(www.arya-tv.com) चीन और रूस पिछले कुछ समय से एक-दूसरे के नजदीक आते दिख रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन बीते दिनों चीन पहुंचे थे। लेकिन रूसी राष्ट्रपति ने जी-20 समिट के लिए भारत का दौरा नहीं किया था। चीन और रूस की दोस्ती धीरे-धीरे मजबूत हो रही है। ये भारत सहित पश्चिमी देशों के लिए चिंता का सबब है।
इस बीच भारत को क्रूड ऑयल बेच रहे रूस ने चीन की करेंसी में भुगतान करने की मांग की है। लेकिन मोदी सरकार ने क्रूड ऑयल इंपोर्ट के लिए चीन की करेंसी में पेमेंट करने के रूसी ऑयल सप्लायर्स के दबाज को खारिज कर दिया है। भारत ने इसपर आपत्ति जताई है। इसकी वजह दिल्ली और बीजिंग के बीच जारी तनाव है।
रूस को करना पड़ रहा संघर्ष
भारत के साथ कारोबार करके रूस ने अरबों डॉलर रुपये की संपत्ति जमा कर ली है। लेकिन इसका इस्तेमाल करने के लिए उसे संघर्ष करना पड़ रहा है। दरसअल पिछले वर्ष में चीन की करेंसी युआन की मांग तेजी से बढ़ी है।
ऐसे में अर्थव्यवस्था इंपोर्ट के लिए चीन पर ज्यादा निर्भर हो गई है। रूस के कारोबारी अपना ज्यादातर बिजनस युआन में ही कर रहे हैं। इस वर्ष रूस में डॉलर की जगह चीनी मुद्रा सबसे ज्यादा कारोबार वाली करेंसी बन गई है।
कच्चे तेल का बड़ा सप्लायर
बता दें की रूस भारत के लिए क्रूड ऑयल का शीर्ष सप्लायर है। भारतीय रिफाइनरी ज्यादातर रूसी तेल इंपोर्ट के लिए दिरहम, अमेरिकी डॉलर और थोड़ी सी रकम में रुपये का भुगतान करती हैं। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक, युआन का उपयोग कभी-कभी छोटे लेनदेन में किया जाता है।
रूसी तेल आपूर्तिकर्ता अनुरोध कर रहे हैं कि चीनी मुद्रा तेल व्यापार के लिए लेनदेन की मुख्य इकाई हो।