कैसे बचे वसुंधरा ? गर्वित अभियान! साक्षात्कार: डॉ.अजय शुक्ला

Lucknow

हम और आप! इस भीषण गर्मी के जनक हैं?
यदि न जागे तो विनाश के लिए तैयार रहें! वैज्ञानिक विपुल।

(www.arya-tv.com)विगत कई अंकों में आर्य tv.com ने पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियर, पूर्व परमाणु वैज्ञानिक, सनातन चिंतक, कवि और लेखक विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी से सनातन के विषयों पर अनेकों साक्षात्कार प्रकाशित किए हैं। उनका दूसरा पहलू है पर्यावरणविद् होना। उनके विज्ञान से संबंधित सैकड़ो लेख देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। विश्वविद्यालय से लेकर विद्यालयों, लायंस, रोटरी, सीनियर सिटीजन सहित अनेकों क्लब और वैज्ञानिक संस्थानों में 100 से अधिक पर्यावरण संबंधी व्याख्यान दे चुके हैं।

वर्तमान में अत्यधिक गर्मी और बे मौसम बरसात के क्या कारण हो सकते हैं? इनसे कैसा बचाव किया जा सकता है? यह जानने के लिए डॉक्टर अजय शुक्ला ने विपुल जी का साक्षात्कार लिया। प्रस्तुत है इस साक्षात्कार के कुछ अंश। हमेशा की तरह पाठकों के पर्यावरण संबंधित प्रश्नों का स्वागत रहेगा! और यदि प्रश्न आते रहे तो पर्यावरण संबंधित श्रृंखला भी चलती रहेगी।

डॉ. अजय शुक्ला: नमस्कार सर, आपकी सेवा में इस बार पर्यावरण से संबंधित कुछ प्रश्न लेकर आया हूं आशा करता हूं आप निराश नहीं करेंगे।

विपुल जी: आपका स्वागत है शुक्ला जी जन समस्याओं से संबंधित सनातन से संबंधित कोई भी जिज्ञासा आप लेकर बेहिचक आ सकते हैं।

डॉ. अजय शुक्ला: सर, वर्तमान में तापमान बढ़ता जा रहा है बे मौसम बरसात हो रही है कहीं-कहीं बाढ़ आ रही है। कहीं-कहीं सूखा पड़ रहा है इसका क्या वैज्ञानिक कारण आप देखते हैं?

विपुल जी: बढ़ता हुआ पर्यावरण असंतुलन, मनुष्य द्वारा प्रकृति पर किया जाने वाला अत्याचार, सनातन मूल्य के विपरीत आचरण। यही तीन प्रमुख कारण है जो मनुष्य के विनाश को लेकर आएंगे!

डॉ. अजय शुक्ला: सर, कुछ स्पष्ट कीजिए और इस पर विशेष ध्यान से बताइए मनुष्य के विनाश को लेकर आएंगे इसका क्या अर्थ हुआ?

विपुल जी: ठीक है इसको और स्पष्ट करता हूं। पर्यावरण असंतुलन यानि पर्यावरण प्रदूषण का तात्पर्य है। परि धन आवरण। यानी हमारे परिमंडल में उपस्थित भूमि जल और वायु का अंधाधुंध दोहन उनके निर्माण से अधिक उनको नष्ट करना। प्रदूषण अर्थात उनकी प्रकृति को दूषित करना। उदाहरण के लिए लकड़ी के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई विकास के लिए प्राकृतिक धरोहर को नष्ट करना पहाड़ों को काटकर सुरंग बनाना नदियों की प्राकृतिक दिशा को मानव द्वारा किए गए अत्याचारों द्वारा पाट देना। बड़े-बड़े शहरों में नेताओं के लालच के कारण विभिन्न जलस्रोतों को जहां पर बरसात का जल इकट्ठा होता था उनको नष्ट कर देना और इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो कर्नाटक का बैंगलोर है। मैंनें लखनऊ शहर में गोमती नदी में तैरना सीखा था और इतना साफ पानी था कि उसको लोग पी भी लेते थे। लेकिन अब गोमती नदी की दुर्दशा हो गई। वह सिर्फ एक गंदगी का नाला बन गई। जो मंदिर नदी के बीचो-बीच था वहां तक पाट कर भूमि पर कब्जे कर लिए गए। और इन सब का सबसे बड़ा कारण स्वतंत्रता के बाद की लालची स्वार्थी केंद्र और प्रदेश की सरकारें रही। दक्षिणी प्रदेशों में धन कमाने की लालसा उल्टे सीधे फैसले भू माफियाओं के हवाले प्रशासन को कर देना यह सब सबसे बड़े कारण रहे।

डॉ. अजय शुक्ला: सर आप भावुक हो रहे हैं कुछ हमारे जैसे अवैज्ञानिक लोगों की भाषा में बताएं।

विपुल जी: अजय जी पर्यावरण पर तो इतना अधिक दिमाग में भरा हुआ है की हर विषय पर आपको अलग-अलग साक्षात्कार लेना पड़ेगा। (हंसते हुए)

डॉ. अजय शुक्ला: अरे सर बिल्कुल हम साक्षात्कार लेते रहेंगे बस आपको समय निकालना होगा। 

विपुल जी: अजय जी हमारे चारों ओर जो कुछ भी मौजूद है उन सब का आपस में एक नाता होता है एक चक्र होता है जिसको कि हम आधुनिक विज्ञान में परिस्थैतिक तंत्र कहते हैं। इसको अंग्रेजी में इकोसिस्टम कहते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र वह है जहां जीवित जीवों (जैसे पौधे और जानवर) का एक समुदाय अपने पर्यावरण के निर्जीव पहलुओं के साथ मिलकर रहता है। पारिस्थितिक तंत्र में जैविक और एंटीबायोटिक तत्व होते हैं जो पोषक चक्र और ऊर्जा प्रवाह के माध्यम से एक साथ जुड़े होते हैं।
जब हम इस तंत्र में किसी भी चक्र के पहलू को कमजोर कर देते हैं या नष्ट कर देते हैं तो यह तंत्र बिगड़ जाता है और पर्यावरण असंतुलन का जनक बन जाता है।

आप यह समझिए वैज्ञानिकों ने अभी तक कुल 24 परिस्थैतिक तंत्र शोध किए हैं जिनमें से मानव 14 को लगभग नष्ट कर चुका है। अब आप समझ सकते हैं मानव अपने विनाश के कितने करीब आ चुका है। इसमें से वृक्ष सबसे अधिक उपयोगी और प्रमुख कारण होते हैं। 2020 तक विश्व में 30% जमीन पर वृक्ष लगे हुए थे। भारत में एक व्यक्ति के पीछे सिर्फ 28 पेड़ है। रूस में सबसे अधिक पेड़ है जो प्रति व्यक्ति हजारों की संख्या में है। आप नेट पर और अधिक अध्ययन कर सकते हैं जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

यह पेड़ सूरज से आने वाले ताप को रोक लेते हैं और भूमि तक नहीं पहुंचने देते हैं। इसके अतिरिक्त पैदा होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को सूरज की रोशनी में यह पेड़ अपना भोजन बनाकर आक्सीजन प्रदान करते हैं। यह वर्षा के बादलों को भी अपनी ओर खींच लेते हैं। जीवन की तमाम उपयोगी वस्तुएं देने के अतिरिक्त यह पेड़ हमको नवजीवन प्रदान करते रहते हैं। यह तो एक छोटा सा पहलू है वृक्ष की उपयोगिता का।

अब बात आती है जल पर। बरसात के मौसम में बारिश का पानी धरती के छिद्रों के द्वारा विभिन्न तालाब, कुएं और जल को रोकने वाले प्राकृतिक झील इत्यादि के द्वारा धरती के अंदर वापस चले जाते हैं। लेकिन बाकी समय मानव धरती के अंदर के पानी को बाहर निकाल कर अपना काम चलाता है। वर्तमान में विकास के कारण कंक्रीट के कारण यह जल धरती के अंदर वापस नहीं जा पाता है। वही लालच के कारण विभिन्न जल के स्रोतों को पाट कर बिल्डिंग बना दी गई। इसका मतलब जमीन से निकलने वाले जल से बहुत कम मात्रा में यह जल धरती के अंदर जा पाता है। जिसके कारण धरती के अंदर का बोझ सहने का संतुलन बिगड़ जाता है और भूस्खलन आदि होने लगते हैं। इसके अतिरिक्त धरती का तापमान बढ़ने लगता है। यह भी केवल एक छोटा सा पहलू है और अधिक नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं।

यदि भूमि की बात करें तो आप भूमि की प्राकृतिक क्षमताओं को विभिन्न रसायनों के द्वारा नष्ट करते जा रहे हैं इसके अतिरिक्त धरती के अंदर के विभिन्न संपदाओं को निरंतर बाहर निकलते जा रहे हैं तो धरती अंदर से पोपली हो रही है। झारखंड बिहार जैसी जगह पर धरती के नीचे से कोयला निकालकर उसकी भार वहन क्षमता को कम कर दिया जिस कारण धरती कई किलोमीटर तक क्रेक हो रही है। यह भी केवल एक कारण है। और भी बहुत कुछ कारण है।

अब बात करते हैं वायु की हमारी प्राकृतिक वायु में लगभग 21% तक ऑक्सीजन और 79% तक नाइट्रोजन होती है। अन्य गैसों के कारण ऑक्सीजन प्रतिशत बड़े-बड़े महानगरों में नीचे आ जाता है जिस कारण मनुष्य को सांस संबंधी रोग पैदा हो जाते हैं। यदि ऑक्सीजन का स्तर 16.2 प्रतिशत से नीचे आ जाएगा तो मनुष्य तुरंत मर जाएगा। अब आप सोच लीजिए यह मानव क्या कर रहा है।

देश में वर्तमान सरकार विकास के साथ विनाश को संतुलित करने के लिए विभिन्न योजनाएं लाती है लेकिन प्रदेशों की राजनीति के कारण भ्रष्टाचार और धन की हवस के कारण सार्थक रूप से पर्यावरण को बचाने के उपाय लागू नहीं हो पाते हैं। इसका एक कारण आप बेंगलुरु देख चुके हैं जहां पर सार्वजनिक रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पानी की कमी घोषित कर दी गई। दक्षिण अफ्रीका का एक शहर केप टाउन तो कई वर्ष पूर्व वीरान घोषित कर दिया गया था क्योंकि वहां पर पानी समाप्त हो गया था।

डॉ. अजय शुक्ला: यह तो आपने कारण बता दिए अब इसका निदान भी बताने का कष्ट करें!

विपुल जी: इसके लिए जन आंदोलन की आवश्यकता है आम इंसान को पर्यावरण की आवश्यकता इसकी महत्ता को समझाने का प्रयास करना कुछ इसी प्रकार करना चाहिए जैसे कि चुनाव में वोट लेने का नेता लोग प्रयास करते हैं। अभी आम का मौसम है लोग आम की गुठली खाकर ऐसी फेक देते हैं। आप किसी भी फल की गुठली को फेकें नहीं उसको कहीं पर भी खाली जमीन देखकर एक इंच गड्ढा खोदकर दबा दे। क्या आप यह नहीं कर सकते! कर सकते हैं! लेकिन अपने स्वार्थ के कारण और पेड़ लगाने में होने वाले समय को बर्बादी मानकर आप यह नहीं करेंगे। आपको इस माइंडसेट से बाहर निकलना होगा। पानी की बर्बादी को रोकना होगा। प्राकृतिक संपदाओं को बचाना होगा और कम से कम इस्तेमाल करना होगा।

मेरा एक इंटरव्यू आपने बहुत पहले लिया था कि गर्वित के माध्यम से आप पर्यावरण का बचाव कैसे कर रहे हैं उसका भी आप संदर्भ ले सकते हैं या उसको पुनः छाप सकते हैं। मेरे द्वारा निर्मित ट्रस्ट ग्रामीण आदिवासी रिसर्च एंड वैदिक इनोवेशन ट्रस्ट यानी गर्वित ने दो वर्ष पूर्व मिट्टी लगे हाथ प्रतियोगिता आयोजित की थी जिसको की 15 अगस्त के निकट भारत सरकार ने स्वीकार कर अन्य प्रतियोगिता आयोजित की थी। उसमें देश की माटी कर दिया था। अआपने समाचार भी छापा था। कुछ इसी प्रकार सभी ट्रस्ट को पर्यावरण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। अकेले सरकार कुछ नहीं कर सकती वह केवल घोषणा कर सकती है अथवा बजट दे सकती है लेकिन वह बजट भी धरातल तक पहुंचता है क्या? यह कितना पहुंचेगा यह तो आप खुद अपनी आंखों से देख सकते हैं। मानव को लालच के बाहर निकलना होगा पर्यावरण की ओर जीवन रक्षक की भावनाओं की तरह देखना होगा तभी इसका निदान होगा। नहीं तो आने वाली भूख प्यास से तड़प कर मरने वाली स्थिति को देखने के लिए तैयार रहिए।

डॉ. अजय शुक्ला: अच्छा सर, आपको बहुत-बहुत प्रणाम पर्यावरण संबंधित पाठकों के अन्य प्रश्न लेकर आपके द्वार पर अवश्य उपस्थित होऊंगा धन्यवाद।

विपुल जी: आपका बहुत-बहुत आभार और मेरा आशीर्वाद व शुभकामनाएं कि आप सदैव जन जागरूकता के प्रयास के लिए प्रयासरत रहे और सफल हों। ईश्वर आपको सनातन प्रचार और पर्यावरण बचाव के कार्य में निष्कंटक बनाएं।