भीतरगांव विकास खंड में मनरेगा घोटाले में जांच में तो एक एक बिंदु पर समूचा तंत्र मिला दोषी

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कानपुर (www.arya-tv.com) भीतरगांव विकास खंड में मनरेगा घोटाला हुआ, मगर इस पर बाद में क्या हुआ? अब बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है। एक दशक से जारी घोटाले को   ने सिलसिलेवार ढंग से जब उजागर किया तो खलबली मच गई। जांच चली तो एक एक बिंदु पर समूचा तंत्र दोषी मिला। कार्रवाई का सिलसिला शुरू हुआ, लेकिन असल दोषियों पर शिकंजा कसने से पहले मिली सियासी घुड़की के बाद कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली गई, सहमे अफसर दुबक गए। तत्कालीन बीडीओ समेत मनरेगा के अन्य अधिकारियों कर्मचारियों से मिलीभगत से जारी संविदा कंप्यूटर आपरेटर अवनीश कुशवाहा के घोटाले दर घोटाले को बीते वर्ष अगस्त व सितंबर में सिलसिलेवार खबरें प्रकाशित कर उजागर किया था।

सीडीओ ने 20 अक्टूबर को प्रकाशित कंप्यूटर आपरेटर का कमाल, परिवार को बना डाला मालामालÓ, 21 अक्टूबर को प्रकाशित सरकारी मुलाजिमों की पनयिां एसएचजी से बटोर रही मलाई का संज्ञान लेकर जिला विकास अधिकारी जेपी गौतम व डीसी मनरेगा एके सिंह की संयुक्त टीम गठित कर जांच कराई। लाखों रुपये का भ्रष्टाचार उजागर हो गयाा। जांच टीम ने तत्कालीन बीडीओ सौरभ बर्नवाल, संविदा कंप्यूटर आपरेटर अवनीश कुशवाहा, अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी (मनरेगा), पंचायत सचिव, लेखाकार, तत्कालीन एडीओ (आइएसबी) आदि को दोषी पाकर कार्रवाई की सिफारिश की थी। 

दोषियों को कारण बताओ नोटिस व जवाब के बाद तत्कालीन बीडीओ और लेखाकार अजय मिश्र को प्रतिकूल प्रविष्टि दी गई। पंचायत सचिव सुरेंद्र कुमार गौतम को निलंबित किया गया था। कुछ दिन बाद बगैर जांच पूरी हुए ही अंतरिम बहाली भी दे दी गई। अन्य दोषियों की ओर से नोटिस के जवाब के बाद कार्रवाई के लिए डीएम की अध्यक्षता में सीडीओ, डीडीओ व डीसी मनरेगा को सदस्य बना समिति गठित की गई। 18 नवंबर को सीडीओ व समिति के सदस्यों ने दोषियों को तलब कर अंतिम सुनवाई की, लेकिन प्रभावी कार्रवाई के बजाय मामला ठंडे बस्ते में चला गया। चर्चा है कि एक क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई न करने का दबाब बना अफसरों को घुड़की दी थी। दिखवाता हूं, क्या मामला है। अगर जांच में दोषी पाए गए हैं तो निश्चित कार्रवाई की जाएगी।