राष्ट्र गान के वक्त खड़े ना होने पर 11 लोगों की गिरफतारी

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(www.arya-tv.com) ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें राष्ट्रगान के दौरान खड़े न होने को अनादर माना गया है, किसी भी फैसले में कोर्ट ने कभी भी इसे आपराधिक कृत्य नहीं कहा है। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रगान के वक्त खड़ा न होने वाले 11 लोगों की गिरफ़्तारी के साथ ही एक बार फिर से यह सवाल तारी है कि क्या यह गिरफ़्तारी जायज है? राष्ट्रगान के समय एक भारतीय नागरिक के रूप में हमारी क्या जिम्मेदारी है? राष्ट्रगान को लेकर देश में क्या नियम-कानून प्रचलित हैं? हमारा कौन सा कृत्य आपराधिक माना जाएगा और कौन सा असम्मान?

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी दुबे कहते हैं कि भारत में राष्ट्रगान के समय खड़े नहीं होना आपराधिक कृत्य नहीं है। ऐसे में इस मामले में गिरफ़्तारी नहीं हो सकती। यह राष्ट्रगान के सम्मान में ठेस पहुंचाने का प्रकरण हो सकता है। क्योंकि किसी भी प्रोग्राम में राष्ट्रगान बज रहा हो या लोग खड़े होकर राष्ट्रगान गा रहे हों और वहाँ कुछ लोग बैठे रह जाएँ, तो इसे अपमान की श्रेणी में रखा जा सकता है। यह मौके पर मौजूद अफसरों के विवेक पर भी निर्भर है। वे चाहें तो छोड़ सकते हैं और चाहें तो कार्रवाई कर सकते हैं।

राष्ट्रगान में बाधा पहुंचाने पर तीन साल तक की जेल
प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971 का सेक्शन 3 कहता है कि जान बूझकर राष्ट्रगान के बजने के दौरान बाधा पहुँचाने पर तीन साल तक की जेल हो सकती है। संभवतः जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इसी के तहत कार्रवाई की होगी। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51-A(a) देश के सभी नागरिकों को संविधान, राष्ट्रीय प्रतीकों और संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के प्रति प्रतिबद्ध होने को लोगों का दायित्व मानता है। इस तरह किसी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई संभव है, जो इनका असम्मान करते हुए पाए जाएंगे।

हालाँकि, जम्मू-कश्मीर में हुई गिरफ्तारियों में इस्तेमाल की गयी धारा 107 और 151 का राष्ट्रगान के सम्मान से कोई लेना-देना नहीं है। यह सिर्फ शांति भंग की धाराएं हैं।पुलिस इनके तहत कई बार अनेक लोगों के खिलाफ तब कार्रवाई करती है, जब उसे लगने लगे कि अमुक व्यक्ति शांति में खलल डाल सकता है। सामाजिक विद्वेष फैला सकता है। दोनों ही धारा जमानत राहुल गांधी की याचिका निरस्त करते वक्त कोर्ट ने क्यों किया सावरकर का जिक्र?

यह एक ऐसा मामला है जो अदालत में आगे चलकर पलट जाएगा क्योंकि जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 2018 में एक शिक्षक के खिलाफ राष्ट्रगान के समय खड़े न होने के मामले में अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि राष्ट्रगान के समय खड़े न होना आपराधिक कृत्य नहीं है।

यह सिर्फ अनादर का मामला हो सकता है. न्यायाधीश संजीव कुमार की अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा था कि व्यक्ति अगर किसी को राष्ट्रगान गाने से रोकता है या इस तरह के गायन में अशान्ति पैदा करता है तो ही इसे अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है।

  • राष्ट्रगान के समय खड़े रहने या बैठे रहने पर कानून मौन है। यह किसी व्यक्ति की इच्छा है कि राष्ट्रगान के समय वह खड़ा हो या बैठा रहे।
  • पाँच जनवरी, 2015 को भारत सरकार ने एक सामान्य प्रावधान यह किया कि अगर राष्ट्रगान बज रहा हो या गाया जा रहा हो तो उस स्थल पर मौजूद लोगों को सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाना चाहिए।
  • जब राष्ट्रगान किसी डॉक्यूमेंट्री, न्यूज रील में चल रहा हो तो खड़ा होना जरूरी नहीं है क्योंकि इससे व्यवधान पैदा हो सकता है। अफरातफरी भी हो सकती है।
  • राष्ट्रगान के दौरान खड़ा होना उस व्यक्ति की ओर से सम्मान का सूचक है। इस सिलसिले में किसी भी अदालत ने कोई आदेश नहीं दिया है। केंद्र या राज्य सरकारों ने भी कोई आदेश नहीं निकाला है।
  • इस मामले में किसी भी तरह की गड़बड़ी पाए जाने पर सिर्फ और सिर्फ प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971 के तहत ही कार्रवाई संभव है।

राष्ट्रगान से जुड़े कुछ जरूरी तथ्य भी जान लेते हैं।

  • राष्ट्रगान जन गण मन के रचयिता रवींद्र नाथ टैगोर हैं।
  • 27 दिसंबर, 1911 को पहली बार उन्होंने खुद इसे कोलकाता में इसे कांग्रेस के एक अधिवेशन में गाया था।
  • 24 जनवरी 1950 इसे आधिकारिक तौर पर देश का राष्ट्रगान घोषित किया गया।
  • राष्ट्रगान के लिए 52 सेकंड तय हैं, मतलब इसे इतनी ही अवधि में गाया जाना चाहिए।