(www.arya-tv.com)आज कंगना रनोट की ‘थलाईवी’ देश के तीन बड़े सिने चेन पीवीआर, सिनेपोलिस और आइनॉक्स को छोड़ हिंदी में 800 और साउथ में 750 स्क्रीन पर रिलीज हो रही है। साउथ में तीनों सिने चेन फिल्म का साउथ वर्जन रिलीज कर रहें हैं। हिंदी में वह ऐसा नहीं कर रहे। अगर वह हिंदी में भी स्क्रीन देते तो फिल्म हिंदी में दो हजार स्क्रीन्स पर रिलीज होती।
फिल्म के प्रोड्युसर शैलेष आर सिंह के मुताबिक,’ऐसा नहीं हो सका। हमने पिछले तीन दिनों में इन तीनों मल्टीप्लेक्सेस के साथ तीन से चार बार मी़टिंग्स कीं, पर वो बेनतीजा रहीं। वो अड़े रहे कि ‘थलाईवी’ को हिंदी में अपने सिनेमाघरों में उसी शर्त पर रिलीज करेंगे, जब नेटफ्लिक्स इसे दो नहीं चार हफ्ते बाद स्ट्रीम करे।‘
सिनेमा को जिंदा रखने की जिम्मेदारी दोनों की है
शैलेष बताते हैं,’ यह कर पाना हमारे लिए पॉसिबल नहीं था। वह इसलिए क्योंकि हमारी लागत ‘पी एंड ए’ को मिलाकर लगभग 100 करोड़ है। इसमें 15 से 17 करोड़ तो फाइनेंसर्स का ब्याज हो गया हैं। हिंदी में हम नेटफ्लिक्स पर दो हफ्ते बाद ही आ रहे हैं, तो उन्होंने हमें बेहतर रकम ऑफर की है। उससे हम फिल्म की रिकवरी जल्दी कर पाए हैं।
हम चाहते तो हिंदी और साउथ दोनों में फिल्म डायरेक्ट ओटीटी पर ला सकते थे। उसमें हमें 125 करोड़ से लेकर 130 करोड़ तक की डील मिलती। ये ऑफर वर्बल नहीं, रिटन में है। लिहाजा, हम पहले ही 25 से 30 करोड़ का नुकसान उठा कर फिल्म रिलीज कर रहें हैं। ऐसा इसलिए कि सिनेमा को जिंदा रखने की जितनी जिम्मेदारी प्रोड्युसरों की है, उतनी बराबर की भागीदारी सिनेमाघर वालों की भी है। हालांकि, यह बात मल्टीप्लेक्स चेन नहीं समझना चाह रही।
हम पहले दिन से ‘थलाईवी’ को सिनेमाघरों में ही लाना चाहते थे। तीनों मल्टीप्लेक्स को यह बात समझनी होगी कि अचानक एक दिन में सब ठीक नहीं होगा। ऑडियंस थियेटर में धीरे-धीरे आएंगे। ‘थलाईवी’ उनके लिए वॉर्म अप फिल्म हो सकती थी।
प्रोड्यूसर्स को सिनेमाघरों की फिक्र नही है
तीनों मल्टीप्लेक्स चेन वालों की दलील यह रही कि अगर उन्होंने दो वीक विंडो पर ही ‘थलाईवी’ अपने यहां रिलीज की तो उन्हें आगे हर छोटी बड़ी फिल्म के साथ यह नियम लागू करना होगा। यह उनके लिए घाटे का सौदा होगा, क्योंकि हिंदी बेल्ट के सिनेमाघरों में आज भी ऑडिएंस की उतनी तादाद नहीं आ रही, जितनी साउथ में आ रही।
लिहाजा अगर ‘थलाईवी’ सिनेमाघरों के दो हफ्ते बाद ही नेटफ्लिक्स पर आ रही तो लोग सिनेमाघर क्यों देखने आएंगे। अगर निर्माताओं को सच में सिनेमाघरों की फिक्र है तो वह ‘सूर्यवंशी’ की तरह अपनी फिल्म सिनेमाघरों के लिए होल्ड करते।‘
हम इंडिविजुअल प्रोड्युसर हैं
शैलेष इन तर्कों का जवाब देते हैं,’ एक तरफ तो मल्टीप्लेक्स की दलील है कि ओटीटी वाले उनका बिजनेस खा रहे हैं। मेरा सवाल है कि ओटीटी के इस कदम का जवाब मल्टीप्लेक्स वाले क्या दे रहे हैं। वह कौन सा जोखिम ले रहें या अपने नियम में तब्दीलियां ला रहे हैं जिनसे उनके यहां ऑडिएंस आएं या फिर प्रोड्यूसर अपनी फिल्में दें? रहा सवाल ‘सूर्यवंशी’ या ‘पृथ्वीराज’ जैसी फिल्मों का तो वो बड़े स्टूडियोज की फिल्म हैं। हम इंडिविजुअल प्रोड्युसर हैं। हमने तो ‘थलाईवी’ बनाने में किसी स्टूडियो की भी हेल्प नहीं ली है, तो हम ज्यादा दिनों तक फिल्म कैसे रोककर रखते। हम यकीनन मल्टीप्लेक्स की बात मानते, अगर महाराष्ट्र के सिनेमाघर खुले रहते। वह इसलिए कि कंगना की ही ‘मणिकर्णिका’ कोविड से पहले आई थी तो उसके 60 करोड़ का कलेक्शन महाराष्ट्र सर्किट से हुआ था।‘
मल्टीप्लेक्स नए रूल अपनाए
ट्रेड एनैलिस्टों के मुताबिक,’प्रोड्युसरों का रिस्क बड़ा है। अमेरिका में इस दिसंबर तक नए नियम आ चुके हैं। प्रोड्युसर अपनी सुविधा से सिनेमाघरों और ओटीटी के बीच रिलीज की तारीख का फासला तय कर सकते हैं। कोविड से पहले सिनेमाघर यह चीज तय करते थे। ‘थलाईवी’ के मामले में मल्टीप्लेक्स को भी यह रूल अपनाना चाहिए। ताकि उनके पास नए कंटेंट आएं और ऑडिएंस की आमद बढ़े।‘