​बिहार में बदलाव तय! नीतीश पाला बदलेंगे या तेजस्वी तोड़ेंगे JDU की किलेबंदी? दोनों तरफ से गोटी सेट

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(www.arya-tv.com) बिहार में किसी तरह के राजनीतिक परिवर्तन की बात को इंडी अलायंस खेमे के नेता सिरे से खारिज कर रहे हैं। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष से सीएम नीतीश कुमार की अनबन के बीच ललन सिंह के इस्तीफे की अफवाह-अटकलों को मंत्री विजय कुमार चौधरी ने सिरे से खारिज किया है।

नीतीश कुमार भी स्पष्ट कर चुके हैं कि इंडी अलायंस में सब कुछ ठीक है। इसके बावजूद बिहार में अफवाहें रुकने का नाम नहीं ले रहीं। दावा करने वाले तो यह भी कह रहे कि खरमास तक इंतजार कीजिए, सब कुछ साफ हो जाएगा। लेकिन 29 तारीख को ललन सिंह अपना इस्तीफा पेश कर सकते हैं।

आश्चर्य इस बात पर है कि इन बड़े राजनीतिक बदलाव की चर्चाओं के बीच आरजेडी ने चुप्पी साध ली है। यह रहस्य किसी की समझ में नहीं आ रहा। हालांकि हालात के मद्देनजर अनुमान लगाने वाले विश्लेषक मानते हैं कि आरजेडी की चुप्पी को सामान्य ढंग से नहीं लेना चाहिए।

लालू प्रसाद यादव बीमारी से निजात पाने के बाद जिस तरह से सक्रिय हैं और जैसी उनकी इच्छा रही है कि वे तेजस्वी की सीएम के रूप में ताजपोशी जीते जी देख लें, उससे आरजेडी की चुप्पी के रहस्य का अनुमान लगाया जा सकता है।

I.N.D.I.A की बैठक के बाद से लगने लगे कयास

इंडी अलायंस की बैठक के बाद एक बात तो साफ हो गई है कि नीतीश कुमार के लिए कोई जिम्मेवारी वहां नहीं मिलने जा रही। नीतीश न संयोजक बनेंगे और न पीएम पद के दावेदारों में अब उनके लिए कोई स्कोप बचा है।

इसलिए कि मल्लिकार्जुन खरगे का नाम अलायंस की बैठक में प्रस्तावित हो चुका है। उनके नाम पर पिछले दो चुनावों से कांग्रेस के पीएम फेस बनते रहे राहुल गांधी को भी एतराज नहीं है। पीएम पद के संभावित दावेदारों में ममता बनर्जी तो खरगे की प्रस्तावक ही रहीं।

अरविंद केजरीवाल ने भी खरगे का समर्थन कर खुद को दावेदारों की फेहरिस्त से बाहर कर लिया है। नीतीश कुमार ने तो पीएम पद की दावेदारी ही नहीं की। यह अलग बात है कि उनके ना कहने के बावजूद उनकी पार्टी जेडीयू के नेता उन्हें पीएम फेस बनाने की जिद्द पर अड़े रहे हैं।

इंडी अलायंस से नीतीश की नाराजगी के कयास इसलिए लग रहे हैं कि बैठक के बाद वे मीडिया ब्रीफिंग में शामिल हुए बगैर वे पटना लौट आए थे। ललन सिंह अगले दिन पहुंचे। उसी दिन लालू यादव और तेजस्वी यादव भी लौटे थे। नीतीश दिल्ली से लौटने के बाद दो दिनों तक चुप रहे।

अटकलें लगीं कि ललन सिंह आरजेडी के शीर्षस्थ नेताओं से कोई खिचड़ी पका रहे हैं। हालांकि ऐसे आरोप ललन सिंह पर पहले भी लगते रहे हैं कि उनका साफ्ट कार्नर आरजेडी के प्रति है।

फिर शुरू हो गई ललन सिंह के इस्तीफे की चर्चा

उसके बाद ललन सिंह के जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की खबर उड़ी। ऐसी चर्चाओं और अटकलों को तब और बल मिला, जब जेडीयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक के लिए 29 दिसंबर की तारीख तय की।

यहीं से अटकलों का बाजार परवान चढ़ा। इस बीच नीतीश कुमार एक शाम अचानक ललन सिंह के घर चले गए। वहां से उन्हें लेकर विजय चौधरी के आवास पहुंचे। तीनों में क्या गुफ्तगू हुई, यह तो वे ही जानें।

लेकिन मीडिया में अनुमानों पर आधारित यह चर्चा शुरू हो गई कि ललन सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है। लेकिन NBT के सूत्रों ने ये बता दिया कि ललन सिंह पर ऐसा कोई दबाव नहीं है,

वो खुद अपनी मर्जी से 29 दिसंबर की बैठक में अपना इस्तीफा पेश कर सकते हैं। क्यों… ये जानने के लिए नीचे दी गई हमारी खबर ध्यान से पढ़ लीजिए।

बिहार की राजनीति में क्या दिख रहीं संभावनाएं

अब सवाल उठता है कि अगर अटकलों में दम है तो सियासी बदलाव की संभावनाएं क्या-क्या हैं। पहली संभावना तो यह बनती है कि नीतीश कुमार अपने विधायकों के साथ फिर भाजपा से हाथ मिला लें और बिहार में एनडीए की सरकार बन जाए।

इस अनुमान को अधिकतर लोग सही ठहराते हैं, क्योंकि नीतीश पहले भी ऐसा करते रहे हैं। दूसरी संभावना यह है कि आरजेडी ही नीतीश कुमार को किनारे कर बिहार में सरकार बना ले।

आरजेडी की चुप्पी से मिल रहे तूफान के संकेत

बिहार में मची सियासी हलचल के बावजूद आरजेडी खामोश है। उसकी खामोशी को सियासी मामलों के जानकार किसी बड़े तूफान का संकेत मान रहे हैं। आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में जेडीयू को छोड़ कर शामिल दलों के विधायकों की संख्या अभी 115 है।

उसे सरकार बनाने के लिए महज सात-आठ और विधायकों की जरूरत है। आरजेडी बिहार में जिस जातीय समीकरण की राजनीति करता रहा है, उसमें मुस्लिम और यादव शामिल हैं। अगर आरजेडी सच में बदलाव की रणनीति पर काम कर रहा है तो निश्चित ही उसने दूसरे दलों के यादव विधायकों को अपने पाले में करने का बंदोबस्त किया होगा।

अभी विधानसभा में यादव जाति से 52 विधायक हैं। जेडीयू में शामिल दूसरी जातियों से आने वाले विधायकों पर भी आरजेडी की नजर होगी, जो तेजस्वी को सीएम के रूप में देखतना चाहते हैं।

जेडीयू के ही एक विधायक गोपाल मंडल ने इसी साल अगस्त में कहा था कि वे तेजस्वी को सीएम बनते देखना चाहते हैं। ललन सिंह की आरजेडी से नजदीकी का मतलब साफ है कि यादवों के अलावा दूसरी जातियों के विधायक भी तेजस्वी के समर्थन में सामने आ सकते हैं।

आरजेडी के पास स्पीकर तो नीतीश के पास राजभवन का रास्ता

बिहार विधानसभा में स्पीकर अवध बिहारी चौधरी आरजेडी से हैं। लालू परिवार से उनकी नजदीकी जगजाहिर है। ऐसे में अगर जेडीयू के विधायक तेजस्वी के समर्थन में खड़े हो जाएं तो उनकी रक्षा के लिए अवध बिहारी चौधरी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। दल बदल का मामला बनने पर वे इसे लटकाए रख सकते हैं।

ऐसा महाराष्ट्र और झारखंड में देखने को मिल चुका है। बिहार में तो सिर्फ साल भर की तो बात है। चौधरी इतने दिनों तक सुनवाई के नाम पर मामले को लटका कर रख ही सकते हैं। बहरहाल, चर्चाओं और सूत्रों के हवाले से निकल कर बाहर आ रही सूचनाओं के मुताबिक भाजपा अगर जेडीयू के साथ सरकार बनाने की जुगत में लगी भी होगी तो उसके बरक्स आरजेडी भी अपनी तैयारी में जुट गया है।

सूत्र तो यह भी दावा करते हैं कि आरजेडी में अगर निश्चिंतता है तो इसकी वजह यही है कि पार्टी ने अपनी तैयारी कर ली है। उसकी कोशिश यही है कि नीतीश कुमार खुद तेजस्वी के लिए कुर्सी खाली कर दें। ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें बेदखल करने की चाल आरजेडी चल देगा। लेकिन यहीं पर राज्यपाल बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं।