सिपाही ने DGP से पूछा सवाल, बताओ मेरी छुट्टी क्यों मंजूर नहीं हुई

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लखनऊ(राहुल तिवारी)। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के कुछ दिनों बाद जहां पुलिस नियमावली में काफी बदलाव हुए जिसमें सबसे बड़ा नियम बार्डर स्कीम बनायी गई। इसमें किसी भी पुलिसकर्मी को गृह जनपद व उसके आस पास जिले में तैनाती नहीं मिल पायेगी। वहीं आज तक प्रदेश में जितनी भी सरकारें बनीं उसमें सबसे ज्यादा पुलिस महकमे को बजट जारी करने में योगी सरकार का सबसे बड़ा कदम रहा, लेकिन सन्यासी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की पुलिस बार्डर स्कीम व भारी भरकम बजट को भ्रष्ट अधिकारियों की भेंट चढ़ता दिख रहा है और बार्डर स्कीम भी। हां बार्डर स्कीम पुलिस महकमे के दरोगा व सिपाहियों के लिए जरूर कारगर साबित हुई, लेकिन पुलिस के आलाधिकारियों के लिए सरकार की बार्डर स्कीम तनिक भी मायने नहीं रखती है जिसका उदाहरण देखने को मिल सकता है जनपद गोरखपुर जहां खुद सन्यासी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी रहते हैं और वही उनका गढ़ भी माना जाता है जहां के आई जी रेंज जय नारायण सिंह है जो पूर्व में आई जी रेंज लखनऊ भी रहे हैं।

बताते चलें कि आई जी रेंज जय नारायण सिंह का गृह जनपद आजमगढ़ है जो कि गोरखपुर से महज 45 किमी दूर है यानी बार्डर क्या बार्डर स्कीम पुलिस के इस अफसर के लिए लागू नहीं होती ?? क्या 1961 में बना अंग्रेजों का कानून केवल सिपाही व दरोगाओं के लिए ही बना है कुशी नगर जिले में डायल 100 में तैनात सिपाही जनार्दन सिंह ने गोरखपुर एम्स में भर्ती अपनी पत्नी के इलाज के लिए आई जी रेंज गोरखपुर जय नारायण सिंह से जब छुट्टी मांगी तो उन्होंने अस्वीकृत कर दिया जिससे तिलमिलाए सिपाही ने पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश से तीन बिन्दुओं पर सवाल पूछते हुए कहा कि मुझे बताया जाये कि मेरी छुट्टी क्यों अस्वीकृत की गई,दूसरा सवाल जब आई जी जय नारायण सिंह का गृह जनपद आजमगढ़ है तो फिर गोरखपुर में तैनाती क्यों? तीसरा सवाल अगर मेरी पत्नी को कुछ हो जाता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? शायद सिपाही के इन सवालों का जवाब भी पुलिस के मुखिया के पास न हो क्यो की आज प्रदेश में अन्धेर नगरी चौपट राजा वाली दशा काफी तेजी से चल रही है शायद योगी जी को भी नहीं पता कि पुलिस महकमे में क्या हो रहा शायद यह सब २०२२ में पता चल सकता है क्योंकि वोट डालने पुलिस के अधिकारी कम और सिपाही व उसका परिवार ज्यादा जाता है।

वहीं आज न तो प्रदेश के थानों का विकास हुआ न तो वहां के आवासों का न तो पुलिस लाइन की बैरकों का ही वो आज भी जस के तस पड़े हैं तो फिर 700 करोड़ रुपए का बजट कहां गया डीजीपी साहब आज पुलिस महकमे में बैठे बड़े अफसर योगी सरकार को गुमराह करने का काम कर रहे हैं ताकि सन्यासी मुख्यमंत्री की छवि धूमिल हो सके और २०२२ में जनता भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने का काम कर सके लखनऊ सबसे बड़ा उदाहरण हैं जहां एक साल में तमाम हाई प्रोफाइल घटनाओं का ग्राफ काफी तेजी से बड़ा सितंबर तो हत्याओं का गुजरा लेकिन मुख्यमंत्री जी ने जरा भी नैथानी साहब से नहीं पूछा तेज तर्रार अफसरों को महकमे में बैठे चाटुकार अधिकारियों ने लखनऊ से बाहर का रास्ता दिखा दिया आज पूरे प्रदेश में पुलिस महकमे की थू थू हो रही है और अधिकारी केवल सरकार के सामने अपनी पीठ थपथपाने में लगे हैं।