RBI को बीमा कंपनियों में बैंकों के ओनरशिप पर लिमिट लगाने की जरूरत नहीं

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(www.arya-tv.com)RBI अगर बीमा कंपनियों में बैंकों के मालिकाना हक पर लिमिट लगाने की बात सोच रहा है तो उसे इस बारे में दोबारा गौर करने की जरूरत है, यह राय कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की है। ब्रोकरेज फर्म ने अपनी हालिया रिपोर्ट में एक न्यूज आर्टिकल का जिक्र किया है, जिसके मुताबिक RBI चाहता है कि बैंक इंश्योरेंस कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 20% पर सीमित रखें।

ब्रोकरेज फर्म का कहना है कि बैंकों और उनकी प्रमोटेड इंश्योरेंस कंपनियों का रिश्ता उसके, इंश्योरेंस कंपनियों और पॉलिसी होल्डरों, सबके लिए फायदेमंद है। उसके मुताबिक, इंश्योरेंस कंपनियों में बैंकों का निवेश उनके डिपॉजिट होल्डर्स के लिए नुकसानदेह नहीं है।

बीमा कंपनियों में बैंकों की बढ़ती हिस्सेदारी से असहज महसूस कर रहा RBI?

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने जिस न्यूज आर्टिकल का जिक्र किया है उसके मुताबिक RBI बीमा कंपनियों में बैंकों की बढ़ती हिस्सेदारी को लेकर असहज महसूस कर रहा है। बीमा बिजनेस में बहुत पूंजी लगती है इसलिए RBI चाहेगा कि बैंक लोन और डिपॉजिट जैसे मेन कारोबार पर ध्यान दें।

मैक्स और एक्सिस के हालिया सौदे से लगता है कि RBI बैंकों को बीमा कंपनियों में अधिकतम 20% हिस्सेदारी रखने की इजाजत दे सकता है। वह बैंकों की प्रमोटेड बीमा कंपनियों में उनके निवेश की लिमिट को लेकर यही व्यवस्था कर सकता है।

होल्डिंग की ऊपरी लिमिट होने पर मार्केट में बढ़ जाएंगे बीमा कंपनियों के शेयर

अगर RBI बीमा कंपनियों में बैंकों के निवेश की ऊपरी सीमा तय कर देता है तो स्टॉक मार्केट में कारोबार के लिए इंश्योरेंस शेयरों की संख्या बढ़ जाएगी। टॉप लिस्टेड लाइफ और जनरल इंश्योरेंस कंपनियों में बैंकों और NBFC के निवेश की सीमा तय किए जाने पर मार्केट में एडिशनल 1.2 लाख करोड़ शेयर आ जाएंगे। कोटक का मानना है कि RBI को बीमा कंपनियों में बैंकों के निवेश की सीमा बांधने से पहले उसके रिश्तों के पॉजिटिव असर पर गौर करना चाहिए।

चुनौतीपूर्ण हालात में प्रोविजनिंग के लिए बीमा सब्सिडियरी से मदद मिलती है

ब्रोकरेज फर्म के मुताबिक, बैंकों को चुनौतीपूर्ण हालात में NPA कवरेज के वास्ते प्रोविजनिंग के लिए पूंजी जुटाने में इंश्योरेंस सब्सिडियरी (में स्टेक सेल) से मदद मिली है। FY2016-18 में HDFC ने इंश्योरेंस सब्सिडियरी में स्टेक बेचने से मिली 40% से ज्यादा रकम का इस्तेमाल लोन के अनुमानित लॉस की प्रोविजनिंग में किया था। ICICI बैंक ने भी इसी तरह 30-40% एनुअल प्रोविजनिंग कवर की थी।

बैंकों को 2-3% आमदनी इंश्योरेंस प्रॉडक्ट के डिस्ट्रीब्यूशन की फीस इनकम से होती है। कोटक के आंकड़ों के मुताबिक, बड़े बैंकों को पॉलिसी के डिस्ट्रीब्यूशन से उनके PBT के 5-15% के बराबर आमदनी होती है।

बैंकों के नेटवर्क से बीमा कंपनियों को डिस्ट्रीब्यूशन कॉस्ट में बचत होती है

बैंकों के नेटवर्क का सपोर्ट होने से बीमा कंपनियों को डिस्ट्रीब्यूशन कॉस्ट में बहुत बचत होती है। बैंकों के साथ जुड़े होने से मार्केटिंग में कॉमन ब्रांड का भी फायदा मिलता है। निजी बीमा कंपनियों के कारोबार में बैंकएश्योरेंस का हिस्सा FY 2009 के 21% से बढ़कर FY 2020 में 53% हो गया था।

जहां तक पॉलिसीहोल्डर की बात है तो ये स्ट्रॉन्ग प्रमोटर बैंकों वाली बीमा कंपनियों को तरजीह देते हैं। आंकड़ों के मुताबिक बैंकों और बड़े प्रमोटरों की बीमा कंपनियों को दूसरों से ज्यादा प्रीमियम मिलता है। इसकी वजह उनके बड़े प्रमोटर के चलते उन पर बना भरोसा और बाजार में उनका दबदबा होता है।

बैंकों की इंश्योरेंस सब्सिडियरी को पूंजी की चिंता करने की जरूरत नहीं

न्यूज आर्टिकल के मुताबिक RBI फिक्रमंद इसलिए है क्योंकि इस बिजनेस में खूब पूंजी लगती है। लेकिन कोटक का मानना है कि उससे डिपॉजिटर के हितों को नुकसान नहीं होगा। बैंकों की अलग मिनिमम कैपिटल रिक्वायरमेंट होती है और बीमा कंपनियों में निवेश के लिए रेगुलेटर की इजाजत लेनी होती है। इससे इंश्योरेंस सब्सिडियरी में बैंकों के निवेश पर लगाम लगी रहेगी और डिपॉजिटर के हित भी सुरक्षित रहेंगे।

पिछले पाँच वर्षों में इंश्योरेंस सब्सिडियरी में हुआ है बैंकों का मामूली निवेश

जीवन बीमा कंपनियों को अधिकांश पूंजी की जरूरत शुरुआती वर्षो में होती है। इसकी वजह ज्यादा रिजर्व रिक्वायरमेंट और हर सेल पर कम प्रॉफिट होता है। समय के साथ रिजर्व रिलीज होने पर पूंजी के मोर्चे पर कंपनी अपने पैरों पर खड़ा हो जाती है। पिछले पाँच वर्षों में इंश्योरेंस सब्सिडियरी में बैंकों के मामूली निवेश से इस बात की पुष्टि होती है।

लॉन्ग टर्म ग्रोथ की संभावनाओं को देखते हुए निवेश के लिए आकर्षक है बीमा

लॉन्ग टर्म ग्रोथ की संभावनाओं को देखते हुए इंश्योरेंस निवेशकों के लिए आकर्षक सेक्टर बना हुआ है। इससे बीमा कंपनियों को सेकेंडरी मार्केट या प्राइमरी मार्केट से पूंजी जुटाने में दिक्कत नहीं होगी। इंश्योरेंस सेक्टर में FDI लिमिट बढ़ाकर 74% किए जाने से बीमा कंपनियों में निवेश के मौके बढ़ेंगे।