RBS एजुकेशनल सोसाइटी का उपाध्यक्ष बनने के लिए किया फर्जीवाड़ा:जितेंद्र पाल सिंह भेजे गए जेल

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(www.arya-tv.com)  आगरा में अवागढ़ राजघराने के जितेंद्र पाल सिंह को पुलिस ने अरेस्ट कर जेल भेज दिया है। उन पर राजा बलवंत सिंह एजुकेशनल सोसाइटी का फर्जी तरीके से उपाध्यक्ष बनने का आरोप है। मामले में थाना न्यू आगरा में जनवरी में केस दर्ज किया गया था। पुलिस ने अवागढ़ किले से उन्हें अरेस्ट किया।

राजा बलवंत सिंह एजुकेशनल सोसाइटी के पदाधिकारी युवराज अंबरीश पाल सिंह ने मामले में पिछले साल अगस्त में अपर एडीजी आगरा जोन के यहां शिकायत की थी। इसके बाद न्यू आगरा थाने में जनवरी 2023 में धोखाधड़ी का रिपोर्ट लिखी गई।

रिपोर्ट में कहा गया कि बलवंत एजुकेशनल सोसाइटी खंदारी, रजिस्टर्ड संस्था है। इसके द्वारा आरबीएस डिग्री कॉलेज, आरबीएस इंटर कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज समेत कई शिक्षण संस्थानों का संचालन किया जा रहा है। सोसाइटी में मार्च 1981 से अनिरुद्ध पाल सिंह पदेन उपाध्यक्ष चयनित हैं।

संस्था में परिवार के सदस्य जितेंद्र पाल सिंह ने दावा किया था कि पदेन अध्यक्ष जिला जज ने उन्हें अगस्त 2011 में उपाध्यक्ष नियुक्त किया था। इसके लिए उन्होंने 27 अगस्त 2011 में उपाध्यक्ष पद की दावेदारी के लिए प्रत्यावेदन पदेन अध्यक्ष के यहां प्रस्तुत किया था।

पदेन अध्यक्ष ने पत्र के निस्तारण के लिए 30 अगस्त 2011, इसके बाद छह सितंबर 2011 की तिथि नियत की थी। रिपोर्ट में आरोप था कि जितेंद्र पाल सिंह ने उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ति का 30 अगस्त 2011 का पदेन अध्यक्ष का फर्जी और कूटरचित आदेश प्रस्तुत किया।

अवागढ़ किले से किया गया अरेस्ट
दरअसल, सोसाइटी के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट में जिला जज पदेन अध्यक्ष हैं। सीएमओ और डीआईओएस, प्रिंसिपल आरबीएस कॉलेज, राजा अवागढ़ परिवार का एक सदस्य पदेन उपाध्यक्ष हैं। आरोपी जितेंद्र पाल सिंह फर्जी हस्ताक्षर से नियुक्ति पत्र के आधार पर 9 महीने तक बलवंत सिंह एजुकेशनल सोसाइटी में पद पर बने रहे। पुलिस ने साक्ष्य संकलन के बाद कार्रवाई करते हुए अवागढ़ किले में दबिश देकर आरोपी जितेंद्र पाल सिंह को अरेस्टिंग के बाद कोर्ट में प्रस्तुत किया और उसके बाद जेल भेज दिया।

यह है पूरा मामला
आरबीएस एजुकेशनल सोसाइटी का वर्ष 1960 बायलॉज बना था। इसमें नियम था कि जिला जज अध्यक्ष पदेन और अवागढ़ राज परिवार से सीनियर सदस्य उपाध्यक्ष रहेंगे। दो अन्य अधिकारी एवं कॉलेज के प्रिसिंल को भी उपाध्यक्ष पद पर चयन करने का नियम रखा गया। 1960 से लेकर 1981 तक राज घराने से उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ति निर्विवाद रही।

1981 से शुरू हुआ विवाद
1981 अनिरुद्ध पाल सिंह चुनाव कराकर सोसाइटी के उपाध्यक्ष बनकर आ गए। इसे जितेंद्र पाल सिंह ने चेलेंज किया और कहा कि जब सोसाइटी के बॉयलॉज में चुनाव का प्रावधान ही नहीं है तो अनिरुद्धपाल सिंह कैसे उपाध्यक्ष बन सकते हैं। उन्होंने शासन में शिकायत की। इसके बाद प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा ने अनिरुद्ध पाल सिंह के चुनाव को गलत बताया।

तर्क दिया कि पहले बायलॉज में अमेंडमेंट कराया जाए, तभी नियुक्ति सही मानी जाएगी। सोसाइटी में आदेश का पालन न होने पर जितेंद्र पाल सिंह हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट से भी जितेंद्र पाल सिंह के पक्ष में निर्णय हुआ और अनिरुद्धपाल सिंह के चुनाव को गलत माना।

हाईकोर्ट ने रजिस्टार को किया था तलब
2016 में डिप्टी रजिस्टार ने अनिरुद्धपाल सिंह की सोसाइटी को अनुमोदन दे दिया, इसको लेकर जितेंद्र पाल सिंह फिर हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट में उन्होंने पक्ष रखा कि कोर्ट ने जिस चुनाव को गलत बताया और उसी रजिस्ट्रार ने अनुमोदन दे दिया है। इसके बाद हाईकोर्ट ने डिप्टी रजिस्ट्रार की सोसाइटी के ऑर्डर को स्टे कर दिया। डिप्टी रजिस्ट्रार सोसाइटी को कंन्टेंप्ट में तलब कर लिया। इधर हाईकोर्ट इस निर्णय के बाद डिप्टी रजिस्ट्रार सोसाइटी ने अनिरुद्ध पाल सिंह की सोसाइटी पर सभी प्रकार की गतिविधियों पर रोक लगा दी।