(www.arya-tv.com) ”संविधान समिति ने ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान चुना, फिर वंदे मातरम् की मांग क्यों? वंदे मातरम राष्ट्रगान नहीं है इसलिए ये वैकल्पिक होना चाहिए कि इसे गाया जाये या नहीं या ये स्पष्ट कीजिए कि आप राष्ट्रगान को क्यों नकार रहे है?”
भारिप बहुजन महासंघ (बीबीएम) के नेता प्रकाश आंबेडकर इसी हफ़्ते महाराष्ट्र के परभणी जिले में एक कार्यक्रम में ये बातें कह रहे थे.
उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने वंदे मातरम् का विरोध किया है और हम भी इसका विरोध करते हैं.
अभी तक एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी और कुछ मुस्लिम संगठनों ने ही वंदे मातरम् की अनिवार्यता का विरोध किया है. अब इसमें आंबेडकर का नाम भी शामिल हो गया है.
क्या कहतें हैं प्रकाश आंबेडकर
प्रकाश आंबेडकर ने बीबीसी को बताया, “‘जन गण मन’ राष्ट्रगान होते हुए भी वंदे मातरम् गाने के लिए जबरदस्ती क्यों की जाती है? भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ हो या वंदे मातरम् इस पर संविधान समिति में चर्चा हुई थी. संविधान समिति ने सबकी सहमति से ‘जन गण मन’ को चुना था. इसलिए हम उसका सम्मान करते है.”
वह कहते हैं, “राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारी कानूनी जिम्मेदारी है और नैतिक कर्तव्य भी है. इसके लिए हम प्रतिबद्ध है. लेकिन, वंदे मातरम् भी गाया जाए, ऐसा कोई कानून नहीं कहता.”
वंदे मातरम् और एआईएमआईएम का गठबंधन
एआईएमआईएम वंदे मातरम् का विरोध करती आई है. वहीं, हाल ही में चुनावों के लिए एआईएमआईएम और भारिपा बहुजन महासंघ का गठबंधन हुआ है. क्या इन्हीं संदर्भों में वंदे मातरम् का विरोध हो रहा है?
इस पर प्रकाश आंबेडकर कहते हैं, “वंदे मातरम गाने के लिए जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए. यही बात हमने शुरू से कही है. इसलिए जब-जब वंदे मातरम् गाने का आग्रह किया जाता है, हम यही बात दोहराते हैं.
प्रकाश आंबेडकर के इस बयान पर बीजेपी ने अहसमति जताई है. उनका कहना है कि वंदे मातरम् को संविधान ने मान्यता दी है. इसलिए उसे पूरा सम्मान दिया जाना चाहिए.बीजेपी प्रवक्ता माधव भंडारी ने कहा, “वंदे मातरम्, स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है. इस गीत से स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा मिलती है. प्रकाश आंबेडकर को पहले ये इतिहास पढ़ना चाहिए, फिर टिप्पणी करनी चाहिए.”
वंदे मातरम् का इतिहास
वंदे मातरम् का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है. बांग्ला भाषा के शीर्ष साहित्यकारों में गिने जाने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम् की रचना 1870 के दशक में की थी.
बाद में बंकिम चंद्र के उपन्यास ‘आनंद मठ’ में वंदे मातरम को भी शामिल किया गया जो देखते-देखते पूरे देश में राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने इसके लिए धुन तैयार की और वंदे मातरम् की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ने लगी.
बंकिम चंद्र के उपन्यास ‘आनंद मठ’ पर आधारित एक फ़िल्म भी बनी है जिसमें वंदे मातरम् एक गीत है.