तेरी मिट्टी में मिल जावां’ मेरी गजल से मिलता-जुलता लगा था, मगर मैंने ऐतराज जाहिर नहीं किया

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(www.arya-tv.com)मनोज मुंतशिर अभी ‘मुझे कॉल करना’ विवाद से उबरे नहीं कि अपने करियर के सबसे मकबूल गाने ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां’ को लेकर भी घिर गए हैं। सोशल मीडिया पर कहा जाने लगा है कि ‘तेरी मिटटी में मिल जावां’ तो दरअसल मशहूर गीतकार और कवि शकील आजमी के गजल से मिलता-जुलता है। उसके बोल ‘मरके मिट्टी में मिलूंगा खाद हो जाऊंगा मैं, फिर खिलूंगा शाख़ पर आबाद हो जाऊंगा मैं’ है।

दैनिक भास्‍कर से बातचीत में शकील आजमी ने कहा- ‘साल 2017 में मेरी किताब आई थी ‘परों को खोल’। उसमें तो यह बाकायदा पब्लिश भी हुई थी। उससे पहले तो इसे मैं बरसों से पढ़ रहा हूं। वह रचना हालांकि मैंने किसी फिल्‍म के लिए नहीं लिखी थी।’

मुझे नहीं पता, मैंने अंग्रेजी वाली कविता नहीं पढ़ी
शकील आगे कहते हैं- “बहरहाल, जब मनोज का लिखा ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां’ आया तो वह मुझे अपनी रचना से मिलता जुलता लगा। हालांकि तब मैंने उस पर कोई ऑब्जेक्‍शन नहीं किया। न मनोज से कुछ कहा और न मीडिया में ही जाकर कुछ कहा। अब फिर से उन पर ‘मुझे कॉल करना’ को कॉपी करने का आरोप है। जिसे अंग्रेजी की किताब से प्रेरित बताया जा रहा है, वह मुझे नहीं पता। मैंने अंग्रेजी वाली कविता नहीं पढ़ी है।”

इसे सही-गलत के तराजू पर नहीं तौला जा सकता
मनोज से मेरे अच्‍छे संबंध रहे हैं। अनुभव सिन्‍हा की ‘तुम बिन2’ में उनके साथ काम किया है। उस फिल्‍म में मेरा भी एक गाना था। बाकी उनके थे। कुछेक बार देखने को मिला है कि गुलजार साहब ने गालिब की शायरियों से रचनाएं की हैं, मगर जब कभी गालिब, खुसरो या और महान कवि या शायरों से प्रभावित होकर लिखा जाता है तो आम लोग समझ जाते हैं कि वह उनकी मौलिक रचना तो नहीं है। गुलजार साहब से पहले मजरूह साहब ने भी किया है। इसे सही-गलत के तराजू पर नहीं तौला जा सकता, मगर कहीं से आप कुछ लें तो क्रेडिट जरूर दें।