(www.arya-tv.com) कोरोना के बाद जैसे-जैसे ट्रेनों की संख्या बढ़ी है, वैसे-वैसे ट्रेनों की लटलतीफी भी बढ़ी है। इस समय प्रीमियम ट्रेनों (Premium Trains of India) को छोड़ दें तो अन्य ट्रेनें समय पर अपने गंतव्य तक पहुंच ही नहीं पाती। ऐसे में रेलवे की पंक्चुअलिटी (Punctuality) खराब हो रही है। इसे सुधारने का रेलवे ने नया तरीका ढूंढ लिया है।
उसने ट्रेनों की सफर की अवधि ही बढ़ा दी है। हम आपको पूर्वोत्तर सीमा रेलवे में अलुआबाड़ी-सिलीगुड़ी सेक्शन का उदाहरण दे रहे हैं। वहां 10 किलोमीटर तक की दूरी तय करने के लिए ट्रेन को 45 मिनट का समय दिया गया है।
कहां का है वाकया
प्रभात खबर अखबार की एक रिपोर्ट बताती है कि ट्रेनों की लेटलतीफी से यात्रियों में बढ़ रही नाराजगी को दूर करने के लिए रेलवे ने नया रास्ता निकाल लिया है। रेलवे द्वारा अलुआबाड़ी-सिलीगुड़ी रेलखंड में चलने वाली ट्रेनों के सफर की अवधि को ही बढ़ा दिया है। इससे ट्रेन अब अपने गंतव्य स्टेशन पर भले ही देरी से पहुंचेगी, लेकिन तकनीकी रूप से ट्रेनों को लेट नहीं कहा जायेगा।
ट्रेनों के गंतव्य पर भारी लूज टाइमिंग से चलेगी किये जाने के कारण रेलवे भले यह दिखाने में सफल हो रहा है कि ट्रेनें समय से चल रही हैं। लेकिन रेलवे की इस व्यवस्था से पैसेंजरों में नाराजगी है।
पैसेंजर होते हैं परेशान
राधिकापुर से सिलीगुड़ी के बीच चलने वाली डेमू ट्रेन का समय ठाकुरगंज में सुबह 9:58 बजे है। इस ट्रेन का समय नक्सलबाड़ी में 10:43 पर निर्धारित है। वहीं, इस ट्रेन का बागडोगरा में 12:08 पर तो सिलीगुड़ी दोपहर 12:30 पर पहुंचने का समय निर्धारित है। यानी ठाकुरगंज से नक्सलबाड़ी के 33 किलोमीटर की दूरी 45 मिनट में यह ट्रेन तय करती है।
लेकिन नक्सल बाड़ी से बागडोगरा तक की 13 किलोमीटर की दूरी तय करने में इस ट्रेन को एक घंटा 15 मिनट का समय लगता है। लेकिन बागडोगरा से सिलीगुड़ी के 10 किलोमीटर की दूरी केवल 22 मिनट में ही ट्रेन तय कर लेती है। अब यह तो रेल प्रशासन ही बताएगा कि इस ट्रेन के परिचालन के समय नक्सलबाड़ी से बागडोगरा के बीच क्या आपदा आती है कि 13 किलोमीटर की दूरी पूरी करने में एक घंटा 15 मिनट लग जाते हैं।
10 किलोमीटर का सफर 45 मिनट में
अब आइए, कोलकाता के सियालदह रेलवे स्टेशन से आने वाली एक प्रमुख एक्सप्रेस ट्रेन को देखते हैं। कंचनकन्या एक्सप्रेस को बागडोगरा से सिलिगुड़ी के बीच 10 किलोमीटर की दूरी तय करने में 45 मिनट का समय लगता है। रेलवे की भाषा में इसे लूज टाइमिंग कहा जाता है। कभी-कभार यात्रियों को इस लूज टाइमिंग के कारण घंटों बैठना पड़ रह है।
लूज टाइमिंग का असर यह है की अलुआबाड़ी – सिलीगुड़ी रेलखंड पर चलने वाली ट्रेनें यदि नियमित समय पर बागडोगरा पहुंच जाए, तो लगभग आधे घंटे तक ट्रेनों को यहां रोक दिया जाता है। कंचनकन्या एक्सप्रेस ठाकुरगंज से बागडोगरा की 46 किमी की दूरी 50 मिनट में पूरी करती है। लेकिन बागडोगरा से सिलीगुड़ी की 10 किमी की दूरी तय करने के लिए रेलवे ने 45 मिनट निर्धारित किया है।
ट्रेन लेट हो तो यह आता है काम
रेलवे के जानकार बताते हैं कि यही लूज टाइमिंग ट्रेनों की लेटलतीफी के दौरान काम आता है। मान लिया जाए कि कंचनकन्या एक्सप्रेस आधे घंटे की देरी से चल रही है। लेकिन जब उसे किसी स्टेशन पर 45 मिनट का लूज टाइम मिलता है तो वह गंतव्य पर राइट टाइम पहुंचेगी। अब दानापुर से आने वाली कैपिटल एक्सप्रेस को देखिए। इसे बागडोगरा से सिलीगुड़ी पहुंचने में 10 मिनट का समय लगता है।
कंचनकन्या एक्सप्रेस को बागडोगरा से सिलीगुड़ी 10 किलोमीटर पहुंचने में 45 मिनट तो कटिहार इंटर सिटी को यह दूरी तय करने में 50 मिनट लगता है। वहीं मालदा डेमू को यह दूरी तय करने में एक घंटे 20 मिनट, वहीं बालुरघाट इंटरसिटी को यह दूरी तय करने में 35 मिनट लगता है। वहीं महानंदा एक्स्प्रेस को 25 मिनट।
डीजल से इलेक्ट्रिक इंजन हुआ, तभी भी स्पीड बढ़ी
रेलवे ने इस सेक्शन का इलेक्ट्रिफिकेशन कर दिया। कहा जाता है कि डीजल से इलेक्ट्रिक करने पर ट्रेन की स्पीड बढ़ जाती है। लेकिन इस सेक्शन पर इलेक्ट्रिक इंजनों के इस्तेमाल के बाद भी स्पीड नहीं बढ़ी। रेलवे ने टाइम टेबल में सुधार किया ही नहीं। इसी वजह है कि लोगों का कीमती समय खराब होता है।
ट्रेन समय पर हो तो घंटे भर करना होता है इंतजार
एक रेल यात्री अभिषेक गाडोदिया ने बताया कि आम तौर पर राधिकापुर डेमू ट्रेन नियत समय पर ही चलती है। यह ट्रेन अपने नियत समय पर नक्सलबाड़ी पहुंचती है तो उसको वहां कम से कम एक घंटा खड़ा कर दिया जाता है। उसके बाद ही ट्रेन को सिलीगुड़ी की तरफ रवाना किया जाता है। स्टेशन मास्टर कहते हैं कि ट्रेन बीफोर है, अभी इसका टाइम नहीं हुआ। उनका कहना है कि जब पौने घंटे का लूज टाइम है तो ट्रेन तो बीफोर पहुंचेगी ही।