अब लोगों का रहने का ठिकाना बन रहा है: दक्षिण भारत

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(Arya Tv Web Desk-Lucknow)

Reporter-Praveen

हाल ही में सरकार ने साल 2011 के सर्वे के आधार पर देश की जनसंख्या से जुड़े अलग-अलग डेटा जारी किए.

इस डेटा के अनुसार उत्तर भारतीय राज्यों में तमिल, मलयालम, कन्नड़, तेलुगू बोलने वालों की संख्या में साल 2001 की जनगणना के मुकाबले कमी दर्ज की गई है, जबकि दक्षिण भारत में हिंदी भाषियों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है..

साल 2001 के सर्वे में उत्तर भारतीय राज्यों में लगभग 8.2 लाख तमिल भाषी लोग रहते थे जो अगले दस वर्षों में घटकर 7.8 लाख हो गए. इसी तरह मलयालम बोलने वाले लोगों की संख्या भी 8 लाख से गिरकर 7.2 लाख रह गई.

लेकिन इस आंकड़े के उलट इन्हीं 10 वर्षों के दौरान दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है.

सर्वे के अनुसार दक्षिण भारत में द्रविड़ भाषी जनसंख्या में गिरावट आई है.साल 2001 का जनगणना के अनुसार दक्षिण भारतीय राज्

यों में लगभग 58.2 लाख उत्तर भारतीय लोग रहते थे , दस साल के भीतर इस आंकड़े में 20 लाख की वृद्धि हुई है और अब दक्षिण भारतीय राज्यों में 77.5 लाख हिंदी भाषी लोग रहने लगे हैं.

नौकरी के अवसर

दक्षिण भारत में हिंदी भाषी लोगों की बढ़ती जनसंख्या के पीछे सबसे पहली वजह वहां नौकरी के अधिक अवसरों का होना बताया जाता है.

अर्थशास्त्री जयरंजन के अनुसार उत्तर भारत के लोग दक्षिण भारत में नौकरी की तलाश में ही आते हैं. वे कहते हैं, ”दक्षिण भारत में नौकरियां तो बहुत हैं लेकिन यहां इन्हें करने के लिए पूरे लोग नहीं हैं. देश के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से को भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘विकास का इंजन’ कहा जाता है. इन इलाकों में लेबर की ज़रूरत होती है, इसे उत्तर भारत से आए लोग भरने की कोशिश करते हैं.”

अगर उत्तर भारत के इस मजदूर वर्ग की दक्षिण भारत में कमी हो जाए तो इसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा, इस पर जयरंजन कहते हैं, ” निर्माण उद्योग से जुड़े धंधे अधिकतर इन्ही मजदूरों के सहारे चलते हैं, अगर इस वर्ग में कमी आएगी तो इन उद्योंगो पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा.”

दक्षिण में उत्तर भारतीयों की बढ़ती जनसंख्या से वहां कुछ नए तरह की आर्थिक गतिविधियां भी शुरू हो गई हैं जैसे दक्षिण भारत में उत्तर भारतीय खान-पान से जुड़े रेस्टोरेंट का खुलना.

इसका अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ा है, इस बारे में जयरंजन बताते हैं, ”यह देखना होगा कि इसका फ़ायदा हुआ है या नुकसान. जैसे तमिल फिल्में आज पूरे विश्व में देखी जाती हैं, तमिल बोलने वाले लोग विदेशों तक अपनी पहुंच बनाने में सफल हुए हैं. इस तरह जब कोई भी समुदाय दूसरी जगह जाता है तो वह अपनी सांस्कृतिक पहचान जैसे, खान-पान, संस्कार, संगीत आदि भी वहां ले जाता है.”