क्या खूब कहा सुरेश वाडेकर ने, पति प​त्नी के बीच कभी कोई प्रतियोगिता नही होती

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(www.arya-tv.com) ‘लगी आज सावन की’, ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद’ जैसे कई सुपरहिट गाने गा चुके गायक सुरेश वाडकर इन दिनों भजन गायन में भी सक्रिय हैं। गणपति उत्सव के मौके पर ‘गजमुखा’ गीत के रिलीज के साथ उन्होंने दूसरी पारी आरंभ की। संगीत की दुनिया में आ रहे बदलावों व अन्य मुद्दों पर उन्होंने प्रियंका सिंह के साथ साझा किए अपने जज्बात…

बीते दिनों रिलीज हुए आपके गीत ‘गजमुखा’ में आप नजर भी आ रहे हैं जबकि एक्टिंग करने के लिए पहले किसी अभिनेता को गाने में ले लिया जाता था। क्या बदलते वक्त के साथ खुद में बदलाव ला रहे हैं?

हां, लेकिन मेरे मन में कहीं न कहीं यह बात थी कि क्या मुझे गाने में खुद नजर आना चाहिए। मेरे शागिर्द श्रेयस पुराणिक ने इस गाने का मुखड़ा बनाया था। उन्होंने मेरी पत्नी पद्मा को सुनाया, उनको गाना पसंद आया। पद्मा की सलाह पर कैमरा के सामने शाट्स दिए तो अच्छा लगा। बदलाव अच्छा है। खाली गाना सुनें और चेहरा भूल जाएं, यह बात भी ठीक नहीं है।

क्या आपको लगता है कि इतने सारे हिट गीत गाने के बाद कोई आपका चेहरा भूलेगा?

कहा जाता है न कि ‘आउट आफ साइट आउट आफ माइंड’। अगर गाने में मैं नजर आऊंगा, तो लोगों को याद रखने में आसानी हो जाएगी।

आपकी पत्नी खुद शास्त्रीय गायिका हैं। ऐसे में क्या आप लोगों के बीच कोई प्रतियोगिता होती है या यह फिल्मी बातें होती हैं?

मैं यह नहीं कहता कि अगर पति-पत्नी एक ही क्षेत्र से हैं तो उनके बीच कोई प्रतियोगिता नहीं होती होगी, लेकिन हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है। उनमें मेरे लिए एक अलग सम्मान का भाव है। वह बहुत अच्छा गाती हैं। ‘गजमुखा’ गाने में भी उन्होंने भी गाया है। कई बार वह भी मुझे अपने सोलो गाने में शामिल कर लेती हैं।

पहले एक टेक में पूरा गाना रिकार्ड होता था, क्या आज के गायक उस फार्मेट में काम कर पाएंगे?

पहले हमारा जो रिकार्डिंग सिस्टम था, उसमें गाना रिकार्ड होने से पहले तीन-चार बार संगीतकार के साथ रिहर्सल होती थी। जब हम माइक पर जाते थे, तो पूरा गाना याद रहता था। गाने को लेकर संगीतकार का जो कांसेप्ट होता था, उसके मुताबिक रिहर्सल होती थी। पुराने वक्त में निर्देशक आकर बताते थे कि किस सीन के बाद वह गाना आने वाला है।

फिल्म में खास स्थिति पर बने गानों में लोग खुद को देखते थे, इसलिए वे याद रह जाते थे। अब के गानों को ऐसा रखा जाता है, जिसमें म्यूजिशियन को बीच में आराम मिले। पहले गाने में गायक को बीच में सांस लेने के लिए म्यूजिशियन का इस्तेमाल होता था। अब सारा सिस्टम ही बदल गया है। तकनीक की वजह से गाना अच्छा जरूर बन जाता है, लेकिन उसकी आत्मा कम हो जाती है।

गायन के पेशे में अपनी कम उम्र के संगीतकारों से निर्देश लेना क्या इस पेशे की डिमांड है या इसे आप प्रोफेशनलिज्म कहेंगे?

मैं इसे प्रोफेशनलिज्म ही कहूंगा, मेरे लिए मायने भी यही रखता है, लेकिन कई बार कुछ बातें मुझे सही नहीं लगती हैं, खासकर तब जब कोई संगीतकार अपने असिस्टेंट को भेजकर गाना रिकार्ड करवाता है। फिर वह गाना सुनकर उसमें से खामियां निकालता है। यह तो प्रोफेशनलिज्म नहीं हुआ। इससे गाने की ताजगी निकल जाती है। आपका गाना है तो आपको हाजिर रहना चाहिए, जो भी हमसे करवाना है, वह रिकार्डिंग के वक्त मौजूद रहकर करवाएं।

जो विद्यार्थी आपसे गाना सीख रहे हैं, उन्हे बतौर गुरु आप क्या शिक्षा देते हैं?

पहली शिक्षा तो यही देता हूं कि सुर कैसे लगाना है। सुर का अभ्यास सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर ‘सा’ का भरपूर रियाज करेंगे, तो सुरीले बन जाएंगे। ‘सा’ ही मूल है। कोई भी सुर ‘सा’ समझकर गा लिया जाए, तो आपके गाने में वह चमक आएगी, जो और किसी के गाने में नहीं आएगी।