हाईकोर्ट ने कहा- बच्चे के पोषण के लिए मां का दूध सर्वाेत्तम आहार

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(www.arya-tv.com) जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने मंगलवार को बच्चे की मां महरुख इकबाल बनाम जम्मू-कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश और अन्य की याचिका पर सुनवाई की. एकल न्यायाधीश जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे ने कहा कि नवजात शिशु को मां की देखभाल और बंधन से वंचित करके शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से बहुत नुकसान हो रहा है.

इसलिए अदालत ने श्रीनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को निर्देश दिया कि वह निजी प्रतिवादियों से बच्ची की बरामदगी सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करें. अदालत ने कहा कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक या पुलिस टीम को किसी भी जगह और घर पर छापा मारने के लिए अधिकृत किया जाएगा, जिस पर उन्हें संदेह हो कि बच्चे को बंद कर दिया गया है या छुपाया गया है. इस संबंध में कोर्ट ने शिशु के लिए मां के स्तन के दूध के महत्व को भी रेखांकित किया.न्यायालय ने कहा कि इस तथ्य से कोई इंकार नहीं है कि स्तन का दूध लगभग सभी विटामिन, प्रोटीन और वसा का एक प्राकृतिक और सही मिश्रण है, जिसका अर्थ है कि बच्चे को उचित विकास के लिए जो कुछ भी चाहिए

वह इसमें मौजूद है.इसके अलावा कृत्रिम रूप से तैयार गाय के दूध की तुलना में मां के दूध को शिशुओं द्वारा आसानी से पचाया जा सकता है. इसमें एंटीबॉडी भी होते हैं जो दूध पिलाने वाले बच्चों को वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं. स्तनपान बच्चों में संक्रमण के जोखिम को कम करता है.याचिकाकर्ता मां ने अपनी याचिका में कहा कि वह जम्मू की रहने वाली है और उसकी शादी श्रीनगर के प्रतिवादी से हुई थी. शादी 9 नवंबर 2020 को जम्मू में संपन्न हुई और वह श्रीनगर में अपने पति और अपने ससुराल वालों के साथ रहने के लिए श्रीनगर चली गई

जब वह गर्भवती हुई तो उसने एक स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श किया, जिसने उसे सिजेरियन डिलीवरी से गुजरने की सलाह दी. हालांकि चिकित्सकीय सलाह के विपरीत उसके पति ने बच्चे की सामान्य डिलीवरी पर जोर दिया.उसने आगे आरोप लगाया गया कि उसके पति ने उसकी देखभाल करने और डॉक्टर की सलाह का पालन करने के बजाय उसे प्राकृतिक प्रसव कराने के लिए मजबूर किया और उसके साथ बातचीत बंद कर दी. गर्भावस्था के आखिरी महीने में उसे छोड़ दिया. उसने आरोप लगाया कि उसके पति के अन्य रिश्तेदारों ने भी उसे छोड़ दिया

इसके बाद सीजेरियन प्रक्रिया के माध्यम से याचिकाकर्ता को एक बच्ची का जन्म हुआ. हालांकि बच्चे को जन्म देने के बाद पति कथित तौर पर कुछ गुंडों के साथ अस्पताल आया और उसकी इच्छा के खिलाफ सीजेरियन कराने के लिए गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी.बाद में पति के परिजन अस्पताल पहुंचे और पति के आचरण के लिए माफी मांगी और उसे ससुराल लौटने को कहा जो उसने किया. आरोप है कि शिशु के साथ ससुराल लौटने पर उसके पति ने दूध पिलाती बच्ची को उसकी बाहों से छीन लिया और जबरन अलग कर दिया और याचिकाकर्ता को एक कमरे में बंद कर दिया

8 दिनों के बाद उसने अपना मोबाइल फोन लिया और शिकायत दर्ज करने के लिए महिला पुलिस हेल्पलाइन से संपर्क किया. जिसके बाद उसे महिला पुलिस स्टेशन रामबाग ले जाया गया. उसने महिला शिकायत प्रकोष्ठ को सूचित किया कि उसकी नवजात बेटी को अवैध रूप से उससे ले लिया गया है और निजी प्रतिवादियों द्वारा गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखा गया है.हालांकि याचिकाकर्ता की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे उसने उच्च न्यायालय का रुख किया. 27 अगस्त को जब मामले की सुनवाई हुई तो प्रतिवादी पिता ने 31 अगस्त को बच्चे को कोर्ट के समक्ष सरेंडर करने की बात कही. लेकिन जब मामला 31 अगस्त मंगलवार को सुनवाई के लिए आया तो अदालत के समक्ष बच्ची को पेश नहीं किया गया.