राममंदिर वाली सीट पर भी लड़ाई फंसी, भाजपा का दांव-योगी को ही प्रत्याशी समझिए

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(www.arya-tv.com)राम के पैदा होने, उनकी लीला और मोक्ष की साक्षी रही हैं सरयू नदी। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक.. भगवान राम ने इसी नदी में जल समाधि ली थी। खूबसूरत… कलकल बहते पानी पर मानो आंखें ठहरे ही नहीं। अचानक सवाल कौंधा? अब भी सरयू का पानी का ऐसा प्रवाह? जवाब थोड़ा निराश करने वाला। दरअसल, सुंदरता के लिए सरयू से अलग ये एक नहर की तरह है। कुछ वैसा ही छलावा, जैसे चुनाव में भी दिखाई दे रहा। अयोध्या में आने से पहले और जाने के समय में चुनाव के देखने का नजरिया और गणित दोनों ही बदल गया। सरयू के पानी में सियासत की माया भी मिली और राम भी।

जय श्रीराम के नारे में समझिए, चुनाव किधर जा रहा

रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने अवध और सरयू नदी पर लिखा है कि अवधपुरी मम पुरी सुहावनि, दक्षिण दिश बह सरयू पावनि…। अर्थात अयोध्या नगरी की प्रमुख पहचान ही सरयू नदी रही है। राम को भी सरयू बहुत प्रिय रही है। सुहावन तो ये नहर भी लेकिन ये तो नकली है। कुछ वैसा ही जैसा माहौल अयोध्या में दिखाया जा रहा है या यूं कहे कि पहली नजर में दिखाई देता है।

2 बजे रामलला के दर्शन के लिए जब निकले तो पूरे रास्ते में जय श्री राम के नारे में ये समझना मुश्किल नहीं लगा कि चुनाव किधर जा रहा? फिर खुद में सवाल कि कहीं ये सरयू के पानी की तरह छलावा तो नहीं? खैर आगे बढ़े और जब रामलला के सामने पहुंचे तो आंखों में आंसू आ गए। सालों से दर्शन की आस पूरी हुई थी। आसपास कहने वालों की कमी नहीं थी कि रामलला का वैभव देखिए, इन्हें सैकड़ों साल टेंट में रहना पड़ा। जिम्मेदारों को तो गोली मार देनी चाहिए?

बात सौ टके सही लगी। दर्शन के बाद बाहर निकले तो चर्चाओं की एक अलग दुनिया मानो प्रतीक्षा कर रही थी। चुनाव गणित की बहस। कौन सी जाति किसके साथ? बहस इस पर भी कि कौन सी पार्टी आएगी तो राम मंदिर का काम रुकेगा और किसके आने से ये और भव्य बनेगा। भाजपा के पास हर सवाल का जवाब है तो बस मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। कहते हैं- उम्मीदवार से क्या करना है। योगी जी मंदिर भी बनवाएंगे और भव्य अयोध्या भी बसाएंगे। बस उनका चेहरा देखिए या कमल का फूल।

अरे ये सरयू तो चुनावी छलावा है…

जैसे जैसे राममंदिर से आगे बढ़ते हैं, जय श्री राम से बात रोजी-रोटी पर आ जाती है। दुकानों को तोड़ने से लेकर छोटे-छोटे मंदिर के अस्तित्व के खत्म होने तक की बात ऐसे होती है, मानो मुख्य राम मंदिर से इनका कोई वास्ता ही नहीं। बाहर की सीटों पर तो जय श्री राम के नारे और कम सुनाई देते हैं। वह भी तब जब मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी भी वहां आने वाले थे। चुनाव की तैयारी से अबतक योगी ने अयोध्या आगमन का अर्द्धशतक तो पूरा कर ही लिया है। यहां तो उनके खुद के भी चुनाव लड़ने की संभावना थी। फिर ऐन मौके पर उन्होंने गोरखपुर से ही खड़ा होना बेहतर समझा। लेकिन अयोध्या की इस सीट की जीत हार हर हाल में योगी की जीत हार से जोड़कर ही देखी जाएगी।

आंखों के रास्ते बाहर निकलने को बेताब हो उठी

खैर हम लखनऊ लौटने से पहले टीवी पर खूबसूरत दिखाए जाने वाले सरयू तट पर पहुंचे। मन में आस्था की धारा ऐसी उठी कि आंखों के रास्ते बाहर निकलने को बेताब हो उठी। जीवन भर का ज्ञान सामने आने लगा। ये सोचकर कि इसी सरयू नदी में श्रीराम ने जल समाधि ले ली थी… ॐ का उच्चारण करते हुए राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न ने भी जल समाधि ली थी, मन किया कि उसमें एक बार तो डुबकी लगानी ही चाहिए। कई लोग डुबकी लगा भी रहे थे। लेकिन पानी से आचमन करते वक्त महक ने बता दिया कि यह बहता हुआ पानी नहीं। ये हमें दिखाने के लिए बनाए गए किसी स्विमिंग पूल की तरह ही है। असली सरयू के लिए हमें दिख रहे बांध के उस पार जाना था।

असली सरयू के लिए हमें दिख रहे बांध के उस पार जाना था

आपकी तरह हमारे पास भी समय नहीं था। हम तो चुनाव का हाल जानने गए थे। पता चल गया था। लौटना था। लौट आए। रास्ते में सोचते हुए कि कहीं हमारी तरह वोटर भी तो हकीकत जानता है, लेकिन वहां तक जाने देखने का उसके पास भी समय नहीं। जो पास आया, जिसने वोटर पर्ची दी… उसको वोट। यानी पूरा चुनाव मैनेजमेंट का खेल। 10 को रामनगरी बताएगी कि असली सरयू तक कौन-कौन पहुंचा? और किसे सियासत के राम मिले?