महिला वैज्ञानिकों ने लिखी नई इबारत:कोरोना की वैक्सीन बनाने में महिला शक्ति का दबदबा

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(www.arya-tv.com)वैक्सीन बनाने का अब तक का इतिहास पुरुषों के नाम रहा। लेकिन, कोरोनाकाल में अस्तित्व में आ रही वैक्सीन की नई इबारत लिखने में महिलाओं ने परचम लहराया है। चाहे मॉर्डना हो या फाइजर/बायोएनटेक या नोवावैक्स सभी कंपनियों की वैक्सीन को मूर्त रूप देने में महिला वैज्ञानिकों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।

अमेरिका में वैक्सीन बनाने में जिन महिला वैज्ञानिकों ने रिसर्च की, वे सभी अन्य देशों से अमेरिका आकर बसी हैं। इन वैज्ञानिकों ने एमआरएनए के जरिए वैक्सीन बनाने में सफलता हासिल की। एमआरएनए वैक्सीन शरीर में सेल्स को ऐसा प्रोटीन बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है, जो इम्यून सिस्टम को सक्रिय करता है। एमआरएनए के जरिए वैक्सीन बनाने के पीछे अहम काम कैटलिन कारिको ने किया।

वे हंगरी में पैदा हुई थीं और आरएनए-संबंधी मामलों के शोध के लिए अमेरिका आई थीं। शोध की शुरुआत में उनके करियर में काफी उतार-चढ़ाव आए। शोध के लिए पैसा जुटाना पड़ा, फिर कैंसर से जूझीं, पर लड़ती रहीं। इस दौरान वे ड्रयू विसमैन के साथ काम कर रही थीं। दोनों ने मिलकर वह तरीका निकाला जिससे आरएनए मटैरियल को शरीर में बिना अतिरिक्त इन्फ्लेमेशन के डाला जाए। यह अब तक बड़ी बाधा बना हुआ था।

अब कारिको बायोएनटेक के साथ काम कर रही हैं। यह एक जर्मन स्टार्ट-अप है, जिसे पति-पत्नी ने स्थापित किया था। मॉडर्ना का ट्रायल वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की लीजा ए. जैक्सन के नेतृत्व में किया गया। मॉडर्ना की सह संस्थापक और चेयरमैन नौबार अफेयान लेबनान हैं। इसी तरह नोवावैक्स की वैक्सीन बनाने में भारतवंशी वैज्ञानिक नीता पटेल की भूमिका अहम रही है।

पिता की बीमारी ने चिकित्सा में रुचि जगाई, 32 साल पहले यूएस गई थीं
नोवावैक्स का मुख्यालय मैरीलैंड में है। यह वैक्सीन भी नए आइडिया पर आधारित है। इसमें असामान्य मोथ सेल सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है। नोवावैक्स की टीम का नेतृत्व नीता पटेल ने किया। वे गुजरात से हैं। उनकी वैक्सीन टीम में सभी महिला वैज्ञानिक हैं। नीता गरीब परिवार से हैं। उनके पिता की टीबी से मौत हो गई थी। तब वे 4 साल की थीं। उन्हें बस के किराए के लिए पैसे उधार लेने पड़ते थे। पिता की बीमारी ने ही उनके मन में चिकित्सा के प्रति रुचि जगाई। वे शादी के बाद अमेरिका में बस गई थीं।