(www.arya-tv.com)पूर्वांचल के जिला सिद्धार्थनगर के दो गांव खासे मशहूर हैं। अल्लाहपुर और भगवानपुर। दोनों की ज़िले से बाहर शोहरत इसलिए है कि अल्लापुर में हिंदू आबादी रहती है और भगवानपुर में मुस्लिम। दोनों गांव आमने-सामने हैं। यहां मजहबी समीकरण विपरीत होने के बावजूद कभी नफरत के बीज नहीं फूट सके।इस चुनाव के बाद यहां एक बड़ा फेरबदल होने जा रहा है। अल्लाहपुर गांव का नाम बदलकर महेश योगी गांव रखा जा रहा है।
दोनों गांव बहुत संपन्न लोगों के हैं। अल्लाहपुर की कुल आबादी 1482 है। यहां 90% हिंदू तिवारी हैं। गांव का इतिहास कोई नहीं जानता कि आखिरकार हिंदू बहुल इस गांव का नाम अल्लाहपुर कैसे पड़ा। गांव के निवासी रमाकांत त्रिपाठी बताते हैं कि हमारे गांव में सभी हिंदू रहते हैं। हमें इसके नाम से कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। अब नाम बदलने जा रहा है। बुज़ुर्गों से सुनते हैं कि एक ताकतवर व्यक्ति थे साबिलअली। उन्होंने ही इस गांव का नाम अल्लापुर रखा था। अब महेशयोगी नाम रखा जा रहा है।
इतिहास के बारे में जानने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं
गांव के सबसे बुजुर्ग बिंदेश्वर तिवारी बताते हैं कि इन दो गांवों के इतिहास के बारे में जानने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। हालांकि, किसी को कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। कुछ तो जरूर इतिहास रहा होगा इस गांव का। गांव के पूर्व प्रधान ब्रिजेश कुमार शुक्ला का कहना है कि दोनों गांवों का एक-दूसरे के यहां खूब आना जाना है।
बहुत प्रेम और सौहार्द है। अक्सर त्योहार के न्योते आते रहते हैं। इसी तरह गांव भगवानपुर में सुबह शाम अजान की आवाज आती है। यहां के बुज़ुर्गों का कहना है कि कोविड में गांव के कई बुज़ुर्ग चले गए जो इस गांव का इतिहास जानते थे। इस गांव के हसन रज़ा बताते हैं कि यह तकरीबन 200 साल से ज्यादा पुरानी कहानी है। यहां एक पंडित जनेऊ ढूंढते हुए आए । वह जनेऊ ढूंढते-ढूंढते अल्लाहपुर गए वहां सब के सब घर तिवारियों के थे। उन्हें वहां जनेऊ नहीं मिला, लेकिन हमारे गांव में एक घर हिंदुओं का था। जहां उन्हें जनेऊ मिला, तभी से इस गांव का नाम भगवानपुर पड़ गया।
200 साल से भी पुराना है यहां का इतिहास
भगवानपुर गांव की आबादी 1283 है। यहां तमाम आबादी मुसलमानों की है। केवल तीन घर हिंदुओं के हैं। यह हिंदू परिवार भी कुछ साल पहले आकर यहां बसे हैं। इससे पहले यह गांव पूरी तरह से मुसलमानों का गांव था। गांव के अब्दुल साहब बताते हैं कि हमें इस गांव के नाम से प्रेम है, हमें इसके नाम से कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। गांव के कई बुज़ुर्गों से भी बात करो तो किसी को गांव के इतिहास के बारे में नहीं पता है। 200 साल से भी पुराने इतिहास के इन दो गांवों की कहानी खंगालने बाहर से कई लोग आते हैं लेकिन आज तक कोई नहीं जान पाया कि इनके नामों के पीछे क्या कहानी है।