प्लास्टिक मुक्त दुनिया का सपना देखने वालों के लिए एक अच्छी खबर,NBRI को म‍िली बड़ी कामयाबी

Environment Lucknow UP

लखनऊ।(www.arya-tv.com) हमारे वातावरण को प्रभीतिक करने में प्लास्टिक का एक बड़ा हाथ है,प्लास्टिक मुक्त दुनिया का सपना देखने वालों के लिए एक अच्छी खबर है। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) ने पेड़ के गोंद से ऐसी बायोप्लास्टिक विकसित की है, जो पूरी तरीके से इकोफ्रेंडली है। सबसे खास बात यह कि सिंथेटिक पॉलीमर से तैयार जिस प्लास्टिक के नष्ट होने में सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं, वहीं बायोप्लास्टिक महज 20 दिन में कंपोस्ट में तब्दील होने की क्षमता रखती है। मिट्टी में मिलने के बाद उसकी पोषक शक्ति को बढ़ाती है।

पानी में भी घुलनशील है। पर्यावरण के साथ-साथ यह जानवरों के लिए भी पूरी तरीके से सुरक्षित है। संस्थान ने नतीजे सफल आने पर इस बायोप्लास्टिक के पेटेंट के लिए आवेदन किया है। संस्थान की विकसित बायोप्लास्टिक में बेंगलुरु, गुजरात की इंडस्ट्री ने जबरदस्त रुचि दिखाई है। जल्द ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की जाएगी। एनबीआरआइ के फाइटोकेमेस्ट्री विभाग में डॉ. मंजूषा श्रीवास्तव ने इस बायोप्लास्टिक को लंबे अनुसंधान के बाद वनस्पति से तैयार किया है। उन्होंने बताया कि मौजूदा कॉमर्शियल प्लास्टिक का कचरा पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या है।

यह 600 वर्ष तक वातावरण में रहता है। किसी तरह नष्ट हो भी जाए मगर अवशेष नहीं मिटते। वह कहती हैं कि कॉमर्शियल प्लास्टिक जलने पर पिघलती है जिससे कार्बन मोनो ऑक्साइड व अन्य काॢसनोजेनिक जहरीली गैस उत्सॢजत होती हैं। वहीं, बाजार में मौजूद कथित बायोप्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल तो है, लेकिन पूरी ईको फ्रेंडली नहीं। इसे भी वातावरण में अपघटित होने में 90 से 180 दिन लगते हैं। उचित तापमान व माइक्रोब्स की जरूरत होती है। डॉ. मंजूषा कहती हैं कि इसी का विकल्प तलाशनेे की कोशिश एनबीआरआइ में अर्से से जारी थी, जिसमें कामयाबी मिल गई है। हमारी ईजाद वनस्पति आधारित बायोप्लास्टिक जलने पर राख में बदल जाती है। उन्होंने दावा किया कि विश्व में वनस्पति आधारित प्लास्टिक पर यह अनूठा शोध है, जो पर्यावरण को बड़ी राहत दिलवा सकता है।

डॉ. मंजूषा ने बताया कि बायोप्लास्टिक तैयार करने के लिए जो गोद पेड़ से आसानी से मिल जाता है। निर्माण की प्रौद्योगिकी भी बहुत आसान है और आॢथक दृष्टि से टिकाऊ बनेगी। वनस्पति आधारित होने के कारण यह पूरी तरीके से प्राकृतिक है। पर्यावरण में पड़े होने पर 20 में खुद कंपोस्ट बन जाती है। साथ ही, इसे बनाने में निकले सह उत्पाद हरित खाद तैयार करे में भी उपयोगी हैं। शोध करने वाली टीम में डॉ. मंजूषा के साथ अंकिता मिश्रा, डॉ. शरद श्रीवास्तव, डॉ. अजय कुमार सिंह रावत शामिल रहे। अब उम्मीद है कि जल्द ही वाटरप्रूफ बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक भी तैयार कर लेंगे। बायोप्लास्टिक पारदर्शी और अपारदर्शी के साथ ही विभिन्न रंगों में भी तैयार हो सकती है। टिकाऊ होने के साथ लचीली भी है, जिसका प्रयोग पैकेजिंग, लेमिनेशन, खाद्य सामग्री की पैकिंग, मेडिसिन, टेक्सटाइल और पेपर इंडस्ट्री में संभव है। फलों की कोटिंग के लिए भी पूर्ण सुरक्षित है। कागज पर कोटिंग करके उसे मजबूती दे सकते हैं। साथ ही इसके कैरी बैग भी तैयार किए जा सकते हैं। फार्मा इंडस्ट्री में कैप्सूल के कवर के लिए भी यह 100 फीसद सुरक्षित है।

विश्व बाजार में स्टार्च, सेल्यूलोज व प्रोटीन आधारित तीन तरह की बायोप्लास्टिक उपलब्ध हैं। इनमें सर्वाधिक प्रचलित कॉर्न व चावल के स्टार्च से बनी बायोप्लास्टिक है, जो मुख्यत? पैकेजिंग में इस्तेमाल होती है। स्टार्च से बनी बायोप्लास्टिक में प्लास्टिसाइजर के रूप में 50 फीसद तक ग्लाइसेरॉल मिलाया जाता है, जो जंतु वसा या तेल से प्राप्त होता है अथवा ग्लूकोज में खमीर पैदा करके तैयार होता है। सेल्यूलोज बायोप्लास्टिक बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में सॉफ्ट वुड की जरूरत होती है ,लेकिन इसे प्राप्त करने में मौजूदा वन नियम आड़े आते हैं। शोध अध्ययन में एलगी आधारित बायोप्लास्टिक तैयार तो की गई है, परंतु कमर्शीयल प्रयोग शुरू नहीं हुआ है। सबसे बड़ी अड़चन कच्चा माल है। भारत में फिलहाल अभी व्यवहारिक प्रौद्योगिकी उपलब्ध ना होने के कारण बायोप्लास्टिक के बाजार का दायरा काफी सीमित है।