अयोध्या में श्री राम के मंदिर के साथ जन्म​स्थली भी है : चम्पतराय विहिप

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  • अयोध्या में श्री राम के मंदिर के साथ जन्म​स्थली भी है : चम्पतराय विहिप
  • विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को फेसबुक पर संबोधित किया
  • श्री राम जन्म भूमि का इतिहास विषय पर जानकारी
  • देश के युवाओं को राम मंदिर के संर्घष की सही जानकारी आवश्यक

(www.arya-tv.com)देश में कोरोना संक्रमण काल के चलते विहिप के केन्द्रीय उपाध्यक्ष और श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महामन्त्री चम्पतराय द्वारा फेसबुक पर विश्व हिन्दू और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को राम जन्म भूमि का इतिहास विषय पर विशेष जानकारी उपलब्ध करायी गयी। इस लाइव प्रसारण में हजारों कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। श्री राय ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा हमारे देश के युवा जब 18 वर्ष के हो जायेंगे जो बड़े होकर उनको राम जन्म भूमि को पाने की असली कहानी जरूर पता होनी चाहिए इसी उद्देश्य के साथ श्री राय ने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। श्री राय ने कहा कि राम जन्म भूमि क्षेत्र अयोध्या में एक छोटा सा मोहल्ला है जिसका नाम रामकोट है कोट का अर्थ होता है किला,पूर्व में कोई न किला रहा होगा। पर फिलहाल इस स्थान पर दशरथ,सीता रसोई,कोप भवन के साथ भगवान श्रीराम के जीवन प्रसंग से जुड़े तमाम स्थल हैं।

भारत के इतिहास से लेकर इस स्थान का निर्णय होने तक जिस स्थान को लेकर विवाद रहा है उस स्थान की माप मात्र 1500 वर्गगज है। जिसको लेकर 9 नवम्बर 2019 को माननीय सुप्रीमकोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया था। श्री राय ने पूर्व की बातों को बताते हुए कहा कि वर्ष 1992 से पहले इस स्थान पर एक ऐसा ढाचा था जिसमें 3 गुम्मद थे और दिखने में म​स्जिद जैसा लगता था। इ​तिहास की बात करें तो 1528 में बाबर ने इस स्थान पर बने मंदिर को गिरा कर इसी का मलवा इस्तेमाल करके इन तीन गोल गुम्मदों को निर्माण कराया था। इतिहास बताता है कि इस मंदिर के तोड़े जाने के बाद लगातार 15 दिनों तक वहां के लोगों ने बाबर के सैनिकों से लड़ाई लड़ी पर लगातार हार का सामना करना पड़ा। पर इस स्थान पर सबसे महत्वपूर्ण बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि इस स्थान पर कहीं भी पानी का स्रोत नहीं था और न ही वजू करने का कोई स्थान था, इससे इस बात की पुष्टि हो जाती है कि यह सिर्फ मस्जिद जैसा था न कि मस्जिद था क्योंकि अगर इस स्थान पर मस्जिद होता तो वजू और पानी का कोई स्रोत जरूर होता।

इतिहास की बात करें तो हमारा हिन्दू समाज लगातार अपने भगवान श्रीराम की जन्मभूमि को पाने के लिए संघर्ष करता रहा है अपनी जान की आहूती देता रहा। इस स्थान को पाने के लिए एक तरफ बाबर की विशाल सेना थी तो दूसरी ओर हमोर हिन्दू समाज के साधू—संत और नागा बाबा थे जो अपनी हिम्मत के दम पर इस स्थान को पाने के लिए संघर्ष करते रहे कभी भी हार नहीं मानी। इतिहास की बात करें तो 1528 से लेकर 1949 तक लगातार इस स्थान को पाने के लिए हमारे हिन्दू भाईयों ने 75 बार लड़ाई लड़ी और कभी हार नहीं मानी। भारत की आजादी के बाद जहां लगातार अंग्रेजी हूकूमत में लगाये गये विक्टोरिया की मूर्तियों हटाने का जोरदार प्रयास किया उसी समय इंडिया गेट पर से भी लगी विक्टोरिया की मूर्ति को अयोध्या के एक लड़के ने ही पहले नाक तोड़ कर फिर अन्य द्वारा गिराया गया।

इस तहर लगातार संर्घर्ष करने के बाद मामला जब विभिन्न न्यायालयों से होते हुए सुप्रीमकोर्ट पहुंचा तो तीन जजों की बेंच ने आखिरकार हिन्दू समाज के पक्ष में निर्णय लिया और मुस्लिम समाज को भी अयोध्या से बाहर 5 एकड़ जमीन देकर ऐतिहासिक निर्णय दिया जो हमेशा एक मिशाल के दौर पर याद किया जायेगा। इस तरीके से अगर देखा जाए तो अपने इस श्री राम जन्म भूमि के स्थान को पाने के लिए हमारे लाखों हिन्दू भाईयों ने बहुत ही मेहनत के बाद प्राप्त किया है। इसके बाद भारत सरकार के द्वरा इस स्थान को श्रीराम जन्म भूमि ट्रस्ट का नाम दिया गया। जिसमें भारत सरकार के द्वारा 1 रूपये देकर इसका इस ट्रस्ट का आरम्भ किया गया।