यक्रम में मुख्य रूप से कल्याण संस्थान के अध्यक्ष, महामंत्री, श्रद्धेय श्यामलाल धनुर्धारी, श्रद्धेया ममता अहिरवार, श्रद्धेय ओम नारायण अहिरवार, श्रद्धेया मंजू राज एवं कल्याण संस्थान के कोषाध्यक्ष श्रद्धेय राम प्रसाद गौतम जी,एवं अन्य सम्मानित अतिथि गण मौजूद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कल्याण संस्थान के अध्यक्ष श्रद्धेय निगम कुमार बौद्ध जी ने किया।