(www.arya-tv.com) नोएडा में भ्रष्टाचार के ट्विन टावर रविवार को गिरा दिए गए। इसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 26 सरकारी अफसरों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। CM ऑफिस से इन अफसरों की लिस्ट भी जारी हो गई है। टावर बनते समय ये अफसर किसी न किसी पद पर नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी में तैनात थे। इनके संरक्षण में ही इमारत को 15 से 32 मंजिल बनाने की मंजूरी दी गई थी।
खास बात यह है कि CM ऑफिस से जो लिस्ट जारी हुई है, उसमें से अधिकतर अफसर रिटायर हो चुके हैं। तत्कालीन अफसरों के अलावा सुपरटेक लिमिटेड के चार निदेशक और आर्किटेक्ट भी आरोपियों की लिस्ट में शामिल हैं।
टावर बनने के दौरान मोहिंदर सिंह अथॉरिटी के CEO थे
नोएडा के सेक्टर 93A में ट्विन टावर को बनाने की शुरुआत 2006 में हुई थी। उस समय मोहिंदर सिंह नोएडा अथॉरिटी में बतौर CEO तैनात थे। लिस्ट में सिंह और उनके बाद नियुक्त हुए पांच CEO के नाम शामिल हैं। इन सभी के कार्यकाल में टावर को बनाने या उसकी ऊंचाई बढ़ाए जाने को मंजूरी दी गई थी।
यूपी के अपर मुख्य सचिव बोले- सभी के खिलाफ कार्रवाई होगी
अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने कहा भ्रष्टाचार पर एक्शन जारी रहेगा। पहली बार इतना बड़ा निर्माण कराया गया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया है। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। नोएडा में भ्रष्टाचार की इमारत जमींदोज कर दी गई। इस मामले में शामिल सभी अधिकारियों की लिस्ट तैयार की गई है।
सुपरटेक को कुल कितना नुकसान हुआ है?
सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट में एक 3 बीएचके अपार्टमेंट की लागत लगभग 1.13 करोड़ रुपए बताई गई थी। दोनों इमारतों में करीब 915 फ्लैट थे, जिससे कंपनी को करीब 1,200 करोड़ रुपए की कमाई होती। कुल 915 फ्लैटों में से लगभग 633 बुक किए गए थे और कंपनी ने होमबॉयर्स (जो लोग इन्हें खरीद रहे थे) से लगभग 180 करोड़ रुपए इकट्ठा किए। अब कंपनी को इन लोगों के पैसे 12 % ब्याज के साथ लौटाने को कहा गया है।
क्या है ट्विन टावर के भ्रष्टाचार की गाथा?
ट्विन टावर ध्वस्त किया गया तो हर कोई सवाल कर रहा है कि आखिर यह क्यों टूटा? इस मामले में क्या हुआ था? इसका जवाब है कि नोएडा के ट्विन टावर निर्माण में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था। नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों ने रियल इस्टेट कारोबारी के साथ मिलकर भ्रष्टाचार किया। भ्रष्टाचार की इस गाथा की शुरुआत का साल है आज से करीब 18 साल पहले वर्ष 2004। नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 93ए में ग्रुप हाउसिंग के प्लॉट नंबर 4 का आवंटन 23 नवंबर 2004 को एमराल्ड कोर्ट को कर दिया।
ग्रुप हाउसिंग सोसायटी को नोएडा अथॉरिटी की ओर से 14 टावर निर्माण के नक्शे का आवंटन किया गया। ग्रुप हाउसिंग सोसायटी में सभी 14 टावरों के लिए जी+9 यानी ग्राउंड फ्लोर के साथ 9 मंजिला पास किया गया। इसके बाद शुरू हुआ बिल्डर और अथॉरिटी के बीच का खेल। करीब 2 साल बाद 26 नवंबर 2006 को अथॉरिटी ने ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के नक्शे में पहला संशोधन किया। बिल्डर को दो मंजिल और निर्माण की मंजूरी दे दी गई।
मतलब, सभी 14 टावर में अब 9 की जगह 11 मंजिल का निर्माण करने की अनुमति दे दी गई। फिर दो और टावर निर्माण की मंजूरी दी गई। टावर 15 और टावर 16 को भी 11 मंजिल इमारत के निर्माण का नक्शा दिया गया। टावर की ऊंचाई 37 मीटर निर्धारित की गई थी।टावरों के निर्माण योजना में लगातार बदलाव हो रहे थे। इसी क्रम में 26 नवंबर 2009 को ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के टावर नंबर- 17 का नक्शा पास किया गया।
टावर नंबर 16 के नक्शे में संशोधन किया गया। नए नक्शे के मुताबिक, टावर नंबर 16 और 17 के 24 मंजिला निर्माण की मंजूरी दी गई। अब इसकी ऊंचाई 73 मीटर निर्धारित की गई। मामला यहीं नहीं थमा। भ्रष्टाचार की पेट जैसे-जैसे भरी जा रही थी, टावर की ऊंचाई उसी हिसाब से बढ़ती जा रही थी। टावर के नक्शे में तीसरा संशोधन 2 मार्च 2012 को किया गया। नए संशोधन के तहत टावर नंबर 16 और 17 के लिए फ्लोर एरिया रेशियो बढ़ा दिया गया। नए FIR के तहत दोनों टावरों की ऊंचाई 40 मंजिला करने की इजाजत दे दी गई। नए संशोधन के बाद बिल्डिंग की ऊंचाई 121 मीटर तय की गई।