कमिश्नरी लागू होने के बाद भी लखनऊ में नहीं रुक पा रहा अपराध का ग्राफ

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  • जिनकों होना चाहिए था जिले से बाहर वे ही संभाल रहे हैं कमाऊ थानों की कमान
  • कमिश्नरी लागू होने के बाद भी लखनऊ में नही रुक पा रहा है अपराध का ग्राफ़

राहुल तिवारी

लखनऊ। लखनऊ में पुलिस कमिश्नरी को लागू हुये लगभग 5 माह बीत चुके हैं लेकिन थानों में वही के वही कोतवाल, दरोगा, सिपाही जमें हुए हैं जिसमें से तो कुछ ऐसे हैं जिनको लखनऊ के बाहर होना चाहिए लेकिन आज भी राजधानी के कमाऊ थानों में मलाई काट रहे हैं यही नही इन वर्दीधारियों ने काफी अकूत संपत्ति भी काफी बना डाली है। इन पर अधिकारी भी पूरी तरह से मेहरबान हैं।
लखनऊ में पुलिस कमिश्नरी लागू होने के बाद से लगातार राजधानी में अपराधों के ग्राफ में काफी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है सुशांत गोल्फ सिटी थाना क्षेत्र के अहमामऊ में केजीएमयू के डाक्टर को बेखौफ बदमाशों द्वारा गोलियों से हमला करने की घटना को एक माह बीता ही होगा कि रविवार की रात लगभग आठ बजे भाजपा युवा मोर्चा के नेता विनीत तिवारी पर बेखौफ बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी जिसमें पुलिस ने दीपू यादव नामक व्यक्ति की पहचान भी की है लेकिन पुलिस की पकड़ से अपराधी अभी दूर हैं।

लखनऊ की बात करें तो यहां पर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हुए लगभग पांच माह बीत चुके हैं और कमिश्नर भी तेज तर्रार आईपीएस अधिकारी हैं पर थाने और बीट स्तर पर हालात वही पुराने हैं इसमें कहीं से भी सुधार होता नही दिख रहा है।

अगर बात यूपी पुलिस कि की जाये तो थाने व चौकी स्तर पर पुलिस की छवि लोगों के जेहन में वही पुरानी है जिसमें थाने के अंदर घुसते ही चढ़ावा चढ़ाना जरुरी माना जाता है। अभी भी हाल यह है कि लोग अपनी समस्या पुलिस को बताने में कतराते नही बल्कि घबराते हैं कहीं उनकी समस्या हल होने के बजाये और उलझ ना जाये। अभी हाल ही में बंथरा के गुदौली गांव में एक वहेशी बाप बेटे ने परिवार के ही छह लोगों को गड़ासे से काट कर मौत के घाट उतार दिया था।

इस वारदात के पीछे कारण जमीनी विवाद निकल कर आया था। इस घटना ने पूरे जिले को हिलाकर रख दिया था,खुद पुलिस कमिश्नर सुजीत कुमार पाण्डेय भी मौके पर पहुंचे थे। यूं तो प्राथमिक चरण में इस घटना को अप्रत्याशित मानकर जांच शुरु की गयी। लेकिन बाद में जो तथ्य सामने आये वह और भी चौकाने वाले थे, पता चला कि मौत का ताण्डव गुदौली गाव में होने से पहले यह परिवारिक जमीनी विवाद पंचायत व बंथरा थाने भी पहुंचा था लेकिन समय रहते पुलिस ने इस पर ध्यान नही दिया और परिणाम स्वरूप एक बड़ी घटना घट गयी। यहां पर थाने की पुलिस पर कोई कार्यवाई नही की गयी।

चौक थाना क्षेत्र के घने व भीड़ भाड़ वाले नेहरूक्रास में दिन दहाड़े व्यापारी के नौकर को गोली मार कर लूट की वारदात हुई और पुलिस लकीर पीटती रह गयी। इस वारदात में घायल नौकर की बाद में मौत हो गयी थी। इस घटना में घटनास्थल से महज 100 कदम पर रकाबगंज में पुल पर पुलिस चौकी है और दूसरी तरफ दौ सौ कदम पर यहियागंज पुलिस चौकी लेकिन इसके बाद भी बदमाश मौके से बड़ी आसानी से भाग निकले थे।

पुलिस को इस वारदात के खुलासे के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े। अभी एक दिन पूर्व ही गोमती नगर विस्तार में कैलाशपुरी पुलिस चौकी से चंद कदम की दूरी पर एक युवक की बल्लियों से पीट पीट कर निर्मम हत्या कर दी गयी और पुलिस को हवा तक नही लगी। ये घटनाएं बानगी भर है ऐसी तमाम वारदाते हैं जो वही पुरानी पुलिसिंग की याद दिलाती हैं।

अभी भी लोगों को अपनी शिकायते दर्ज कराने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और पुलिस की मनमानी जारी है। कमिश्नरी तो चालू हो गई लेकिन थाना हों या फिर चौकी यहां वहीं पुलिस के दरोगा से लेकर सिपाही व एसीपी तक तैनात हैं जो कमिश्नरी से भी पूर्व एक या दो वर्ष पहले थे जिसमें ज्यादातर पूर्ववर्ती सरकार के खास दरोगा व सिपाही तैनात हैं जो जनता से सिर्फ धन उगाही करने का काम कर रहे हैं काम चाहे जितना भी छोटा क्यो न हो लेकिन इनको बस रुपए से मतलब है।

ये सिपाही और दरोगा अपने अपने थाना व चौकी क्षेत्र में क्या कर रहे हैं शायद इनके अधिकारियों को भी इसकी खबर नहीं है या अगर खबर है तो फिर आखिर ऐसी कौन सी मेहरबानी इन पुलिस कर्मियों पर है जो अधिकारी भी इनको हटाने की जहमत नहीं कर रहे हैं जबकि जनता इन पुलिस कर्मियों से त्राहिमाम कर रही है।

अगर बात करें तो राजधानी के थाना क्षेत्रो की तो थाना क्षेत्र बन्थरा में भी तमाम ऐसे दरोगा है जो अर्सो से तैनात हैं उसके बावजूद पुलिस का कोई अफसर इन रसूखदारों की ओर ध्यान देना नहीं चाहता।