बांग्लादेश में 5वीं बार शेख हसीना बनी प्रधानमंत्री, अब भारत से गहरी होगी दोस्ती

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(www.arya-tv.com) बांग्लादेश चुनाव के नतीजे सोमवार को आए, जिसमें शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को फिर से बहुमत मिला। 7 जनवरी को हुए 12वें संसदीय चुनाव में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल अवामी लीग के साथ-साथ 27 राजनीतिक दलों ने भागीदारी की।

चुनाव का बहिष्कार

बांग्लादेश में लगभग 44 रजिस्टर्ड पार्टियां हैं, जिनमें से 17 दलों ने चुनाव का बहिष्कार किया था। बहिष्कार करने वालों में मुख्य रूप से बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी (BNP) के साथ-साथ कुछ इस्लामिक-वामपंथी दल भी शामिल थे।

विपक्ष की मांग

बॉयकॉट का मुख्य अजेंडा था कि वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पद से इस्तीफा दें। चुनाव केयरटेकर सरकार बनाकर करवाए जाएं। इन्हें शक था कि सत्तारूढ़ दल के नेतृत्व में चुनाव न तो फेयर होगा, न ही उसका कोई अर्थ होगा। सत्तारूढ़ अवामी लीग इस मांग को नहीं मान रही थी।

नब्बे तक तानाशाही

इससे पहले बांग्लादेश में चुनाव निष्पक्ष नॉन पार्टीजन केयरटेकर सरकार के जरिए हुए थे, लेकिन उनका इतिहास अलग था। 1975 में बंगबंधु मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद 1990 तक बांग्लादेश में सैनिक तानाशाही रही।

पहले जिया उर रहमान राष्ट्रपति रहे, फिर HM इरशाद। 1990 में जामदानी आंदोलन में इरशाद के पद छोड़ने के बाद पांचवीं संसद में केयरटेकर सरकार के मुखिया शहाबुद्दीन अहमद बने।

BNP का इतिहास

उस चुनाव में BNP को बहुमत मिलना लाजमी था, क्योंकि उसे सैन्य शासन ने स्थापित किया था। BNP का अपना रेकॉर्ड अच्छा नहीं रहा। 1994 में मगूरा में हुए उपचुनाव में उसने फर्जीवाड़ा करके अपना उम्मीदवार जिताया।

संविधान संशोधन

यह देखकर अवामी लीग ने कहा कि संसद का आगामी चुनाव न्यूट्रल केयरटेकर सरकार के जरिए होना चाहिए। BNP इससे सहमत नहीं थी, तो छठे संसदीय चुनाव में अवामी लीग ने हिस्सा नहीं लिया। तब संविधान में 58बी एक क्लॉज जोड़ा गया, जिसमें केयरटेकर सरकार की व्यवस्था की गई।

अवामी लीग को मिली सत्ता

सातवां संसदीय चुनाव न्यूट्रल केयरटेकर सरकार के जरिए हुआ, अवामी लीग सत्ता में आई। इसके बाद चुनाव हुआ 2001 में, उसमें फिर BNP वापस सत्ता में लौटी। BNP का शासन खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान चलाते थे। उस वक्त उनके चलते बांग्लादेश में हर तरीके की सामाजिक बुराइयां पनपीं।

संस्थानों से खिलवाड़

2006 में 9वें संसदीय चुनाव से पहले BNP ने केयरटेकर सरकार के संस्थानों से भी खिलवाड़ करने की कोशिश की।

उसने दो साल पहले रिटायर होने वाले आखिरी रिटायर्ड चीफ जस्टिस को केयरटेकर गवर्नमेंट का चीफ अडवाइजर बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया और जजों की रिटायरमेंट की उम्र दो साल बढ़ा दी।

BNP ने मुख्य चुनाव आयुक्त भी अपना समर्थक नियुक्त कर दिया और वोटर लिस्ट में लगभग डेढ़ करोड़ फर्जी नाम भी जोड़ दिए गए।

पार्टियों में तकरार

इस पर अवामी लीग और BNP में काफी नोकझोंक हुई। अंत में सेना की केयरटेकर सरकार बनी और बांग्लादेश बैंक के रिटायर्ड गवर्नर फखरुद्दीन अहमद को सत्ता दी गई। उन्हें तीन महीने में चुनाव कराना था, लेकिन इसमें दो साल लग गए। 2008 में संसदीय चुनाव हुआ, जिसमें शेख हसीना की पार्टी ने क्लीन स्वीप किया।

हसीना पर भरोसा

2024 में शेख हसीना कुल मिलाकर पांचवीं बार और 2008 के बाद से लगातार चौथी बार पीएम बनी हैं। उनकी आर्थिक नीतियां बेहद कामयाब रही हैं। इसलिए उन्हें जनता का समर्थन मिला। बांग्लादेश गरीब देश था। आज एक लीडिंग डिवेलपिंग देश की श्रेणी में है।

विदेश नीति

शेख हसीना ने बहुत ही बैलेंस्ड और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई। भारत के साथ अच्छी साझेदारी की। चीन के साथ भी रिश्ते मजबूत किए। उन्हीं के शासन में बांग्लादेश में पोदा ब्रिज बना, कर्णपुरी टनल बनी।

भारत ने वहां रामपाल थर्मल पावर प्रॉजेक्ट का निर्माण किया, खुलना से मोंगला के बीच रेल कनेक्टिविटी स्थापित की। इन्हें देखते हुए बांग्लादेश की जनता ने हमेशा से शेख हसीना पर कॉन्फिडेंस दिखाया है।

फ्री एंड फेयर चुनाव

चूंकि लोकतंत्र और मानवाधिकारों की बात पर विपक्ष और कुछ पश्चिमी ताकतें, जिसमें अमेरिका और वेस्टर्न यूरोपियन देश हैं, खुश नहीं थीं। उन्होंने कहा कि फ्री एंड फेयर इलेक्शन होने चाहिए। इसलिए अमेरिका ने कई तरीके केसेक्शनसे लगाने की कोशिश की।

लेकिन इस चुनाव में जिस तरीके से लगभग 41.8 फीसदी वोटिंग हुई, विपक्ष के साथ-साथ निर्दलीय भी जीते, अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक, यूरोपियन यूनियन के फॉर्मर पार्लियामेंट्री भी इसे फ्री एंड फेयर बता रहे हैं।

BNP को नुकसान

इस चुनाव में 222 सीटें अवामी लीग ने जीती हैं। लगभग 62 सीटें निर्दलीय जीते हैं। वहीं BNP के इससे दूर रहने से उसकी लोकतांत्रिक विश्वसनीयता तो खत्म ही हुई, साथ ही सिविल सोसाइटी के लोग भी काफी खिन्न हुए हैं।

बढ़ेगा भरोसा

शेख हसीना की अवामी लीग 1949 में बनी थी। देश की आजादी में इस पार्टी ने सक्रिय भूमिका निभाई है। बांग्लादेश की जनता और संस्कृति से इसका जुड़ाव है। भारत भी ऐसी ही ताकतों को समर्थन देता है।

साझेदारी आगे बढ़ेगी

भारत ने जो विकास की साझेदारी की। चाहे वह सुरक्षा, आर्थिक या राजनीतिक क्षेत्र में हो, उनसे दक्षिणी एशिया में शांति और स्थायित्व आया। साथ ही, निवेश के मौके बढ़े और बांग्लादेश इस क्षेत्र की मजबूत अर्थव्यवस्था बना है।

निश्चित रूप से शेख हसीना के फिर से सत्ता में आने के बाद भारत-बांग्लादेश की साझेदारी आगे बढ़ती रहेगी। यह समूचे दक्षिण एशिया के लिए एक अच्छा संकेत है।

इन चुनाव परिणामों के बाद शेख हसीना की न केवल घरेलू राजनीति पर भी पकड़ मजबूत होगी, साथ ही अंतराराष्ट्रीय समुदाय भी उन पर भरोसा जताएगा।