100 तारीखें और 14 साल का संघर्ष…आखिरकार एक मां को मिला इंसाफ

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(www.arya-tv.com)  चलती फिरती हुई आंखों से अजां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है… शायर मुनव्वर राणा की लाइनें मां की अहमियत को बखूबी दर्शाती हैं. ‘मां’ एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही ममता, संवेदना, हिम्मत, हौसला और भी न जाने भावनाओं के कितने रंग एक साथ आंखों के सामने तैर जाते हैं. ऐसी ही एक मां यूपी की हरदोई में भी है. जिसके बेटे का निधन सड़क हादसे में हो गया था, लेकिन 14 वर्षों तक बूढ़े पैरों से कई किलोमीटर चलकर लड़ाई लड़ी और अंत जंग जीत ली.

हरदोई के जिगनिया कटरा की रहने वाली वृद्ध महिला रामदेवी का बेटा विपिन ट्रक पर काम करता था. 3 जुलाई 2009 को वह फर्रुखाबाद से ट्रक पर आलू लादकर निकला, लेकिन रास्ते में भदोही के पास ट्रक का टायर फट गया और ट्रक अनियंत्रित होकर पलट गया. इसमें दबकर विपिन की मौत हो गई थी और एक बूढ़ी मां का चिराग बुझ गया था.14 साल की कागजी लड़ाई के बाद आखिरकार बेटे की मौत का मुआवजा पाने में वृद्धा कामयाब हो गई. जब बुजुर्ग रामदेवी से बीते 14 साल के संघर्ष के बारे में पूछा गया तो वह फफक पड़ी.

100 तारीखों के बाद जीत ली जंग
हरदोई की रामदेवी अपने बेटे की सड़क हादसे में मौत के बाद पति रामकुमार द्वारा मुआवजे के लिए छेड़ी गई जंग में हर कदम साथ चलती रहीं. वह अपने गांव से भूखे प्यासे जिलाधिकारी कार्यालय में तारीख के लिए पैदल ही निकल पड़ती थीं. मगर कुछ समय बीतने के बाद तीन वर्ष पहले उनके पति रामकुमार का भी निधन हो गया. अब वह अकेली पड़ चुकीं थीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जंग को जारी रखा. लगातार 100 तारीखों पर वह जैसे तैसे कई किलोमीटर तक पैदल चलती थीं, तब जाकर उन्हें वाहन हरदोई शहर तक के लिए मिलता था. इतने कष्टों को झेलते हुए भी वह नहीं थकीं. अंत में मुआवजे की जंग जीत ही ली.

14 वर्षों बाद मिला न्याय

रामदेवी ने कहा, ‘मेरे पति रामकुमार मजदूरी करते थे, लिहाजा घर की जिम्मेदारी विपिन पर ही थी. इस बीच अकेले बेटे विपिन की मौत से पूरा परिवार सदमे में आ गया. फिर विपिन के निधन के बाद मेरे पति ने कागजी लड़ाई शुरू करते हुए श्रमिक क्षतिपूर्ति की मांग की थी.’ साथ ही बताया कि मुआवजे के लिए कई वर्षों तक हम दौड़ते रहे, लेकिन न्याय नहीं मिल पाया. अब 14 वर्षों की कठिन कागजी लड़ाई लड़कर जीत हासिल की है. बता दें कि हरदोई जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह के आदेश पर श्रमिक क्षतिपूर्ति के मुआवजे के रूप में 2,26,380 रुपये बने थे. वहीं, हादसे के दिन से 6 प्रतिशत ब्याज के साथ नेशनल इन्श्योरेंस कंपनी ने रामदेवी को 4,16,167 रुपये का भुगतान किया है.

बेटे की फाइल को सीने से लगाकर रखती थी बूढ़ी मां
रामदेवी ने बताया कि वह जिस तरह अपने बेटे को कलेजे से लगाकर रखती थीं, ठीक उसी तरह मुआवजे की मांग के कागजात को भी रखा. साथ ही बताया कि वह फाइल को अपने सिरहाने रखकर सोती थीं. बेशक लोकल 18 के साथ वह फफक पड़ीं, लेकिन 14 वर्षों के संघर्ष के बाद मिली जीत से वो खुश हैं.