वीरान वैटलेंड तो आकाश चूमने वाले पक्षियों की तरह उनका हौसला भरने लगा उड़ान

Agra Zone

आगरा (www.arya-tv.com) बागों में कोयल की आवाज और घर में चिड़ियों की चहचहाट से नीद खुलाना पुरानी बात भले ही हो गई है, पर लोगों के हृदय में बसा परिंदों का प्रेम आज भी कायम है। पक्षी प्रमियों ने खेत-खलिहान विचरण कर वीरान वैटलेंड ढूंढे। तो आकाश चूमने वाले पक्षियों की तरह उनका हौसला उड़ान भरने लगा। इसलिए उन्होंने जमीन पर परिंदे बुलाने के लिए संघर्ष शुरू कर दिया।

ताजनगरी की बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के गठन को ज्यादा वक्त तो नहीं हुआ, पर सोसायटी के अध्यक्ष डा. केपी सिंह के अंदर बचपन से ही पक्षियों के कलरव की गूंज बसी हैं। उन्होंने जूलाजी बाटनी से एमएससी करके वर्ष 2013-14 में रूरल मैनेजमेंट विषय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। फिर सोसायटी के सदस्यों के सहयोग से आगरा-मथुरा में वैटलेंड बचाने की मुहीम शुरू की और करीब एक दर्जन ऐसे वैटलेंड पर काम शुरू किया है, जिनमें अप्रवासी और प्रवासी पक्षियों का बसेरा होने लगा। मथुरा के गांव पिपरोट में नानी के घर आते-जाते जोधपुर झाल को देखा। तो वहां शिकारी पक्षियों को निशाना बना रहे थे। तभी से जोधपुर झाल का संरक्षण शुरू कर दिया। चार वर्ष से शिकारियों पर लगाम लगी ही है, बल्कि जनवरी में पहली बार इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर (आइयूसीएन) के रिकार्ड में जोधपुर झाल के पक्षियों की संख्या दर्ज हुई है।

यहां बढ़ने लगे पक्षी

डा. केपी सिंह ने सोसायटी के साथ मिलकर छाता-बरसाना के बीच खायरा गांव, कोसी के पास कोखला वन, नगला अबुआ और सौनोट, अकोला और कागारौल के बीच में खारी नदी के पास वैटलेंड सहित करीब एक दर्जन वैटलेंड को बचाना शुरू किया। सिंह बताते हैं कि शुरुआती दौर में इन वैटलैंड में एक-दो पक्षियों को देखा था। अब अप्रवासी और प्रवासी पक्षी भी यहां पहुंचते हैं।

घना पक्षी विहार से पनपा प्रेम

डा. केपी सिंह बताते है कि उनके पिता करन सिंह गोवर्धन के गांव जुनसुटी के मूल निवासी हैं, लेकिन भरतपुर के डींग में बुआ के घर पर ही उनके पिता की शिक्षा पूरी हुई औैर रक्षा विभाग में नौकरी लग गई। उनका पूरा परिवार भरतपुर में ही रहने लगा। इस बीच डा. केपी सिंह घर आने वाले रिश्तेदारों को घना पक्षी विहार घुमाने ले जाते थे। बस वहीं से पक्षियों के प्रति प्रेम पनपता चला गया। वर्ष 1985 में उनके पिता का आगरा में तबादला हो गया। इसलिए डा. केपी सिंह की ज्यादातर शिक्षा आगरा में ही पूरी हुई। अब वे वैटलेंड संरक्षण के साथ-साथ ही शोधार्थियों को गाइड करते हैं।