अवैध रिपीटर्स कर रहे हैं नेटवर्क कवरेज को बाधित, दूरसंचार उद्योग ने किे तुरंत कार्रवाई का आह्वान

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(www.arya-tv.com) बूस्टर्स या रिपीटर्स पिछले कुछ सालों में तेज़ी से लोकप्रिय हुए हैं। ये उपकरण कम कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में उपलब्ध मोबाइल टाॅवर सिगनल पर काम करते हैं, जिसे विस्तारित कर छोटे, घने क्षेत्रों जैसे इमारतों या इमारतों के समूह में वितरित किया जाता है। हाल ही में बूस्टर्स का इस्तेमाल आॅपरेटर्स द्वारा ऐसे क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहां मोबाइल टाॅवर आसानी से इन्सटाॅल नहीं किए जा सकते। मौजूदा नियमों के अनुसार दूरसंचार सेवा प्रदाता गहन जांच के बाद इस तरह के रिपीटर्स इन्सटाॅल करते हैं, आवश्यकतनुसार अनुरोध किए जाने पर ही इन्हें इन्सटाॅल किया जाता है।

दूरसंचार सेवा प्रदाता सुनिश्चित करते हैं कि रिपीटर इन्सटाॅल करने से वितरण क्षेत्र के बाहर मौजूद लोगों के लिए नेटवर्क कवरेज बाधित न हो। इस तरह की डिवाइस सिगनल के लिए उपलब्ध इनपुट-आउटपुट प्रणाली को प्रबंधित करती हैं और आस-पास के निर्धारित क्षेत्र में उपयुक्त नेटवर्क कनेक्टिविटी उपलब्ध कराती है, जिससे कम नेटवर्क का ज़ोन भी कवर हो जाता है।

हालांकि ग्रे मार्केट (चोरी केे सामान के बाज़ार) और आॅनलाईन ईकाॅमर्स स्टोर कम लागत के अवैध रिपीटर्स उपलब्ध करा रहे हैं, जिसे कोई भी खरीद कर अवैध तरीके से इन्सटाॅल कर सकता है। मुद्दे की बात यह है कि ये डिवाइसेज़ कम नेटवर्क वाले क्षेत्र या इमारतों में नेटवर्क सिगनल उपलब्ध कराती है, इससे अन्य क्षेत्रों में नेटवर्क की क्षमता कम हो जाती है, क्योंकि किसी विशेष क्षेत्र का नेटवर्क कवरेज वितरित कर दिया जाता है।

जिसके चलते काॅल ड्राॅप और कनेक्टिविटी में गिरावट के मामले बढ़े हैं। इस प्रकार शहरों में इस तरह के अवैध रिपीटर्स घरों, कार्यालयों, गेस्ट हाउस आदि में इन्सटाॅल किए जा रहे हैं, जिससे सभी उपभोक्ताओं के लिए मोबाइल नेटवर्क की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। यहां तक की घरों के मालिक अवैध तरीके से इस तरह के डिवाइसेज़ लगाकर किराएदारों को लुभा रहे हैं, जिससे सम्पूर्ण क्षेत्र में कनेक्टिविटी पर बुरा असर पड़ा है, फिर चाहे वह 2जी नेटवर्क हो, 3जी या 4 जी। दूरसंचार उद्योग भी इस मुद्दे के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहा है क्योंकि ये अवैध रिपीटर्स आज दूरसंचार उद्योग के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं, और उपभोक्ताओं के समक्ष आने वाली नेटवर्क संबंधी समस्याओं जैसे काॅल ड्राॅप, कम डेटा स्पीड आदि का मुख्य कारण हैं।

खासतौर पर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इस तरह की समस्याएं आम हो गई हैं। इलेक्ट्रोनिक बाज़ारों में आसानी से उपलब्ध ये रिपीटर अनधिकृत एजेन्सियों द्वारा घरों, कार्यालयों और गेस्ट हाउसेज़ में इन्सटाॅल किए जा रहे हैं, ताकि इन क्षेत्रों में नेटवर्क कनेक्टिविटी को बढ़ाया जा सके।

मोबाइल आॅपरेटर जो नेटवर्क विस्तार में भारी निवेश कर रहे हैं, वे भी इन रिपीटर्स को पहचान कर इन्हें बंद करने की चुनौती से जूझ रहे हैं। कुल मिलाकर, उद्योग जगत ने इसके खिलाफ़ सख्त कदम उठाने के लिए दूरसंचार विभाग से संपर्क किया है, साथ ही दिल्ली-एनसीआर में अवैध रिपीटर्स इन्सटाॅल करने वालों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई है। अकेले शहर में 30 फीसदी से अधिक सैल (8000 सैल्स) साईट्स हैं, जिन्हें अवैध रिपीटर्स के कारण बहुत अधिक बाधित किया जा रहा है। जिसके चलते काॅल ड्राॅप और ब्लाॅक्ड काॅल्स के मामले तकरीबन 7 से 10 गुना बढ़ गए हैं। विकसित देशों में यह समस्या और भी आम है।

पिछले साल वेस्टर्न कवीन्सलैण्ड, आॅस्ट्रेेलिया में चारलेविले ओर कैमूवील में बड़ी संख्या में काॅल ड्राॅप और कवरेज में गिरावट के मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा, ये रिपीटर्स कनेक्टिविटी अपलिंक पथ को प्रभावित करते हैं, जिससे नेटवर्क अनुभव जैसे एक्सेसेबिलिटी, रीटेन्शन और यूज़र थ्रूपुट में गिरावट आती है। इस तरह के उपकरण आमतौर पर सभी स्पैक्ट्रम बैण्ड्स को सपोर्ट करते हैं और नियमित रूप से चलते रहते हैं, जिससे सेवा प्रदाता की सैल साईट बाधित होती है। अपलिंक में बाधा बढ़ने से, मोबाइल हैण्डसेट साईट के साथ कनेक्टिविटी के प्रबंधन के लिए ज्यादा पावर संचरित करता है। इससे बैटरी की खपत बढ़ती है और नेटवर्क का अनुभव बाधित होता है।