नीतीश कुमार पहुचे जॉर्ज फर्नांडिस को देखने मुंबई के हॉस्पिटल, बगल में बैठे अटल-आडवाणी

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(www.arya-tv.com) लोकसभा चुनाव 2024 में मौजूदा सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से मुकाबले के लिए विपक्षी दलों ने मिलकर I.N.D.I.A गठबंधन बनाया है। पटना में इस गठबंधन की नींव रखी गई। उसके बाद बेंगलुरु में इंडिया गठबंधन के नेता जुट चुके हैं। अब 31 अगस्त से 1 सितंबर को गठबंधन के नेता मुंबई में बैठक कर लोकसभा चुनाव की रणनीति को लेकर चर्चा करेंगे।

बताया जा रहा है कि मुंबई में होने वाली गठबंधन की बैठक में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी भी शामिल होंगी। इस गठबंधन में गौर करने वाली बात यह है कि इसमें शामिल घटक दलों के बीच काफी अंतर्विरोध रहे हैं। खास बात यह है कि इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस की खिलाफत में ही ये राजनीतिक दल बने हैं।

इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी दलों की बात करें तो 1985 से 1990 के दौरान ये जनता दल बनाकर एकजुट हुए थे, लेकिन कुछ ही दिनों बाद इनका आपस में ही टकराव होने लगे और ये लोग अलग हो गए थे। आज हम उस दौर की बात करेंगे जब जनता दल का विघटन शुरू हुआ था। हम उन बड़े नेताओं की बात करेंगे जिनका सबसे पहले जनता दल से मोह भंग हुआ था।

जनता दल के विघटन की कहानी को समझने के लिए बिहार के सियासत की कहानी पर नजर डालते हैं। 1990 में बिहार में लालू प्रसाद यादव की अगुवाई में जनता दल की सरकार चल रही थी। लालू यादव की कार्यशैली के चलते जनता के बीच पार्टी की छवि खराब हो रही थी। नीतीश कुमार इस बात को भलीभांति समझ रहे थे। पूरे बिहार में बने नकारात्मक माहौल का असर देश के बाकी राज्यों में भी होने लगे थे। समाज के बड़े तबके के बीच जनता दल को लेकर निगेटिव बातें होने लगी थी।

इन्हीं सारी बातों को भांपते हुए जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में 15 सांसदों ने जनता दल से अलग होने का फैसला लिया। इन 15 सांसदों में पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल के सबसे बड़े नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह के रिश्तेदार प्रताप सिंह भी थे। हालांकि पार्टी से अलग होते वक्त प्रताप सिंह डगमगा गए और 21 अप्रैल 1994 को 14 सांसद जनता दल से अलग हो गए। इन 14 सांसदों में बिहार के 10, उत्तर प्रदेश के 3 और ओडिशा के एक सांसद थे। उनके नाम इस प्रकार हैं।

  • मो. यूनुस सलीम (कटिहार, बिहार)
  • जॉर्ज फर्नांडिस (मुजफ्फरपुर, बिहार)
  • नीतीश कुमार (बाढ़, बिहार)
  • सैयद शहाबुद्दीन (किशनगंज, बिहार)
  • अब्दुल गफूर (गोपालगंज, बिहार)
  • मंजय लाल (समस्तीपुर, बिहार)
  • वृषिण पटेल (सीवान, बिहार)
  • हरिकिशोर सिंह (शिवहर, बिहार)
  • रामनरेश सिंह (औरंगाबाद, बिहार)
  • चरणजीत यादव (आजमगढ़, यूपी)
  • मोहन सिंह (देवरिया, यूपी)
  • हरिकेवल सिंह (सलेमपुर, यूपी)
  • रवि राय (केंद्रपाड़ा, ओडिशा)

ऐसे बनी समता पार्टी

इन 14 सांसदों ने जनता दल से अलग होकर जी-14 संगठन बनाया। हालांकि बाद में इन्होंने इसे राजनीतिक दल के रूप में बदल दिया, जिसका नाम जतना दल (जॉर्ज) रखा। माना जाता है कि इन नेताओं की बैठक में नीतीश कुमार ने सलाह दी कि देश में जनता दल के नाम से देश में कई पार्टियां चल रही हैं, जिसके चलते जनता दल (जॉर्ज) कहीं खो ना जाए। लोगों को नीतीश की यह राय समझ में आई और सबकी सहमति से समता पार्टी नाम से नई पार्टी बनाई गई।

गमछा फैलाकर चंदा मांगते जॉर्ज फर्नांडिस

पार्टी बनने के बाद तय हुआ कि जॉर्ज फर्नांडिस बिहार में यात्रा करेंगे। बताया जाता है कि नीतीश कुमार के मैनेजमेंट में यात्रा की शुरुआत हुई। यात्रा की शुरुआत काफी तामझाम के साथ शुरू हुई, लेकिन पांच-सात दिन बाद ही समझ में आया कि फंड की कमी के चलते यात्रा को जारी रखना मुश्किल हो रहा है। इसके बाद जॉर्ज फर्नांडिस यात्रा के दौरान गमछा फैलाकर लोगों से चंदा लेने लगे।

ऐसा नहीं है कि चंदे में लाखों या हजारों रुपये आ रहे थे। बल्कि आम लोग अपनी हैसियत के मुताबिक 100, 50, 10 के नोट के साथ रुपया और अठन्नी के चंदे भी मिलने लगे। जॉर्ज अठन्नी और चवन्नी के चंदे को भी सहर्ष स्वीकारने लगे। समता पार्टी की ओर से शुरू की गई जनयात्रा में फंड की समस्या दूर हुई तो विरोधी आरोप लगाने लगे कि जॉर्ज फर्नांडिस तो मराठी हैं, भला बिहार या उत्तर भारतीय उनपर क्यों भरोसा करे।

उसी दौर में बाला साहेब ठाकरे मुंबई और महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों को खदेड़ने की राजनीति कर रहे थे। इन आरोपों का जवाब देने के लिए जनता दल से बगावत करने वाले सभी 14 सांसदों ने फैसला लिया कि वह जॉर्ज फर्नांडिस की सभी जनसभाओं में एकसाथ दिखेंगे।

कार्यकर्ता बुझाते जॉर्ज के पेट की भूख

इस यात्रा में फंड की इतनी कमी थी कि जॉर्ज फर्नांडिस समेत तमाम नेता रात में किसी भी कार्यकर्ता के घर पर ठहर जाते थे और वहीं खाना-पीना होता था। हालांकि कुछ सांसदों को इस तरह का जीवन जीने का अभ्यास नहीं था, लेकिन फिर वह जॉर्ज के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलते रहे। इस यात्रा को पूरे बिहार में जबदरस्त समर्थन मिल रहा था।

इन 14 सांसदों में कोई भी किसी भी इलाके में जाता तो उनका स्वागत करने के लिए भारी संख्या में लोग जुट जाते। 1994 में समता पार्टी बनने के बाद 1995 बिहार विधानसभा के चुनाव हुए। जनता के अपार समर्थन से उत्साहित होकर समता पार्टी ने संयुक्त बिहार (बिहार+ झारखंड) 310 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उम्मीद थी जनता का समर्थन सीटों में भी बदलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समता पार्टी के 271 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। केवल 7 प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंच पाए।

1995 की हार के बाद मुंबई के हॉस्पिटल की वो कहानी

1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में कारारी हार के बाद समता पार्टी पूरी तरह से टूट चुकी थी। पार्टी आर्थिक रूप से इतनी भी सक्षम नहीं रह गई थी कि वह आगे किसी चुनाव में प्रत्याशी उतार सके। इसी बीज जॉर्ज फर्नांडिस की सेहत खराब हो गई। मुंबई के अस्पताल में उनका इलाज हो रहा था। तभी नीतीश कुमार उनसे मिलने मुंबई पहुंचे तो देखा कि अस्पताल के वार्ड में लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी वार्ड में बैठकर जॉर्ज साहब से बातें कर रहे थे।

ऐसे अटल-आडवाणी के मुरीद हुए नीतीश

मुलाकात का समय पूरा होने के बाद नीतीश कुमार वाजपेयी और आडवाणी को छोड़ने के लिए अस्पताल के नीचे तक आए। इसी दौरान लालकृष्ण आडवाणी ने अपनत्व और अधिकार के साथ नीतीश कुमार को अगले दिन मुंबई में होने वाली बीजेपी की जनसभा में आने का आमंत्रण दिया। इसके बाद नीतीश दोबारा अस्पताल में ही जॉर्ज से मिले और पूछा कि क्या उन्हें अटल-आडवाणी की जनसभा में जाना चाहिए। इसपर जॉर्ज ने जवाब दिया कि आपको जरूर जाना चाहिए।

नीतीश कुमार जब मुंबई की उस जनसभा में पहुंचे तो लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें मंच पर अपने बगल की सीट पर उन्हें बिठाया। इस जनसभा में नीतीश कुमार के भाषण पर खूब तालियां बजी। जनसभा से लौटकर नीतीश कुमार ने बेहद प्रफुल्लित भाव से जॉर्ज को अस्पताल में रैली में मिले सम्मान की सारी बातें बताई। यहां से बीजेपी और नीतीश कुमार का एक ऐसा रिश्ता बना जो लंबे समय तक चलता रहा।

यही वजह है कि नीतीश कुमार आज एनडीए से अलग होने के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लेने से पहले श्रद्धेय कहकर संबोधित करते हैं और उनकी तारीफ करने में कभी भी कंजूसी नहीं करते हैं। बीजेपी के साथ बना नीतीश कुमार का यह रिश्ता नरेंद्र मोदी के विरोध में 2013 में टूटा, जो दोबारा 2017 में जुटा, लेकिन दोबारा 2022 में टूट गया, जो निरंतर जारी है।

आज नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी राजनीतिक दलों को एकजुट रखने के प्रयास में जुटे हैं और इंडिया गठबंधन (I.N.D.I.A) बनाया है।