(www.arya-tv.com) लखनऊ. कभी दलित राजनीति की अगुवाई करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती मौजूदा समय में न सिर्फ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं, बल्कि अपने उत्तराधिकारी और पार्टी को फिर से उसी मुकाम पर ले जाने की जद्दोजहद में जुटीं हैं, जहां से कांशीराम ने उन्हें कमान सौंपी थी. 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल कर सरकार बनाने वाली मायावती 2024 में सियासी हाशिए पर खड़ी हैं. 2012, 2014, 2017, 2019, 2022 और अब 2024 के आम चुनावों में पार्टी को बुरी शिकस्त का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं पार्टी का जनाधार भी खिसक कर 10 फीसदी के नीचे आ चुका है. यही वजह है कि मायावती एक बार फिर नए सिरे से पार्टी को मजबूत करने में जुटी हैं.
हरियाणा विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद अब पार्टी महाराष्ट्र और झारखण्ड के साथ ही उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा चुनाव भी अकेले लड़ रही है. वैसे तो बसपा का इतिहास उपचुनाव से दूरी का ही रहा है, लेकिन इसे सियासी मजबूरी कहें या फिर अस्तित्व बचाने की लड़ाई, इस बार मायवती ने यूपी की सभी 9 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. इतना ही नहीं मायावती ने अपनेउ त्तराधिकारी आकाश आनंद को महाराष्ट्र और झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया है तो यूपी उपचुनाव में सतीश चंद्र मिश्रा को स्टार प्रचारकों में आकाश आनंद से ऊपर रखकर नया सियासी दांव भी चला है. मायावती के इस दो दां
मायावती की उलझन लाजमी
दरअसल, मायावती की सियासी उलझन लाजमी भी है. पार्टी का गिरता जनाधार और परंपरागत दलित वोट बैंक में सेंधमारी के अलावा अपने उत्तराधिकारी आकाश आनंद के नेतृत्व क्षमता को बचाना भी मायावती की मजबूरी है. यही वजह है कि यूपी उपचुनाव में स्टारप्रचारकों की लिस्ट में मायावती के बाद सतीश चंद्र मिश्रा को जगह दिया गया है. उसके बाद तीसरे नंबर पर आकाश आनंद है. इसके दो मायने हैं, पहला यह कि यूपी उपचुनाव में मायावती सतीश चंद्र मिश्रा के साथ खुद कमान संभालना चाहती हैं. ताकि अगर उपचुनाव में पार्टी हारती है तो विफलता का श्रेय आकाश आनंद पर न जाए. इसके अलावा ब्राह्मण समाज को सन्देश देना चाहती है कि बसपा उन्हें तवज्जो दे रही है और पार्टी में उनका सम्मान है.व को लेकर सियासी सुगबुगाहट भी शुरू हो गई है. मायावती के इस कदम को लेकर राजनीतिक पंडित अलग- अलग कयास लगा रहे हैं.