कैंसर के इलाज के लिए वैज्ञानिकों ने खोजा नायाब तरीका, इस तरह पता चलेगा कौन सी दवा मरीज पर करेगी काम

# ## Lucknow

(www.arya-tv.com) कैंसर के इलाज में एक बड़ा सवाल यह होता है कि रोगी के लिए कौन-सी दवा उपयुक्त और असरकारी होगी। उसका सटीक चयन कठिन होता है। लेकिन मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (एमआइटी) और डाना फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने एक नया तरीका खोजा है, जिससे पता चलेगा कि कोई खास दवा किस रोगी के लिए असरकारक होगी। इससे डाक्टरों को उपयुक्त थेरेपी चुनने में आसानी होगी। यह शोध निष्कर्ष ‘सेल रिपोर्ट्स’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ता स्काट मनालिस ने बताया कि इस नई तकनीक में रोगी के शरीर से ट्यूमर की कोशिकाएं निकाल कर उस पर एक दवा का प्रयोग किया जाता है और उसके बाद कोशिकाओं में होने वाले बदलाव को परखा जाता है। यह प्रयोग बारी-बारी से कई अन्य दवाओं को लेकर किया जाता है।

कैंसर की सभी दवाएं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोशिकाओं की वृद्धि रोकने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। ऐसे में यह सोचा गया कि ‘सेल मास’ को माप कर विभिन्न प्रकार के ड्रग मैकेनिज्म के बारे में एक व्यापक जानकारी हासिल की जा सकती है। यह अध्ययन मस्तिष्क के कैंसर ग्लयोब्लास्टोमा पर किया गया। यह कैंसर बड़ी तेजी से फैलता है।

एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका में हर साल करीब 13 हजार लोग इस बीमारी से पीड़ित होते हैं, जबकि भारत में ऐसे रोगियों की संख्या प्रति लाख की आबादी में एक से चार तक की है। यह एक लाइलाज बीमारी है, लेकिन रेडिएशन और कुछ दवाओं से रोगियों का जीवनकाल कुछ समय के लिए बढ़ जाता है। लेकिन अधिकांश रोगी एक-दो साल से ज्यादा नहीं जी पाते हैं।

मौजूदा इलाज में होने वाल परेशानियां : शोधकर्ताओं का कहना है कि यह रोग होने के बाद आपके पास बहुत ज्यादा समय होता है। इसलिए यदि आप पहले छह महीने भी अप्रभावी दवा लेते हैं तो जटिलताएं और बढ़ जाती हैं। ऐसे में नई तकनीक से किसी रोगी के इलाज को लेकर फैसला करने में आसानी होगी।

एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका में हर साल करीब 13 हजार लोग इस बीमारी से पीड़ित होते हैं, जबकि भारत में ऐसे रोगियों की संख्या प्रति लाख की आबादी में एक से चार तक की है। यह एक लाइलाज बीमारी है, लेकिन रेडिएशन और कुछ दवाओं से रोगियों का जीवनकाल कुछ समय के लिए बढ़ जाता है। लेकिन अधिकांश रोगी एक-दो साल से ज्यादा नहीं जी पाते हैं।

मौजूदा इलाज में होने वाल परेशानियां : शोधकर्ताओं का कहना है कि यह रोग होने के बाद आपके पास बहुत ज्यादा समय होता है। इसलिए यदि आप पहले छह महीने भी अप्रभावी दवा लेते हैं तो जटिलताएं और बढ़ जाती हैं। ऐसे में नई तकनीक से किसी रोगी के इलाज को लेकर फैसला करने में आसानी होगी।