(www.arya-tv.com) कर्नाटक हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के दुरुपयोग का उदाहरण बताते हुए दो भाइयों के खिलाफ संपत्ति विवाद को लेकर दायर मामले को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत झूठे मामले आपराधिक न्याय प्रणाली में रुकावट बन रहे हैं। यह मामला अधिनियम के प्रावधानों और आईपीसी के तहत दंडात्मक प्रावधानों के दुरुपयोग का एक उदाहरण बनेगा।
कड़े शब्दों में अदालत ने कहा कि यह ऐसे मामले हैं जो न्यायालयों का काफी समय बर्बाद करते हैं, चाहे वह मजिस्ट्रेट न्यायालय हो, सत्र न्यायालय हो या यह न्यायालय हो। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने रसिक लाल पटेल और पुरूषोत्तम पटेल द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला देते हुए कहा कि ऐसे झूठे मामलों की वजह से वास्तविक केसों को समय नहीं मिल पाता है। उनके वादियों को परेशानी होती है। उन्हें न्याय के लिए लंबा इंंतजार करना पड़ता है।
शिकायतकर्ता पुरूषोत्तम का आरोप था कि याचिकाकर्ताओं ने उसके पिता और चाचा द्वारा संयुक्त रूप से खरीदी गई संपत्ति के रिकॉर्ड में जालसाजी की और कब्जा कर लिया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सभी लेनदेन शिकायतकर्ता के पिता और याचिकाकर्ताओं के पिता के बीच उनके जीवनकाल के दौरान हुए थे। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे पिछले लगभग 50 वर्षों से विषय संपत्ति पर काबिज हैं। याचिकाकर्ताओं की संपत्तियां और शिकायतकर्ता के पिता के हिस्से की संपत्तियां एक-दूसरे से सटी हुई हैं। इसके अलावा यह तर्क दिया गया कि मामला पूरी तरह से नागरिक प्रकृति का है लेकिन इसे अपराध का रंग देने की कोशिश की जा रही है।
न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि जो मामला पूरी तरह से नागरिक प्रकृति का है, उसे अपराध का रंग देने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि शिकायतकर्ता स्वयं संपत्तियों के बंटवारे की मांग करते हुए सिविल अदालत के समक्ष पहुंचे। जबकि याचिकाकर्ता सिविल अदालत के समक्ष शिकायतकर्ता के खिलाफ निषेधाज्ञा की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आपराधिक मामले को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।