कोरोना की दूसरी लहर में केस बढ़े तो रेमडेसिविर का संकट भी बढ़ा; भारत में रोज बन सकते हैं 1.3 लाख डोज

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(www.arya-tv.com)भारत ने कोरोना के गंभीर मामलों में इस्तेमाल होने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन के एक्सपोर्ट पर पाबंदी लगा दी है। इसके बाद भी हालात ठीक नहीं हैं। मुंबई-दिल्ली ही नहीं, देश की हर राज्य सरकार को इस एंटी-वायरल दवा की आपात व्यवस्थाएं करनी पड़ रही हैं। दरअसल, इस समय देश में 7 कंपनियां इस दवा को बना रही हैं, जिनकी हर महीने 39 लाख शीशियां यानी रोज 1.30 लाख डोज बनाने की क्षमता है। जबकि डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है।

केंद्र ने बुधवार देर शाम रेमडेसिविर इंजेक्शन की कीमत 3500 रुपए तय की है। यह भी कहा कि अप्रैल के आखिर तक इनका उत्पादन भी दोगुना हो जाएगा। इसके लिए 6 और कंपनियों को इसके उत्पादन की मंजूरी दे दी गई है। फिलहाल, देश में हर महीने 38.80 लाख इंजेक्शन तैयार किए जा रहे हैं। इस महीने के आखिर तक करीब 80 लाख इंजेक्शन तैयार होंगे। मंत्रालय के मुताबिक, देश में इस वक्त रेमडेसिविर इंजेक्शन के कुल 7 मैन्यूफेक्चरर्स हैं। अब 6 और कंपनियों को इसके उत्पादन की मंजूरी दी गई है। इससे 10 लाख इंजेक्शन हर महीने और बनाए जा सकेंगे। इसके अलावा 30 लाख यूनिट और बनाए जाने की तैयारियां आखिरी दौर में हैं।

आइए, समझते हैं कि रेमडेसिविर और इससे जुड़े संकट को?

रेमडेसिविर क्या है?

रेमडेसिविर एक एंटी-वायरल दवा है, जो कथित तौर पर वायरस के बढ़ने को रोकती है। 2009 में अमेरिका के गिलीड साइंसेस ने हेपेटाइटिस सी का इलाज करने के लिए इसे बनाया था। 2014 तक इस पर रिसर्च चला और तब इबोला के इलाज में इसका इस्तेमाल हुआ। रेमडेसिविर का इस्तेमाल उसके बाद कोरोना वायरस फैमिली के मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मर्स या MERS) और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स या SARS) के इलाज में किया गया है।

यह फॉर्मूला शरीर में वायरस के फलने-फूलने के लिए आवश्यक एंजाइम को काबू करता है। अमेरिकी रेगुलेटर US-FDA ने 28 अक्टूबर 2020 को रेमडेसिविर को कोविड-19 के इलाज के लिए मंजूरी दी थी। उस समय डोनाल्ड ट्रम्प इन्फेक्ट हुए तो उन्हें भी रेमडेसिविर दी गई थी।

रेमडेसिविर क्या वाकई इफेक्टिव है?

 गिलीड साइंसेस के डेटा के अनुसार रेमडेसिविर कोविड-19 रिकवरी टाइम को पांच दिन तक घटा देता है। अब तक 50 से अधिक देश कोविड-19 के इलाज में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि, WHO ने ट्रायल्स में इस दावे की पुष्टि नहीं की है। WHO ने कहा कि मरीज के गंभीर लक्षणों या जानलेवा परिस्थितियों पर रेमडेसिविर का कोई असर नहीं दिखा है। साइड इफेक्ट्स जरूर दिखे हैं। इनमें लीवर के एंजाइम्स का बढ़ा स्तर, एलर्जिक रिएक्शन, ब्लडप्रेशर और हार्ट रेट में बदलाव, ऑक्सीजन ब्लड का घटा हुआ स्तर, बुखार, सांस लेने में दिक्कत, होठों, आंखों के आसपास सूजन। ब्लडशुगर भी बढ़ा हुआ दिखा है।

रेमडेसिविर का संकट अचानक कैसे खड़ा हो गया?

दिसंबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच डेली केस की संख्या 30 हजार से भी कम रह गई थी। फरवरी में भारत में कोरोना वायरस के नए केसेज घटकर कुछ हजार रह गए थे। ऐसा लग रहा था कि महामारी खत्म होने के कगार पर है। इसके पहले से ही नए केस घटने लगे थे, तब दिसंबर से ही दवा कंपनियों ने रेमडेसिविर का उत्पादन घटा दिया था। पिछले 6 महीने में भारत ने 100 से अधिक देशों को 11 लाख इंजेक्शन एक्सपोर्ट भी किए हैं।

उस समय तैयारियों की कमी कहें या कुछ और, यूरोप-अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में कोविड-19 की दूसरी या तीसरी लहर आ चुकी थी। ऐसे में भारत को इसके लिए तैयार रहना था, पर ऐसा हुआ नहीं। लोग निश्चिंत हो गए और देश में महामारी की दूसरी लहर और भयावह स्वरूप में सामने आई। पहली लहर में 98 हजार का आंकड़ा पीक का था और दूसरी लहर में एक दिन में 1.80 लाख केस भी सामने आ चुके हैं।

इस बीच, जरूरत न होने के बाद भी अस्पतालों में रेमडेसिविर लगाना, बढ़ी हुई कीमतें, जमाखोरी और कालाबाजारी और कई अन्य कारणों से रेमडेसिविर का संकट खड़ा हो गया। जरूरतें बढ़ीं तो एकाएक प्रोडक्शन नहीं बढ़ पाया क्योंकि कंपनियों की कच्चे माल को लेकर इस तरह की तैयारी ही नहीं थी।

क्या सबको रेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत है?

नहीं। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि रेमडेसिविर सिर्फ उसे ही लगाया जाए, जो अस्पताल में भर्ती हो और ऑक्सीजन सपोर्ट ले रहा हो। जो लोग घर पर आइसोलेशन में हैं, उन्हें इस इंजेक्शन की कतई आवश्यकता नहीं है। नीति आयोग के सदस्य (हेल्थ) डॉ. वीके पॉल ने कहा कि रेमडेसिविर का घर पर मौजूद मरीज पर इस्तेमाल करने का सवाल ही नहीं उठता। केमिस्ट शॉप्स पर इसके लिए लाइन लगाने का कोई मतलब ही नहीं है। समझ नहीं आ रहा कि डॉक्टर भी धड़ल्ले से क्यों इस इंजेक्शन को प्रिस्क्राइब कर रहे हैं।

भारत में रेमडेसिविर कितनी कंपनियां बना रही हैं?

भारत में 7 दवा कंपनियां इस समय रेमडेसिविर बना रही हैं। इनमें हिटेरो ड्रग्स, जायडस कैडिला, सन फार्मा और सिप्ला भी शामिल हैं। गिलीड से इन्होंने लाइसेंसिंग एग्रीमेंट किए हुए हैं। इन कंपनियों की कुल उत्पादन क्षमता 39 लाख शीशी हर महीने बनाने की है। जायडस ने मार्च में 100 मिग्रा शीशी की कीमत 2,800 रुपए से घटाकर 899 रुपए कर दी।

संकट दूर करने केंद्र और राज्य सरकारें क्या कर रही हैं?

केंद्र सरकार ने 11 अप्रैल को रेमडेसिविर इंजेक्शन और रेमडेसिविर एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट्स (API) के एक्सपोर्ट पर देश में स्थिति सुधरने तक रोक लगा दी। केंद्र सरकार ने सभी घरेलू मैन्युफैक्चरर्स को कहा कि वे स्टॉकिस्ट और डिस्ट्रीब्यूटर्स के डिटेल्स वेबसाइट पर दिखाएं ताकि लोगों को दिक्कत न हो। स्वास्थ्य मंत्रालय ने ड्रग इंस्पेक्टर्स और अन्य अधिकारियों से कहा कि रेमडेसिविर इंजेक्शन की जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने के लिए जो हो सके, जरूर करें।

गुजरात में BJP ने घोषणा की कि वह रेमडेसिविर के 5000 डोज फ्री में बांटेगी। इस पर बवाल मच गया था।  BJP के प्रदेश अध्यक्ष का फोन नंबर हेडिंग में छापकर बताया था कि लोगों को रेमडेसिविर चाहिए तो इस नंबर पर फोन लगाएं। इस पर खूब सियासत गरमाई थी। राज्य सरकार की जमकर आलोचना हुई थी।

महाराष्ट्र में जिला स्तर पर कंट्रोल रूम बनाए गए हैं। रेमडेसिविर इंजेक्शन के सप्लाई को स्ट्रीमलाइन किया गया है। नागपुर में इंजेक्शन कम पड़े तो दो दिन पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सन फार्मा के अधिकारियों को फोन लगाया और 5000 इंजेक्शन डोज जुटाए। राज्य सरकार ने रेमडेसिविर के इंजेक्शन की कीमत 1,200 से 1,400 रुपए तय की है।

मध्यप्रदेश सरकार कमजोर तबकों के गंभीर मरीजों को फ्री में रेमडेसिविर इंजेक्शन लगवा रही है। यहां भी इंदौर-भोपाल समेत कई शहरों में रेमडेसिविर का भयंकर संकट पैदा हो गया है। केमिस्ट की दुकानों पर लंबी-लंबी कतारें देखी जा रही हैं। राज्य सरकार ने इंजेक्शन की उपलब्धता को लेकर विशेष इंतजाम किए हैं।