गोमती नदी की सफाई और पौधे लगाकर मनाया गया विश्व पर्यावरण दिवस:नगर आयुक्त

Environment Lucknow
  • गोमती नदी की सफाई और पौधे लगाकर मनाया गया विश्व पर्यावरण दिवस:नगर आयुक्त
  • कुड़िया घाट पर गोमती नदी के सफाई अभियान के अंतर्गत नदी में एकत्रित जलकुम्मी को अभियान चलाकर हटाया गया
  • कान्हा उपवन में मियाकी पद्धति से 450 पौधों का रोपण भी किया गया

(www.arya-tv.com)नगर निगम के आयुक्त डॉ.इन्द्रम​णि त्रिपाठी ने बताया कि विश्व पर्यावरण दिवस पर नगर निगम के ओर से दो कार्यक्रम चलाये गये जिसमें सुबह के समय पर्यावरण को साफ—सुथरा रखने के लिए कुड़िया घाट पर गोमती नदी के सफाई अभियान के अंतर्गत नदी में एकत्रित जलकुम्मी को अभियान चलाकर हटाया गया। जिसमें महापौर के साथ अधिकारियों और कर्मचारियों ने भाग लिया। इसके साथ ही सरोजनी नगर स्थित कान्हा उपवन में मियाकी पद्धति से 450 पौधों का रोपण भी किया गया। जिसमें मण्डलायुक्त मुकेश महापौर, डीएम ने भाग लिया।

नगर आयुक्त डाॅ. इन्द्रमणि त्रिपाठी और महापौर के नेतृत्व में कुड़िया घाट पर गोमती नदी के सफाई अभियान के अंतर्गत नदी में एकत्रित जलकुम्मी को अभियान चलाकर हटाया गया। इस अभियान में नगर निगम की टीम द्वारा सहयोग किया गया जिसमें अपर नगर आयुक्त अमित कुमार, नगर स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. एस.के. रावत, जोनल अधिकारी, जोन-6 श्रीमती अम्बी बिष्ट, नगर अभियंता एस.एफ.ए. जैदी अन्य अधिकारीगण द्वारा सहयोग किया गया।

  • इसके साथ ही वृक्षारोपण कार्यक्रम में कान्हा उपवन के 200 वर्गमीटर भू-भाग को मियावाकी पद्धति से तैयार कर देशी प्रजातियों के 425 विभिन्न पौधे जैसे आंवला, इमली, अमरुद, नीम, केसिया, कनेर, तुलसी एवं लेमनग्रास इत्यादि पौधे रोपित किए गए।

अवगत कराया गया कि मियावाकी पद्धति के प्रणेता जापानी वनस्पति वैज्ञानिक श्री अकीरा मियावाकी है। इस पद्धति से बहुत कम समय में जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है। इस योजना ने घरों के आगे अथवा पीछे खाली पड़े स्थान को छोटो बागानों में बदलकर शहरी वनीकरण की अवधारणा में क्रांति ला दी है। इस पद्धति में देशी प्रजाति के पौधे एक दूसरे के समीप लगाए जाते है, जो कम स्थान घेरने के साथ ही अन्य पौधों की वृद्धि में भी सहायक होते है। सघनता की वजह से यह पौधे सूर्य की रौशनी को धरती पर आने से रोकते है, जिससे धरती पर खरपतवार उग नहीं पाता है। तीन वर्षो के पश्चात इन पौधों को देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है। पौधे की वृद्धि 10 गुना तेजी से होती है जिसके परिणामस्वरूप वृक्षारोपण सामान्य स्थिति से 30 गुना अधिक सघन होता है। जंगलों को पारंपरिक विधि से उगने में लगभग 200 से 300 वर्षो का समय लगता है, जबकि मियावाकी पद्धति से उन्हें केवल 20 से 30 वर्षो में ही उगाया जा सकता है।