ब्रिज कोर्स की वजह से भड़के देश भर के डॉक्टर

Health /Sanitation
देशभर के डॉक्टर इस समय हड़ताल पर हैं। स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई है और मरीजों की हालत खराब है। डॉक्टरों की नाराजगी इस बात पर है कि केंद्र सरकार ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) बनाने का प्रस्ताव संसद में पारित करवा लिया है। गुरुवार को यह विधेयक राज्यसभा से भी पारित हो गया।
आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि जब देश में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया थी तो नेशनल मेडिकल कमीशन की जरूरत ही क्यों महसूस हुई। दरअसल, नीति आयोग को एमसीआई की कार्यप्रणाली पर ऐतराज था। आयोग का कहना है कि काउंसिल में डॉक्टरों की लॉबी सक्रिय रहती है, ऐसे में यह अपने मूल मकसद से भटक जाती है।

राज्यसभा में इस विधेयक के पास हो जाने से कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है और अब अगले तीन वर्षों में नेशनल मेडिकल कमीशन का गठन किया जाएगा। आइए जानते हैं कि एमसीआई की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन बिल में ऐसे कौन से नए प्रावधान जोड़े गए हैं जिस कारण आखिर इतना विरोध किया जा रहा है।

नेशनल मेडिकल कमीशन बिल  

  • नेशनल मेडिकल कमीशन बिल तैयार करने वाले नीति आयोग को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की कार्यप्रणाली पर ऐतराज था। एमसीआई में ज्यादातर डॉक्टर चुनाव चाहते हैं जिस कारण डॉक्टरों की लॉबी सक्रिय रहती है और वे मूल मकसद से भटक जाते हैं।
  • इसके मुताबिक, एमसीआई के पास चिकित्सा शिक्षा और डॉक्टरों की प्रैक्टिस जैसे दो बड़े काम नहीं होने चाहिए।
  • 2016 में एमसीआई पर बनी स्टैडिंग कमेटी ने कहा था कि काउंसिल का सारा फोकस कॉलेजों को लाइसेंस देने पर रहता है, जिससे पढ़ाई की बेहतरी और गुणवत्ता प्रभावित होती है।

2017 में भंग हुई थी एमसीआई

केंद्र सरकार ने 2017 में एमसीआई को भंग कर एनएमसी के गठन की तैयारी शुरू कर दी थी। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एमसीआई की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए निगरानी कमेटी बनाई थी। तब निगरानी कमेटी ने स्वास्थ्य मंत्रालय को बताया था कि एमसीआई सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रहा है।

इसके बाद केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर एमसीआई की प्रबंध समिति को भंग कर दिया था। तब से मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया, बोर्ड ऑफ गवर्नेंस के जरिए संचालित हो रहा है।

सरकार का तर्क

  • केंद्र सरकार का कहना है कि नेशनल मेडिकल कमीशन देश में डॉक्टरों की कमी दूर करने में सहायता मिलेगी और दूर-दराज के इलाकों तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने में मदद मिलेगी।
  • प्राइमरी हेल्थ वर्कर्स को छह महीने का मेडिकल कोर्स करके प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिल जाएगा जिससे वे इलाज और दवाई लिख सकेंगे। इससे सबसे ज्यादा फायदा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मिलेगी।
  • ब्रिज कोर्स के जरिए सीमित एलोपैथी प्रैक्टिस का अधिकार सिर्फ उन आयुष डॉक्टरों को मिलेगा जिनके पास प्रैक्टिस का लाइसेंस होगा।
  • बिल में यह भी प्रावधान किया गया है कि बिना लाइसेंस मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को एक साल की जेल और पांच लाख तक का जुर्माना लगाया जाएगा।

छत्तीसगढ़ में सफल रहा है प्रयोग

मध्य प्रदेश से अलग होकर 2001 में बने राज्य छत्तीसगढ़ के हिस्से में उस समय सिर्फ एक मेडिकल कॉलेज आया था और बहुत कम डॉक्टर। ऐसे में स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य की दिशा में सुधार के लिए तीन साल का डिप्लोमा कोर्स शुरू किया था और डिप्लोमाधारकों को ग्रामीण मेडिकल असिस्टेंट के तौर पर भर्ती किया था। नतीजा ये हुआ कि राज्य में ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर सामान्य से ज्यादा काबू पाया गया।

सुधार की कवायद

चिकित्सा क्षेत्र की पूरी प्रणाली को सुधारने के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया है। अब तक एमसीआई के पास दाखिला, चिकित्सा शिक्षा, डॉक्टरों का पंजीकरण जैसे काम होते थे। आयोग बनने के बाद यह सभी काम एनएमसी के पास चले जाएंगे।

नेशनल मेडिकल कमीशन (राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग) का गठन होने के बाद इसके अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी, जो चार वर्ष के लिए चयनित होगा। एक बार अध्यक्ष बनने वाले व्यक्ति को दोबारा नियुक्ति नहीं मिलेगी। जबकि एमसीआई में डॉक्टर ही इसका अध्यक्ष होता था और वह कई बार इस पद पर चुना जा सकता है।

गैर-एमबीबीएस भी दे सकेंगे दवाएं

  • नेशनल मेडिकल बिल के 32वें प्रावधान के तहत कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स (सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) को मरीजों को दवाइयां लिखने और इलाज करने का लाइसेंस दिया जा सकेगा। जबकि इस पर डॉक्टरों को आपत्ति है और उनका मानना है कि इससे मरीजों की जान खतरे में पड़ जाएगी।
  • इस बिल में एक प्रावधान यह भी है कि आयुर्वेद और होम्योपैथी डॉक्टर ब्रिज कोर्स करके एलोपैथिक इलाज कर सकेंगे। डॉक्टरों का कहना है कि इससे नीम-हकीम और झोलाछाप डॉक्टरों को बढ़ावा मिलेगा।
  • नए प्रावधान के अनुसार, पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रैक्टिस शुरू करने के लिए डॉक्टरों को एक टेस्ट पास करना होगा। डॉक्टरों का कहना है कि इस टेस्ट में एक बार नाकाम रहने के बाद दोबारा टेस्ट देने का विकल्प नहीं दिया गया है।