नवदुर्गा, चक्र और क्वांटम चेतना त्रिगुणात्मक एकता सनातनपुत्र देवीदास विपुल, गर्वित भारत शोध केंद्र

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  • नवदुर्गा, चक्र और क्वांटम चेतना त्रिगुणात्मक एकता सनातनपुत्र देवीदास विपुल, गर्वित भारत शोध केंद्र

सनातन में कहा गया है “देवी शक्ति: चैतन्यमेव ब्रह्म।” अर्थात् देवी शक्ति ही ब्रह्म की चेतना है। यह चेतना शरीर में चक्रों के माध्यम से प्रवाहित होती है। हर चक्र एक विशिष्ट ऊर्जा आयाम है और देवी का हर रूप उस ऊर्जा के ब्रह्मांडीय स्वरूप को धारण करता है। क्वांटम दृष्टि में, हर चक्र एक कंपनशील क्षेत्र है, जहाँ चेतना का वेवफ़ंक्शन एक नये चरण में प्रवेश करता है।

देवी रूप, शरीर में चक्रों की ऊर्जा (आध्यात्मिक अर्थ) और क्वांटम व्याख्या को ऊर्जा परिवर्तन के साथ समझें तो
1. शैलपुत्री, मूलाधार, स्थिरता, पृथ्वी, जन्म का आधार या वेवफ़ंक्शन का पहला संकुचन, पदार्थ में चेतना का अवतरण या संभाव्य से गतिशील ऊर्जा।
2. ब्रह्मचारिणी, स्वाधिष्ठान जो सृजन, इच्छाशक्ति, संकल्प का ऊर्जा का निम्नतम अवस्था में स्थिरीकरण अर्थात न्यूनतम एंट्रॉपी अवस्था से क्रमबद्ध अवस्था है।
3. चंद्रघंटा, मणिपुर जो शक्ति, रूपांतरण, संतुलन के साथ क्वांटम अनुनाद के दो ऊर्जा स्तरों का कोहेरेन्स यानि अनुनादी ऊर्जा है।
4. कूष्मांडा, अनाहत में है जो प्रेम, विस्तार, ब्रह्मांडीय सृजन यानि क्वांटम सुपरपोज़ीशन, अनेक संभावनाओं का एक साथ अस्तित्व और तरंग विस्तार है।
5. स्कंदमाता, विशुद्धि चक्र में, सृजन की अभिव्यक्ति, सुरक्षा के साथ बंधित अवस्थाओं में क्वांटम कणों का स्थिर संरचना में जुड़ना या बंधन ऊर्जा है।
6. कात्यायनी, आज्ञा चक्र में अंतर्ज्ञान, निर्णय, धर्मयुद्ध यानि क्वांटम टनलिंग, चेतना का बाधाओं से पार जाना या अवरोध पारगमन है।
7. कालरात्रि, सहस्रार (निम्न स्तर) में अज्ञान का विनाश, समय का अंत या डिकोहेरेंस अर्थात असत्य अवस्थाओं का लोप या झूठी अवस्थाओं का संकुचन है।
8. महागौरी, सहस्रार (उच्च स्तर) है। जो शुद्धता, ब्रह्म प्रकाश यानि क्वांटम मापन अर्थात चेतना द्वारा वेवफ़ंक्शन को ज्ञान में बदलना या शुद्ध पर्यवेक्षण है।
9. सिद्धिदात्री, ब्रह्मरंध्र / सर्वचक्रिक एकता जो सिद्धि, अद्वैत, ब्रह्मज्ञान यानि क्वांटम एंटैंगलमेंट, आत्मा और ब्रह्म की पूर्ण एकता या अ-स्थानिक एकता है। यह बहुत दुर्लभ है।

प्रत्येक चक्र एक प्रकार का क्वांटम ऊर्जा केंद्र (क्षेत्र) है, जो अलग-अलग कंपन आवृत्तियों पर कार्य करता है। मूलाधार चक्र पदार्थ की स्थिरता या क्वांटम क्षेत्र का द्रव्यमान उत्पत्ति है। स्वाधिष्ठान चक्र सृजन की इच्छा या संभाव्य से गतिशील ऊर्जा में संक्रमण है। मणिपुर चक्र शक्ति नियंत्रण या ऊर्जा अनुनाद है। अनाहत चक्र ब्रह्मांड से जुड़ाव या क्वांटम एंटैंगलमेंट की पूर्वावस्था है। विशुद्धि चक्र ध्वनि और सत्य या सूचना क्षेत्र। आज्ञा चक्र ज्ञान, दृष्टि या पर्यवेक्षक प्रभाव है। सहस्रार चक्र अद्वैत, ब्रह्म या वेवफ़ंक्शन का एकता में संकुचन बताया है।

हथियारों का चक्र संबंध और क्वांटम अर्थ क्या है यह भी देखें। त्रिशूल मूलाधार-स्वाधिष्ठान-मणिपुर की तीन आयामी ऊर्जा प्रवाह अर्थात सृष्टि, स्थिति, संहार का प्रतीक है। चक्र, जो विशुद्धि चक्र है समय और आवृत्ति का घूर्णन कोणीय संवेग बताया है। वहीं गदा मणिपुर चक्र यानि ऊर्जा की स्थिरता अर्थात प्रबल अंत:क्रिया का प्रतीक है। खड्ग यानि तलवार की तरह आज्ञा चक्र यानि मापन से भ्रम का नाश अर्थात संकुचन साधन है। कमंडल अनाहत चक्र की ऊर्जा का संरक्षण अर्थात क्वांटम शून्य संभाव्य है। घण्टा, विशुद्धि चक्र जो कंपन की आवृत्ति अर्थात तरंग आवृत्ति समझाता है।

जहाँ शरीर के चक्र क्वांटम अनुनादक हैं, वहीं देवी के रूप ब्रह्मांडीय संचालक हैं और साधक स्वयं प्रेक्षक है, जिसकी दृष्टि से वेवफ़ंक्शन वास्तविकता बनता है। इसलिए सनातन ने समझाया है। “यत्र देवी तत्र ब्रह्म, यत्र ब्रह्म तत्र अहं।” जहाँ देवी (शक्ति) है वहीं ब्रह्म है, और जहाँ ब्रह्म है वहीं ‘मैं’ हूँ।