(www.ary-tv.com) ‘शादी, उत्सव या हो त्योहार लिज्जत पापड़ हो हर बार… कर्रम कुर्रम – कुर्रम कर्रम…।’ बचपन में आपने भी ये जिंगल सुना होगा। उस वक्त यह एड बच्चे-बड़े सबकी जुबां पर था। विज्ञापन के साथ-साथ पापड़ का स्वाद भी लोगों को खूब भाया। उस दौर में पापड़ मतलब लिज्जत (Lijjat) बन चुका था।
आज भी अगर आप पापड़ लेने दुकान जाते हैं तो आपके मुंह से सबसे पहला नाम लिज्जत का ही निकलता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि करोड़ों की कंपनी लिज्जत की शुरुआत महज 80 रुपये के निवेश से हुई थी।
7 सहेलियों ने रखी थी नींव
गुजरात की रहने वाली सात महिलाओं ने अपने खाली वक्त को काटने के लिए कुछ ऐसा किया, जिसके नतीजे के बारे में किसी ने अंदाजा नहीं लगाया था। बात है साल 1959 की। मुंबई के गिरगांव में रहने वाली 7 सहेलियों जसवंती बेन, पार्वतीबेन रामदास ठोदानी, उजमबेन नरानदास कुण्डलिया, बानुबेन तन्ना, लागुबेन अमृतलाल गोकानी, जयाबेन विठलानी ने दिन के समय खाली वक्त में कुछ काम करने का फैसला किया।
उन्होंने तय किया कि वो घर की छत पर पापड़ बनाकर बेचने का काम करेंगी। उनकी मदद पुरुषोत्तम दामोदर दत्तानी ने की। अपनों से ही 80 रुपये उधार लेकर उन्होंने उड़द की दाल, हींग ,मसाले आदि खरीदें और घर की छत पर पापड़ बनाने का काम शुरू कर दिया।
पहली कमाई 50 पैसे
पहले दिन उन लोगों ने पापड़ के कुल 5 पैकेट बनाए। उसे बाजार में बेचा तो कमाई महज 50 पैसे की हुई। 1959 में यह आठ आना कहलाता था। उस समय आठ आना भी बड़ी रकम हुआ करती थी। पहली कमाई ने सातों सहेलियों में उत्साह भर दिया। इसके बाद मुनाफा धीरे-धीरे एक रुपया, 10 रुपये, 100 रुपये और 6,000 रुपये तक पहुंच गया। साल 1959 में लिज्जत पापड़ ने 6,000 रुपये की कमाई की।
उन्होंने इन पैसों का इस्तेमाल मार्केटिंग या विज्ञापन करने के बजाए पापड़ की गुणवत्ता को और सुधारने में किया। धीरे-धीरे काम बढ़ा, लोग जुड़ने लगे। जिसके बाद उन्होंने को-ऑपरेटिव सोसाइटी रजिस्टर करवा लिया। यही सोसाइटी लिज्जत पापड़ का पूरा संचालन करती है। साल 1962 में संस्था का नाम ‘श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़’ रखा गया।
45,000 महिलाओं को मिला काम
आज लिज्जत पापड़ के साथ 45 हजार से अधिक महिलाएं जुड़ी है, जो कंपनी में अपनी-अपनी भूमिका निभा रही हैं। संस्था में हर कोई एक दूसरे को ‘बहन’ कहकर संबोधित करते हैं। यहां सुबह साढ़े 4 बजे से काम शुरू हो जाता है। देशभर में 60 से ज्यादा सेंटर हैं, जहां पापड़ बनाया जाता है, लेकिन खास बात की हर जगह का स्वाद एक जैसा होता है।
साल 2002 के दौरान लिज्जत पापड़ ने 300 अरब डॉलर का रेवेन्यू जेनरेट किया था। 40 हजार से अधिक कर्मचारी यहां काम करते हैं। देशभर में 62 डिवीजन और सेंटर्स हैं। साल 2022 में इसका नेटवर्थ 1,600 करोड़ रुपये रहा। अब तक लिज्जत के नाम से 5.5 अरब पापड़ बेचे जा चुके हैं।