ले. जनरल हुड्‌डा ने कहा- आपदा के इस दौर में सेना की 10% क्षमता का इस्तेमाल हुआ

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(www.arya-tv.com)कोरोना राष्ट्रीय आपदा से अलग नहीं है। आपदा की घड़ी में भारतीय सेना की 10% क्षमता का ही उपयोग किया गया। खासकर ऑक्सीजन संकट की स्थिति में सेना बेहतर भूमिका निभा सकती थी। यह कहना है भारतीय सेना की पश्चिमी कमान के पूर्व प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) डीएस हुड्‌डा का।

पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के कमांडिंग ऑफिसर रहे और भूकंप व बाढ़ जैसी बड़ी आपदाओं में स्थिति नियंत्रण का खासा अनुभव रखने वाले जनरल हुड्‌डा से ने महामारी के दौरान सेना की भूमिका पर चर्चा की। पढ़िए प्रमुख अंश

क्या यह संकट सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़ा है?
नहीं! यह संकट राष्ट्रीय आपदा भी है। हमारी यूनियन वॉर बुक में स्पष्ट बताया गया है कि युद्ध के समय कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए। सरकार के विभिन्न अंगों को कैसे काम करना चाहिए। मंत्रालयों को किस तरह साथ मिलकर जुटना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन, लॉजिस्टिक को लेकर भी मुश्किलें हैं। लोगों तक सही सूचना पहुंचे यह भी अहम है।

जब देश में ऑक्सीजन सरप्लस है तो ये सप्लाई का संकट कैसे पैदा हो गया?
दरअसल सही जगह, समय पर ऑक्सीजन न पहुंचने से समस्या हुई। इसके लिए लोगों को सही जगह नियुक्त करना था। दिल्ली में एक राष्ट्रीय कंट्रोल सेंटर बन सकता था। जरूरत सिर्फ सिस्टम की मॉनिटरिंग की है। इससे सिस्टम स्ट्रीमलाइन होता और पारदर्शिता भी आती।

यह संकट हफ्तेभर से ज्यादा से जारी है, क्या सप्लाई में तेजी लाई जा सकती है?
इस मामले मे समन्वय की जरूरत ज्यादा है। पर्याप्त संसाधन इस्तेमाल किए जाते तो समस्या बड़ी नहीं होती। पहली बार ट्रेन को छह दिन लगे। फिर हर दिन दो ट्रेनें आ-जा सकती हैं।

क्या सेना से ली जा रही मदद पर्याप्त है?
सेना ने वॉरशिप लगाए, फील्ड अस्पताल बनाए हैं। पर अभी भी सेना की क्षमता का 10% ही इस्तेमाल हो सका है। यहां हर क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। इनकी क्षमता का इस्तेमाल होना चाहिए था। इसके अलावा सेना के जुटने से लोगों में भरोसा जगता कि चलो कोई सक्षम संगठन हमें देख रहा है। तब लोग खुद को असहाय नहीं महसूस करते।

अगर आप इस महामारी के लिए वॉर रूम बनाते और नेतृत्व करते तो वह कैसा होता?
सबसे पहले देशव्यापी कम्युनिकेशन नेटवर्क की जरूरत है। सेना तत्काल यह सेटअप कर सकती है। इससे जमीनी जरूरतों का पता चल पाता।