पिछले 3 चुनावों का अजीब ट्रेंड, विधायकी लड़ने वाले CM नहीं बन पाते

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(www.arya-tv.com) यूपी में 23 दिन बाद नया सीएम चुना जाएगा। हमने लखनऊ के 10 लोगों से रैंडमली पूछा, “कौन होगा अगला सीएम” तो दो ही नाम सुनाई पड़े, “योगी आदित्यनाथ या अखिलेश यादव।” लेकिन हम पिछले 3 चुनाव का एक ट्रेंड बता रहे हैं। जो कहता है कि यूपी में पिछले 15 सालों में वो सीएम नहीं बनता, जो विधायकी का चुनाव लड़ता है।

 त्रिभुवन सीएम बने, तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा
1969 में कांग्रेस के चन्द्रभानु गुप्ता की पार्टी में अंदरूनी टूट की वजह से सरकार गिर गई। फरवरी 1970 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए। इस बार भारतीय क्रांति दल के मुखिया चौधरी चरण सिंह ने सरकार बना ली। 18 फरवरी, 1970 को मुख्यमंत्री बने। ये सरकार भी 225 दिन ही चल पाई। बहुमत खो देने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।

सरकार गिरने के बाद 1 अक्टूबर, 1970 को प्रदेश में 17 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। कांग्रेस ने जैसे-तैसे कर समर्थन जुटाया और 18 अक्टूबर 1970 को त्रिभुवन नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया, लेकिन त्रिभुवन सिंह के मुख्यमंत्री बनने पर बड़ा हंगामा हो गया।

दरअसल, त्रिभुवन विधान मंडल के सदस्य नहीं थे। मतलब, विधायकी नहीं लड़े थे। हर शरण वर्मा नाम के एक शख्स ने टीएन सिंह की यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। याचिकाकर्ता ने आर्टिकल 164(4) का हवाल देते हुए तर्क रखा कि विधायिका का सदस्य रहे बिना कोई भी व्यक्ति मंत्री नहीं बन सकता।

टीएन सिंह ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, ‘मुझे चुनाव लड़ने और जीतने के लिए 6 महीने का वक्त मिलना चाहिए। आर्टिकल 164(4) केवल मंत्रियों पर लागू होता है, मुख्यमंत्री पर नहीं।’ सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने संविधान सभा की बहसों, अंग्रेजी प्रथाओं, ऑस्ट्रेलियाई संविधान और 1909 के दक्षिण अफ्रीकी संविधान में इसी तरह के प्रावधानों का हवाला देते हुए निष्कर्ष निकाला कि आर्टिकल 164(4) केवल मंत्रियों पर लागू होता है, मुख्यमंत्री पर नहीं। मुख्यमंत्री को फिर से निर्वाचित होने के लिए 6 महीने का वक्त दिया जाना चाहिए।

त्रिभुवन बिना चुनाव लड़े मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन केवल 167 दिन तक ही सरकार चला सके। दरअसल, 5 महीने बाद हुए उपचुनाव में वो हर गए थे, इसलिए उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

राम नरेश उस समय 3 बार के विधायक
आपातकाल खत्म होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव होने वाले थे। इसलिए यूपी में 30 अप्रैल, 1977 से 23 जून, 1977 तक यानी 54 दिन तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। 1977 में यूपी के विधानसभा चुनाव हुए। जनता पार्टी की सरकार बनी। राम नरेश यादव तीन बार के विधायक रहे मुलायम से भी बड़े नेता माने जाते थे, इसलिए चौधरी चरण सिंह ने उनको मुख्यमंत्री बना दिया।

राम नरेश पहले से ही सांसद थे, लेकिन विधायिका के सदस्य नहीं थे। वो विधायक नहीं बन पाए थे। हालांकि, मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा क्षेत्र निधौलीकलां से उपचुनाव जीत कर विधायक बन गए थे। 27 फरवरी, 1979 को पार्टी में अंदरूनी कलह की वजह से राम नरेश को इस्तीफा देना पड़ा था। वे केवल 1 साल 249 दिन तक ही मुख्यमंत्री पद पर रह पाए।

देश की पहली दलित महिला सीएम ने नहीं लड़ा था विधायकी का चुनाव
3 जून 1997 को जब मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं, तब वे राज्यसभा सांसद थीं। तब के बसपा प्रमुख कांशीराम ने अचानक उन्हें अपना उत्तराधिकारी बताते हुए मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी थी। हालांकि, वे इस पद पर केवल 137 दिन तक ही रह पाईं, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था।

मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार थे, आखिर में आलाकमान ने योगी के नाम पर मुहर लगाई
योगी 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रमुख प्रचारक थे। गोरखपुर से सांसद थे, लेकिन विधायकी का चुनाव नहीं लड़े थे। बहुमत मिलते ही भाजपा आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए योगी आदित्यनाथ के नाम की घोषणा कर दी।