सांप की जीभ दो नोंक वाली ही क्यों होती है? जानें खास बात

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(www.arya-tv.com) इंसान सहित कई जीवों की एक जीभ होती है, लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि सांप की जीभ दो हिस्से में क्यों बंटी होती है? आज जानेंगे.
सांप की जीभ को वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग कहा जाता था, जिसके पता साल 1900 के बाद चला था. यह अंग जमीन पर रेंग कर या लगभग रेंग कर चलने वाले जीवों में पाया जाता है. यह अंग सांप की नाक के चेंबर के नीचे होता है. जब यह हवा में निकालकर अपनी जेब लहराता है तो बाहर की गंध के कण जीभ पर चिपक जाते हैं और सांप को पता चल जाता है कि आगे क्या है या क्या हो सकता है.

जीभ पर वोमेरोनेजल अंग से निकलने वाले कण होते हैं, जो गंध को पहचानने की क्षमता रखते हैं. गंध को महसूस करने के बाद ये कण जब सांप के मुंह में जाते हैं तो सांप के दिमाग में यह संदेश पहुंच जाता है कि आगे आगे खतरा है या खाने लायक कोई जीव. सांप जब हवा में अपनी जीभ लहराता है तो वह इसके दोनों सिरों को काफी दूर तक अलग रख कर लहराते हैं, जिससे कि ज्यादा बड़े क्षेत्र और दिशा से गंध को पहचान सकें.

सांपों की जीभ अलग-अलग रंग की हो सकती है. कुछ साँपों की जीभ क्रीम, नीली या लाल होती हैं, जबकि कुछ में इनमें से दो रंगों का मिश्रण होता है. अधिक दिलचस्प बात यह है कि कुछ साँपों की जीभ बिल्कुल काली होती है. जो अक्सर कम दिखाई देते हैं. सांपों की सामान्य जीभ नहीं होती. वे “देखते” हैं मुंह में एक संवेदी अंग का उपयोग करना जिसे जैकबसन अंग कहा जाता है.