डॉ अतुल मोहन सिंह की फेसबुक वॉल से
लखनऊ। प्रभु श्रीराम की साक्षात कृपा है कि भाजपा सत्ता में आई और बनी हुई है। नहीं तो तथाकथित भाजपाई फ़ूफ़ाओं के जैसे महान करम हैं, सत्ता के आसपास भी इसकी पहुंच कभी नहीं होनी चाहिए थी। दशकों से सुप्रीम कोर्ट में लटका मामला, जहां एक वकील (सिब्बल) के कहे से चुनाव से पहले आने वाला फैसला रोक दिया जाता है। उस सेकुलड़ी कोर्ट से फैसला क्या यूं ही निकल आया होगा? क्या वहां साम दाम दण्ड भेद नीति नहीं भिड़ाये गए होंगे, लोगों ने अपने जान और जूते नहीं घिसे होंगे? और हां, इस गलतफहमी से बाहर निकलिए कि इस देश का संविधान हिन्दुओं को भी उतने ही अधिकार देता है जो अपने दुलरूओं को देता है और न्यायघर हिन्दुओं के न्याय के लिए भी वैसी ही प्रतिबद्धता समर्पण रखते हैं।
सौ वर्षों में पूरी एक व्यवस्था ऐसी बनी है जिसमें एक एक पग पर हिन्दू पराधीन है और उस पूरी व्यवस्था को अलट पलट देना केवल मोदी या भाजपा के वश का नहीं है, लेकिन हां, हम यदि उनके साथ मजबूती से खड़े होते हैं,अपना विश्वास उनपर कायम रखते हैं तो अगर वे कभी कहीं किसी मुद्दे को टालना भी चाहेंगे तो सबका विश्वास देख नहीं टाल पाएंगे।
राममन्दिर पर फैसला आया, होंठों पर उंगली रखे हम एक दूसरे को चुप्पी का निर्देश देते रहे कि-नहीं नहीं, चुप रहो, उत्सव उत्साह मत दिखाओ, नहीं तो शांतिप्रियों को बुरा लग जायेगा, उनकी भावनाएं आहत हो जायेंगी और हो सकता है देश सुलग उठे। चलिए ठीक है।
गहरे संस्कार हैं हमारे, जो शत्रु को भी अकारण ठेस नहीं पहुंचाना चाहते, लेकिन आज जब खुल कर उत्सव उत्साह और पर्व मनाने का समय है, गैंग कभी भूमिपूजन के तिथि का तो कभी गेस्ट लिस्ट का। तरह तरह के शिगूफे छोड़ रहा है और हम लोग उछल उछलकर सारे समेट कर फिर से मुंह फुलाने और उनको गरियाने के स्कोप निकाल रहे हैं जिनकी बदौलत आज 500 वर्ष बाद हमने यह दिन पाया है।
5 तारीख की यह तिथि उस दिन से कम महत्वपूर्ण है क्या जब राम के राज्याभिषेक की घोषणा हुई थी?” वास्तविकता तो यह है कि हमें भ्रम है कि हम श्रीराम पर श्रद्धा रखते हैं, क्योंकि यदि यह होता, तो इस अपार सुख उत्साह और उपलब्धि के समय कोई भी तिथि या अतिथि प्रसंग हमारे मन मस्तिष्क को कसैला कर पाता क्या? !!जय श्रीराम!! Ranjana Singh