प्रयागराज के विजय पांडेय ने पारंपरिक खेती को बदला व्यवसायिक खेती में, जानें कैसे

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प्रयागराज (www.arya-tv.com) मन में हौसला हो ओर कुछ कर गुजरने की क्षमता हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता। ऐसे लोग समाज को आइना दिखा देते हैं कि आपदा में भी अवसरों की कमी नहीं है। मौका मिलने पर उसे चूकना नहीं चाहिए। इसके लिए लगन और दृढ़ संकल्प शक्ति की जरूरत है। कुछ इसी तरह का जज्बा और जुनून प्रयागराज में करछना क्षेत्र के देवरी कला गांव निवासी विजय पांडे ने भी दिखाई है। जानें इनकी उपलब्धि की दास्‍तां।

लाकडाउन की क्षति पूरी करने के लिए कुछ अलग करने की ठानी

विजय पांडेय इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से स्‍नातक करने के बाद गुजरात चले गए थे। बड़ोदरा में वह पिछले 15 वर्षों से खुद का ट्रांसपोर्ट कारोबार करने लगे। पिछले वर्ष करोना महामारी के चलते लाकडाउन होने से कारोबार ठप हो गया। आपदा की मार झेल न सके तो साथ में रह रहे छोटे भाई को अपना कारोबार सौंप कर विजय घर लौट आए।

घर लौटने के बाद जीविका चलाने के लिए कई प्रकार की विषम परिस्थितियां उत्पन्न होने लगी। ऐसी दशा में उन्होंने लाकडाउन में हुई क्षति की भरपाई करने के लिए खेती के माध्यम को चुना और कुछ अलग करने की ठानी।

यूट्यूब का सहारा लेकर विजय ने पपीते की खेती की

विजय को खेती करने का ज्यादा अनुभव न होने के कारण यूट्यूब का सहारा लिया। गांव में हो रहे पारंपरिक खेती को दरकिनार कर 10 विश्वा खेत में व्यवसायिक खेती करना शुरू कर दिया। उन्होंने महज 40 हजार रुपये की लागत से जैविक खाद के माध्यम से ग्रीन लेडी 786 प्रजाति के पपीता की खेती करना शुरू किया किया। इसमें कुल 350 पौधे लगाए। फसल के रखरखाव के लिए खेत के चारों ओर बांस-बल्ली लगाकर जाल से घेर दिया।

11 माह के परिश्रम ने दिया फल, हो रहा मुनाफा

11 महीने के कड़ी मेहनत ने सफलता दिलाई। पपीते के फल ने आर्थिक संकट को दूर किया। अब वे क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए इन दिनों नजीर बने हुए हैं। उनसे प्रेरित होकर क्षेत्र के कई किसान पारंपरिक खेती से हटकर व्यवसायिक खेती करने की मन बना रहे हैं। एक पेड़ में लगभग 80 से 90 किलो पपीता की उपज हो रही है। पपीता खरीदने के लिए अब कई व्यापारी भी विजय पांडे से संपर्क करने लगे हैं। पपीता की मांग अधिक होने से तीन से चार लाख रुपये मुनाफा होने की संभावना है।