महामारी से 5-11 साल तक के बच्चों में बढ़ा तनाव:चिंता और अवसाद से जूझ रहे बच्चे

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(www.arya-tv.com)मानसिक अवसाद और चिंता से इन दिनों किशोर सबसे ज्यादा परेशान हैं। वे महामारी से पहले भी दुर्व्यवहार, खानपान संबंधी और अन्य मानसिक समस्याओं से जूझ रहे थे। अब उन्हें किसी करीबी को खोने, स्कूल-कॉलेज में लौटने जैसे तनाव हैं। अमेरिकी सीडीसी के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य आपातकालीन विभागों में 5-11 साल के बच्चों की विजिट पिछले साल 24% बढ़ गई। बच्चे या किशोर अवसाद या चिंता से जूझ रहे हों, तो बात करना मुश्किल हो सकता है। एक्सपर्ट्स से समझिए कैसे उनकी समस्याएं हल कर सकते हैं…

1 बच्चों को जताएं कि आप उनके लिए चिंतित हैं
किशोरों से चर्चा करें कि वे खुद में ही क्यों खोए रहते हैं। या वे ज्यादा वक्त सोने में क्यों बिता रहे हैं। उन्हें एहसास दिलाएं कि आप उनके लिए चिंतित हैं। अमेरिकन फाउंडेशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन की सीएमओ क्रिस्टिन माउटियर कहती हैं, उन्हें समझाएं कि साथ मिलकर हर चुनौती से निपट सकते हैं। उन्हें महसूस कराएं कि आप उनकी परवाह करते हैं, उन्हें चाहते हैं, ताकि वे खुलकर बात करें।

2 भरोसेमंद टीचर, कोच या डॉक्टर से चर्चा करें
बच्चों को लेकर किसी भरोसेमंद टीचर, कोच या बाल रोग विशेषज्ञ से चर्चा करें। उन्हें बताएं कि बच्चा अमुक कारणों से बाहर कम दिखता है। ये लोग बच्चों को उनकी समस्या बताने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। ऑरेंज काउंटी में बाल मनोरोग विशेषज्ञ हीथर हुज्ती कहते हैं कि ऐसे बच्चे चाहते हैं कि उनकी भावनाओं को महत्व मिले। उनकी बात सुनी जाए। समस्या पता चल जाए, तो समाधान खोजने में आसानी होती है।

3 बच्चों की झिझक दूर करें, उन्हें अकेला न छोड़े
बच्चों को अक्सर लगता है कि वे अपनी भावनाएं साझा करेंगे तो कोई क्या सोचेगा, या उनकी चिंताओं को वास्तविक नहीं मानेगा। इसलिए बच्चों की झिझक दूर करना जरूरी है। कोलोराडो चिल्ड्रन हॉस्पिटल में हेल्थ एक्सपर्ट हेइदी बास्कफील्ड कहती हैं कि इसके लिए कई बार कोशिश करनी पड़ेगी। एक और जरूरी बात, इस स्थिति में बच्चों को अकेला बिल्कुल न छोड़ें। ऐसे में नकारात्मक चीजें सोच सकते हैं।

4 चाइल्ड हेल्पलाइन और काउंसलर की मदद लें
अगर समस्या सुलझती नहीं दिख रही हो तो चाइल्ड हेल्पलाइन या काउंसलर की मदद लेने में न हिचकें। फिलाडेल्फिया चिल्ड्रन हॉस्पिटल में मुख्य मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. टैमी डी बेनेटन कहती हैं कि ऐसे मामलों में देर नहीं करनी चाहिए। हो सकता है कि बच्चे किसी ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं, जो परिजनों के साथ साझा नहीं कर सकते। इन मामलों में काउंसिलिंग मददगार साबित हो सकती है।