तालिबान के खौफ से बामियान शहर छोड़कर भागे लोग, बच्चे पढ़ सकें इसलिए गुफा में खोला स्कूल

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(www.arya-tv.com) अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किए हुए  तालिबान को छह महीने बीत चुके हैं। उसके कब्जे के समय से ही लोग खौफजदा होकर शहर और देश छोड़कर भाग रहे थे। बौद्धों का गढ़ कहे जाने वाले प्राचीन शहर बामियान में भी ऐसा ही हुआ। वहां के लगभग सभी संपन्न बामियान छोड़कर चले गए। इस खौफ के बीच भी एक ग्रेजुएट युवती फिस्ता ने हिम्मत दिखाई। उसने दूसरों को पढ़ाने की जिद ठान रखी थी।

हर दिन बच्चों को दो घंटे की तालीम
गरीब बच्चे पढ़ना जारी रख सकें, इसी के चलते उसने अपना स्कूल बंद नहीं किया। तालिबान लड़ाकों की पकड़ में वह न आए, इसके लिए पहाड़ की गुफा को अपना स्कूल बना लिया। वहां से वह हर दिन बच्चों को दो घंटे की तालीम दे रही है। उसने न केवल स्थानीय डारी भाषा के साथ ही अंग्रेजी भी सिखाई। कुरान की आयतों को भी पढ़ाया। इस स्कूल को चलाने के लिए उसने लोगों के घरों में काम किया और स्थानीय बाजार में सामान भी बेचा।

 12 साल की थी, तब उसने यह स्कूल खोला
फिस्ता ने एक अखबार को बताया कि उसे यह स्कूल चलाते हुए करीब 10 साल हो गए हैं। जब वह 12 साल की थी, तब उसने यह स्कूल खोला था। इस स्कूल में आसपास से करीब 50 परिवारों के चार से 17 साल तक के बच्चे आते हैं। बीते अगस्त में जब तालिबान ने दोबारा सत्ता में कब्जा किया तो वह डर गई थी। दूसरे गांव से पढ़ने आए लड़के की मां ने बताया कि तालिबान के डर से लोग गांव छोड़कर भाग गए। अब यहां लौटे हैं तो बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसे भी नहीं थे। तब यह स्कूल सहारा बना।

गांव तक 3 बार आए तालिबानी, पर पता नहीं लगा सके
फिस्ता ने कहा, ‘मेरे दोस्तों ने सुझाव दिया था कि मैं दीवारों पर चिपके पोस्टरों को हटा दूं,, क्योकि मैं लड़कियों को पढ़ा रही थी। बाद में मैंने उन्हें निकालकर बैग में भरकर नदी में फेंक दिया था।’ गांव तक तालिबानी लड़ाके तीन बार आए, लेकिन वह गुफा में मौजूद मेरे स्कूल को नहीं खोज सके। पूरे बामियान में फिस्ता अकेली है जो खुद के पैसों से यह स्कूल चलाती है।