कोर्ट की सख्ती के बाद खाली होंगे आवास

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(www.arya-tv.com) सरकारी आवासों पर अनधिकृत कब्जे की प्रवृत्ति बहुत ही गंभीर समस्या है क्योंकि आवंटन की अवधि खत्म हो जाने के बाद भी इस पर काबिज व्यक्ति इसे खाली नहीं करना चाहता। कुछ ऐसी ही स्थिति इन सरकारी आवासों में बीस-बीस, तीस-तीस साल से काबिज विशिष्ट श्रेणी में आने वाले कलाकारों की है।

इस प्रवृत्ति पर न्यायपालिका ने कड़ा रुख अपनाया है। न्यायालय की सख्ती का ही नतीजा है कि आवंटन की अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी सरकारी आवासों पर काबिज नेताओं, सांसदों, पूर्व मुख्यमंत्रियों और पूर्व नौकरशाहों को इन परिसरों से अपने अनधिकृत कब्जे छोडऩे ही नहीं पड़े बल्कि इन पर बकाया राशि का भुगतान भी करना पड़ा है।

इस संबंध में उच्चतम न्यायालय की जुलाई, 2013 के फैसले में की गयी टिप्पणी महत्वपूर्ण है। न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने कहा था कि अनधिकृत कब्जाधारकों को यह सोचना चाहिए कि उनके निर्धारित अवधि से ज्यादा परिसर पर काबिज रहने की वजह से दूसरे के अधिकार का अतिक्रमण होता है। न्यायालय ने यह व्यवस्था भी दी थी कि भविष्य में किसी भी रिहायशी आवास के रूप में चिन्हित सरकारी आवासों को स्मारक नहीं बनाया जाना चाहिए।

निर्धारित अवधि के बाद भी न्यायालय की सख्त टिप्पणियों के बावजूद कत्थक नृत्य सम्राट पंडित बिरजू महाराज और चित्रकार जतिन दास सहित 27 प्रतिष्ठित कलाकारों ने सरकारी आवास खाली करने के नोटिस पर नाराजगी व्यक्त की है।
यह विडम्बना ही है कि उन्होंने दो से तीन दशक तक सरकारी आवास की सुविधा लेने के बाद भी संस्कृति क्षेत्र की उभरती हुई प्रतिभाओं की आवास की समस्याओं के बारे में कभी नहीं सोचा।

न्यायालय ने कहा था कि अनधिकृत कब्जाधारकों को ध्यान रखना चाहिए कि अधिकार और कर्तव्य का परस्पर संबंध है जैसे कि एक व्यक्ति के अधिकार दूसरे व्यक्ति के कर्तव्यों से मिले हुए हैं, उसी तरह एक व्यक्ति के कर्तव्य दूसरे व्यक्ति के अधिकार से जुड़े हैं।राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े इन कलाकारों को न्यूनतम लाइसेंस शुल्क पर तीन-तीन साल के लिये राजधानी में आवास आवंटित किये गये थे, जिसकी अवधि तीन साल और बढ़ाई गयी थी।

आवास आवंटन की अवधि खत्म हो जाने के बाद भी यह अपने प्रभाव की वजह से अभी तक इन कोठियों में रह रहे हैं। इन कलाकारों के सरकारी आवासों का आवंटन 2014 के बाद आगे नहीं बढ़ाया गया था।इन कलाकारों को 31 दिसंबर, 2020 तक सरकारी आवास खाली करने का नोटिस दिया गया है।

संस्कृति मंत्री के हवाले से प्रकाशित खबरों के अनुसार अगर ये कलाकार 31 दिसंबर तक आवास खाली कर देंगे तो उन पर बकाया राशि माफ कर दी जायेगी अन्यथा उन्हें इन परिसरों की मद में बकाया राशि का भुगतान करना होगा।जहां तक बकाया राशि माफ करने का सवाल है तो न्यायालय के इसी फैसले में कहा गया था कि आवास के शुल्क या इसे हुए नुकसान की बकाया राशि की वसूली सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारकों की बेदखली) कानून, 1971 की धारा 14 के तहत भू-राजस्व के बकाये रूप में एकत्र की जायेगी।

केन्द्र सरकार की 70 के दशक की नीति के तहत राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त कलाकारों के लिए दिल्ली में सरकारी आवासों का एक कोटा निर्धारित किया गया था। संस्कृति मंत्रालय की समिति की अनुशंसा पर 40 से 70 साल की आयु वर्ग के ख्यातिप्राप्त कलाकारों को ये आवास न्यूनतम लाइसेंस शुल्क पर आवंटित किये गये थे।

आवास के आवंटन की पात्रता के लिए इसमें प्रावधान था कि ये आवास उन्हें ही आवंटित किये जायेंगे, जिनके पास राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अपना घर नहीं है। उच्चतम न्यायालय के सख्त रुख और उसके निर्देशों का ही नतीजा है कि केन्द्र सरकार ही नहीं, बल्कि राज्य सरकारों को भी बड़ी संख्या में सरकारी कोठियों को खाली कराने में सफलता मिली है।

राज्यों में भी पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास आवंटित करने की नीति थी, जिस पर उच्चतम न्यायालय की सख्ती ने अंकुश लगाया और इस वजह से पूर्व मुख्यमंत्रियों को ऐसे भव्य आवास खाली ही नहीं करने पड़े बल्कि उनके लिए निर्धारित बकाया किराये का भी भुगतान करना पड़ा है।

उत्तराखंड के कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों के मामले में उच्च न्यायालय ने अवमानना का नोटिस जारी किया तो महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी और मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल सरीखे नेताओं को उच्चतम न्यायालय की शरण लेनी पड़ी है।उम्मीद की जानी चाहिए कि इन कलाकारों के अनधिकृत कब्जे से सरकारी आवास मुक्त हो जायेंगे। अनूप भटनागर