लखनऊ। आर्यकुल ग्रुप ऑफ कॉलेज में 13 फरवरी को हर साल की तरह इस बार भी विश्व रेडियो दिवस मनाया गया। कॉलेज के बच्चों ने अभिनय के माध्यम से एक रेडियो प्रोग्राम का चित्रण किया।
इस मौके पर कॉलेज के प्रबंध निदेशक सशक्त सिंह भी मौजूद रहे। बच्चों का हौसला बढ़ाते हुए उन्होंने कार्यक्रम की बहुत तारीफ की और कहा कि ऐसे कार्यक्रम भविष्य में होते रहें। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भविष्य में आर्यकुल का अपना कैम्यूनिटी रेडियो होगा, जिसमें आप सभी को काम करने का मौका मिलेगा।
रेडियो पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि एक समय था जब रेडियो हमारे जीवन का काफी अहम हिस्सा हुआ करती थी। सूचना, संचार और गीतों के माध्यम से मनोरंजन के अहम माध्यम के तौर पर रेडियो का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन टेलिविजन और मोबाइल जैसी चीजें आने के बाद रेडियो का पहले जैसा इस्तेमाल नहीं हो रहा है। बावजूद इसके अब भी इसका महत्व कम नहीं हुआ।
इस मौके पर रेडियो पर पीएचडी कर चुकी पत्रकारिता विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर रेखा सिंह ने रेडियो के इतिहास और उसकी शुरुआत पर प्रकाश डाला। इस पूरे कार्यक्रम के सुनियोजन में आरती भट्ट व प्रिया गौड़ की अहम भूमिका रही।
आखिर क्यों मनाते हैं रेडियो दिवस?
मौजूदा समय में रेडियो सूचना फैलाने का सबसे शक्तिशाली लेकिन सस्ता माध्यम है। हालांकि रेडियो सदियों पुराना माध्यम हो गया लेकिन अब भी संचार के लिए इसका इस्तेमाल होता है। इसके अलावा 1945 में इसी दिन यूनाइटेड नेशंस रेडियो से पहली बार प्रसारण हुआ था। रेडियो की इन अहमियतों को देखते हुए हर साल रेडियो दिवस मनाया जाता है। औपचारिक रूप से पहला विश्व रेडियो दिवस 2012 में मनाया गया।
इतिहास
स्पेन रेडियो अकैडमी ने 2010 में पहली बार इसका प्रस्ताव रखा था। 2011 में यूनेस्को की महासभा के 36वें सत्र में 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस घोषित किया गया। 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के तौर पर यूनेस्को की घोषणा को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 14 जनवरी, 2013 को मंजूरी दी।
कैसे मनाया जाता है?
हर साल यूनेस्को दुनिया भर के ब्रॉडकास्टर्स, संगठनों और समुदायों के साथ मिलकर रेडियो दिवस के अवसर पर कई तरह की गतिविधियों का आयोजन करता है।
इस दिन संचार के माध्यम के तौर पर रेडियो की अहमियत के बारे में स्वस्थ चर्चा की जाती है और जागरूकता फैलाई जाती है। इस विषय पर भाषण दिया जाता है।
इस साल की थीम
वर्ल्ड रेडियो डे 2020 का विषय ‘रेडियो और विविधता’ है। जैसा की शीर्षक से ही स्पष्ट है इस बार की थीम विविधता और बहुभाषावाद पर केंद्रित है।