(www.arya-tv.com) शुगर मरीजों के लिए छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (CSJMU) कानपुर में जैविक मेडिसिन तैयार की गई है। जैविक उत्पाद का प्रयोग करके एक ऐसी दवा तैयार की गई है जो कि तेजी से ब्लड शुगर के स्तर को घटाने में कारगर होगी। इस दवा का पहले स्टेप में चूहों पर ट्रायल किया जा रहा है। दवा को बनाने में तो सफलता मिल गई है। अब चूहों पर ट्रायल सफल होने के बाद इसे जल्द मार्केट में उतारे जाने की भी योजना बना ली गई है।
इंजेक्शन देने की जरूरत नहीं
चूहों में ट्रायल पूरा होने के बाद दूसरे स्टेप में इस दवा का प्रयोग किसी बड़े जानवर पर किया जाएगा। विश्वविद्यालय ने मेडिसिन को मार्केट में लाने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है। हर स्टेप पर ट्रायल सफल होने के बाद आईसीएमआर से परमिशन मिलने के बाद इसको मार्केट में लाया जाएगा। इसकी कीमत भी अन्य दवा से कम होगी। जैविक उत्पाद से तैयार होने के कारण यह शुगर को तेजी से कम करने में साहयक होगी। इस दवा को देने के बाद इंजेक्शन देने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
एनिमल हाउस में हो रहा trail
विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी ने बताया कि इस दवा पर डॉ. अनुराधा कलानी और टीम अभी काम कर रही है। कानपुर विश्वविद्यालय के डिसीज इंफेक्शन बायोलाजी एनिमल हाउस में इस दवा का ट्रायल किया जा रहा है। लैब में चूहों की डायबिटीज को बढ़ाया जा रहा है। इसके बाद प्लांट्स के एंजाइम से तैयार की गई दवा को इंजेक्शन और नार्मल ड्रिंकिंग के माध्यम से दिया जा रहा है। दवा के शुरुआती ट्रायल में विशेषज्ञयों को काफी कुछ सफलता मिली है। अभी यह देखी जा रहा है कि दवा इंजेक्शन या नार्मल ड्रिंकिंग किससे ज्यादा फायदा कर रही है। दोनों से देने में क्या अंतर है।
दवाएं पूरी तरह से जैविक नहीं होती
उन्होंने बताया कि कानपुर विश्वविद्यालय की लैब में तैयार की जा रहा दवा मार्केट में मिल रही दवा से बिल्कुल अलग है। इसको पेड़-पौधों की पत्तियों के रसों से तैयार किया जै रहा है। उदाहरण के तौर पर हल्दी से करक्यूमिन लिया गया है। इसी तरह अलग अलग पेड़ से अलग अलग एंजाइम्स को लिया गया है। यह दवा पूरी तरह से जैविक और तत्काल रिलीफ देने वाली है, जबकि मार्केट में शुगर कम करने के लिए बिकने वाली दवाएं पूरी तरह से जैविक नहीं होती हैं। कहीं न कहीं उनका किसी न किसी रूप में साइड इफेक्ट भी होता है।
ताकि दवा की कीमत न ज्यादा न हो।
दवा को मार्केट में लाने के लिए सुपर प्लान को तैयार किया गया है। दवा का ट्रायल पूरा होने के बाद इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की परमिशन के बाद इसको मार्केट में लाया जाएगा। विश्वविद्यालय अपने इनोवेशन फाउंडेशन के जरिए किसी स्टार्टअप कंपनी के माध्यम से इस मेडिसिन को मार्केट में लाने की तैयारी की गई है। इसके अलावा यदि कोई स्टार्टअप मेडिसिन को मार्केट में लाने के लिए नहीं मिला तो दवा का मैथड और टेक्निक किसी स्वदेशी कंपनी को शर्तों के साथ ट्रांसफर की जाएगी। स्वदेशी कंपनी को इसलिए ट्रांसफर किया जाएगा ताकि दवा की कीमत न ज्यादा न हो।