सिंध को दोयम दर्जे का बनाने की कोशिश

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(www.arya-tv.com) वर्ष 1843 में जनरल चार्ल्स नैपियर को मिली जीत के साथ सिंध सूबा ईस्ट इंडिया कंपनी का एक और हिस्सा बन गया था, हालांकि नैपियर को आदेश मिला था कि इस इलाके को कब्जाना नहीं है। इसके बावजूद उसे यह प्रांत आसानी से मिल गया था क्योंकि सामने से प्रतिरोध बहुत कम मिला था। कहा जाता है कि इस जीत के बाद उसने ऊपरी अधिकारियों को केवल एक शब्द में, किंतु स्मरणीय, संदेश भेजा था : ‘पैक्कावी, इस लैटिन शब्द का अर्थ है ‘मैंने पाप कर डाला। (भाव यह कि सिंध पर मेरा कब्जा हुआ)।

3 मार्च, 1943 को मुस्लिम लीग के नेता जीएम सईद द्वारा सिंध विधानसभा में रखे प्रस्ताव से सिंध अविभाजित भारत का पहला प्रांत बना, जिसने 1940 में अलग देश पाकिस्तान बनाने वाली लीगी प्रस्तावना का अनुमोदन किया था। 26 जून, 1947 को सिंध विधानसभा पुन: ऐसा पहला सदन था, जिसने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय लिया था।

पाकिस्तान बनाने का पक्ष लेकर सिंधी लोग दरअसल अपने वास्ते खुदमुख्तारी की उम्मीद पाले हुए थे। जब तक सईद को अहसास हुआ कि वास्तव में पाकिस्तान का निजाम है क्या, तो उन्होंने मुस्लिम लीग से किनारा कर लिया और विभाजन एवं द्विराष्ट्र सिद्धांत को ‘अप्राकृतिक, अमानवीय और अयथार्थवादी करार दिया और खुद सिंधी राष्ट्रवाद के विचार-पुंज बन गए। फलस्वरूप कई साल तक जेल में रहना पड़ा था।

पाकिस्तान में सत्ता पर शुरू से हावी पंजाब प्रांत (पाकिस्तानी) न तो इस ‘धृष्टताÓ को भूला, न ही माफ किया और पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए सिंधियों को ‘भूखा और वंचित  रखा। पंजाब प्रांत के फायदे के लिए सिंधु नदी की ऊपरी धाराओं पर बनाए गए कई बांधों की वजह से दरिया की धारा विरल होती गई। आलम यह कि वर्ष 2018 में खरीफ की फसल के लिए जरूरी पानी की उपलब्धि 58 प्रतिशत रह गई तो वर्ष 2019 में यह आगे घटकर 40 फीसदी हो गई।

सिंधु नदी के ऐतिहासिक प्रवाह में लगातार आती गई कमी से डेल्टा क्षेत्र का पर्यावरण धीरे-धीरे प्रभावित होता गया। नतीजतन विश्व की छठा सबसे बड़ा मैनग्रूव वन (पौधे जिनकी जड़ें धरती के ऊपर होती हैं) नष्ट होने लगा और समुद्र 200 कि.मी. अंदर आ घुसा है। कोई हैरानी नहीं कि पिछले 30 सालों के दौरान सिंध के ठट्टा जिले की दो तहसीलें यानी खारो और केटी-बंदर लगभग पानी में समा चुकी हैं। जिला बदीन भी लोगों के व्यापक पलायन से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। यह निरंतर इक_ा होता गया ‘पर्यावरणीय ऋण है, जिसे सूद समेत पाकिस्तान की भावी पीढिय़ों को चुकाना पड़ेगा।

बर्बादी की अगली कड़ी के रूप में पाकिस्तान की केंद्र सरकार ने सिंध सरकार और संसद से सलाह किए बगैर 31 अगस्त को एक अध्यादेश लागू करते हुए कराची तट से सटे बुंदल-बुड्डो नामक जुड़वां द्वीपों को अपने नियंत्रण में ले लिया है। अध्यादेश में पाकिस्तान आइलैंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीडा) के तत्वावधान में तय कर दिया है कि जुड़वां टापुओं का अधिग्रहण करके पानी में मलबा डालकर नयी जमीन पैदा करना और इन्हें व्यापार-निवेश और वस्तु-विपणन का महत्वपूर्ण केंद्र बनाना है, यहां ड्यूटी-फ्री क्षेत्र और पर्यटक आकर्षण स्थल के रूप में भी विकसित किया जाएगा। इस सारे गणित में साफतौर पर चीन का हाथ दिखाई दे रहा है।

कानूनी माहिरों के अनुसार उक्त अध्यादेश संविधान की स्पष्ट उल्लंघना है, जिसके तहत तट से 12 समुद्री-मील तक का जलीय इलाका स्थानीय प्रांतों का अधिकार क्षेत्र है। इसके अलावा, प्रांतीय सीमाओं में बदलाव करने से पहले संविधान में संशोधन करने की जरूरत है जो इस मामले में नहीं किया गया। सिंध सरकार ने इस अध्यादेश को खारिज कर दिया है और संघीय सरकार को इसे वापस लेने को कहा है और टापुओं पर अपनी मल्कियत जताई है।

इन द्वीपों को विकसित करने के प्रयास पहले भी हो चुके हैं। वर्ष 2000 और 2006 में मुशर्रफ सरकार ने यही किया था, किंतु जनता के भारी विरोध के चलते विफल रहे थे। बाद में वर्ष 2013 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार ने भी इसी किस्म का प्रयास किया था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने निर्माण करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

विपक्ष ने नये अध्यादेश को बदनीयत करार दिया है क्योंकि केंद्र सरकार ने इस मामले में संसदीय विधि का रास्ता अख्तियार करने या सिंध सरकार को भरोसे में लेने की बजाय अध्यादेश का सहारा लिया है। दरअसल, उक्त अध्यादेश सूबों को संविधान के 18वें संशोधन के तहत मिले अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है। आशंका यह भी जताई गई है कि हो सकता है कि ताजा आदेश केंद्र द्वारा सिंध और बलूचिस्तान की तट रेखा पर अपना नियंत्रण बनाने की दिशा में पहला कदम हो।

शहर निर्माण और द्वीपों का विकास करने से लगभग 8 लाख मछुआरों की रोजी-रोटी पर संकट बन जाएगा। इस डर ने मछुआरों को एकजुट कर दिया है (यह लोग पहले से ही उनके समुद्री इलाके में मछली पकडऩे वाले चीनी जहाजों की घुसपैठ से परेशान हैं), सिविल सोसाइटी संगठन और अन्य सिंधी राष्ट्रवादी दल, जो सूबाई अधिकारों का हनन और उक्त टापू चीन को बेचने की संभावना से चिंतातुर हैं, ने मिलकर समूचे सिंध राज्य और कराची शहर में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला चला रखा है। सिंध उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है, जिसने संघीय एवं प्रांतीय सरकारों को अपना जवाब 23 अक्तूबर से पहले देने को कहा है।

जिस चालबाजी से संघीय सरकार ने टापुओं को अपने नियंत्रण में लिया है, वह संविधान के प्रावधानों और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों की हुक्म उदली है। आशंका है कि चीन की मिलीभगत है। अध्यादेश के प्रावधान के मुताबिक ‘पीडा प्राधिकरण सीधे प्रधानमंत्री को उत्तरदायी है और उसे यह हक दिया गया है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आती जमीन चाहे तो अपने पास रखे या पट्टे पर दे या फिर बेच दे, किसी अन्य इलाके से अदलाबदली करे या किराए पर दे डाले, यह उसका सर्वाधिकार है।

दूसरे शब्दों में कहें तो अगर प्रधानममंत्री इमरान खाने चाहें तो द्वीप किसी भी निजी व्यक्ति या देश को बेचे जा सकते हैं। इतना ही नहीं, सिंध के राज्यपाल ने लंबी हांकते हुए कहा कि बुंदल टापू दुबई को टक्कर देगा और 50 खरब का निवेश सीधे आकर्षित कर पाएगा। जब से पाकिस्तान दीवालिया हुआ है, यह केवल चीन ही है जो वहां इतनी बड़ी मात्रा में निवेश कर सकता है ताकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा और बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव योजना को आगे बढ़ाया जा सके।

सिंध सूबे के लिए द्वीपों का अधिग्रहण करना कहीं लंबे समय से चली आ रही मांगों में आखिरी कांटा न बन जाए। अगर मामला पारदर्शी ढंग से अमल में लाया गया होता तो संघीय सरकार संवैधानिक प्रावधानों, प्रांतीय अधिकारों, पर्यावरणीय चिंताओं और मछुआरों की रोजी-रोटी पर अतिक्रमण न करती। सिंध में उठ खड़े हुए विरोध के मद्देनजर भले ही इस विषय पर आखिरी शब्द अभी आने बाकी हैं, लेकिन हो सकता है इमरान खान को भी ‘पैक्कावी  (मैंने पाप किया) कहना पड़ जाए, हालांकि इस मर्तबा ‘मैंने सिंध कब्जा लिया वाला छिपा भाव न होगा।

तिलक देवाशर