(www.arya-tv.com)राजधानी के पॉश इलाके गोमतीनगर के विनयखंड में मिनी स्टेडियम है। यहां आपको सुबह-शाम 27 साल का एक युवा हाफ पैंट और टीशर्ट में दौड़ लगाता हुआ दिख जाएगा। पहली नजर में लगेगा कि यह कोई खिलाड़ी है, जो प्रैक्टिस करने के लिए स्टेडियम आता होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। इनका नाम है राम हरक है, जो कि स्टेडियम में संविदा पर चपरासी का काम करते हैं। ड्यूटी पूरी होने के बाद अपने सपनों को उड़ान देते हैं। आपको बता दें कि राम हरक की सिर्फ एक किडनी है, लेकिन उन्हें फर्राटा दौड़ बहुत पसंद है। एक किडनी होने पर जहां लोगों का हौसला टूट जाता है, वहीं राम हरक कैसे दौड़ लगा रहे हैं? आइए उन्हीं से जानते हैं…
बचपन से एथलीट बनने का सपना था, अब पूरा हो रहा है
राम हरक का घर जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर ग्वारी गांव में है। वह बताते हैं- बचपन से ही मेरी रुचि स्पोर्ट्स की तरफ थी। पिता किसान थे, बहुत ज्यादा इनकम थी नहीं इसलिए मेरी पढ़ाई भी जल्द ही छूट गई। कुछ मन भी नहीं लगता था। 2010 की बात है, तब मुझे बैडमिंटन खेलना अच्छा लगता था। कोई एक जगह नहीं थी, लेकिन जहां मौका मिलता खेलता जरूर था और खुद को बेहतर बनाता जाता। चूंकि पिता जी का ऑपरेशन हुआ था तो वह चारपाई पर आ गए और परिवार की जिम्मेदारी मेरे ऊपर। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। तभी मिनी स्टेडियम में चपरासी की 5 हजार पर नौकरी मिल गई। तब से नौकरी कर रहा हूं।
खाली वक्त में यहां प्रैक्टिस करता था, साथी प्लेयर्स बढ़ाते थे हौसला
मिनी स्टेडियम में काम करते करते यहां प्रैक्टिस भी करने लगा था। उस वक्त बैडमिंटन की किट भी नहीं थी तो जो प्लेयर्स यहां खेलने आते थे, उन्होंने आपस में बातचीत कर मेरी मदद करनी शुरू कर दी। हालांकि, यह सिलसिला आज तक जारी है। बाद में उन्हीं लोगों की सलाह पर मैं दौड़ने भी लगा। मुझे फर्राटा रेस बहुत पसंद है। सुबह शाम रोज प्रैक्टिस करता, लेकिन कभी ऐसा मौका नहीं मिला जिससे मैं किसी बड़े टूर्नामेंट का हिस्सा बन पाऊं।
2015 में हुआ किडनी ट्रांसप्लांट, जिंदगी से हारने लगा था मैं
राम हरक बताते हैं कि 2015 में मुझे पीलिया हुआ था। बहुत इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर पीजीआई पहुंचा तो डॉक्टर्स ने किडनी खराब होने की बात बताई। उन्होंने बताया कि इंफेक्शन की वजह से दोनों किडनी खराब हो चुकी है। इसकी वजह से अब अगर जान बचानी है तो किडनी ट्रांसप्लांट ही एक उपाय है। ऑपरेशन में पैसे बहुत लग रहे थे। तब कुछ रिश्तेदारों से मदद ली। स्टेडियम के साथियों की मदद से सरकार से कुछ मदद मिली। तकरीबन साढ़े 13 लाख रुपए खर्च हुए और मां ने अपनी एक किडनी मुझे दी तो जान बच पाई। आम किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों की तरह मैं भी जिंदगी से हार गया था। न भागना न दौड़ना न भारी सामान उठाना। एक नीरस जिंदगी की तरफ बढ़ता जा रहा था, जैसा अमूमन होता है। मैं अपने अंदर के खिलाड़ी को मार रहा था।
ऑर्गेन ट्रांसप्लांट कैटेगरी में खेलना शुरू किया, अब जाना है थाईलैंड
राम हरक कहते हैं कि जीवन से निराश होकर मैं स्टेडियम में नौकरी को आता था, तब यहां कुछ सीनियर साथियों ने मेरी मदद की और मुझे ऑर्गेन ट्रांसप्लांट कैटेगरी में खेलने को कहा। यह जानकर कि मैं फिर से खेल सकता हूं सुन कर बड़ी खुशी हुई। मैंने फिर से दौड़ने की प्रैक्टिस शुरू की। डॉक्टर की भी सलाह लेता रहा। कोरोनाकाल से पहले 2020 में मुंबई में हुए 12वें नेशनल ट्रांसप्लांट गेम्स में 100 मीटर की रेस में रजत पदक जीता।
राम हरक कहते है कि जब रेस खत्म हुई तो मैं हर चुका था। मायूस था कि सबने इतनी मदद की अब उनको क्या मुंह दिखाऊंगा। तब ही माइक से एनाउंस हुआ कि रजत पदक पाने वाला इस कैटेगरी में यूपी का मैं पहला खिलाड़ी हूं। साथ ही पता चला कि मैं जिससे हारा हूं वह राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी है। यह जान कर मुझे बड़ी खुशी हुई। उसके बाद मेरा चयन राष्ट्रीय टीम में हो गया। हमें एशिया स्तर का टूर्नामेंट खेलने थाईलैंड जाना था, लेकिन महामारी की वजह से गेम्स टल गए हैं। जैसे ही स्थितियां सामान्य होंगी थाईलैंड जाने की तैयारी शुरू हो जाएगी।
राम हरक कहते हैं कि जीवन से निराश होकर मैं स्टेडियम में नौकरी को आता था, तब यहां कुछ सीनियर साथियों ने मेरी मदद की और मुझे ऑर्गेन ट्रांसप्लांट कैटेगरी में खेलने को कहा। यह जानकर कि मैं फिर से खेल सकता हूं सुन कर बड़ी खुशी हुई। मैंने फिर से दौड़ने की प्रैक्टिस शुरू की। डॉक्टर की भी सलाह लेता रहा। कोरोनाकाल से पहले 2020 में मुंबई में हुए 12वें नेशनल ट्रांसप्लांट गेम्स में 100 मीटर की रेस में रजत पदक जीता।
राम हरक कहते है कि जब रेस खत्म हुई तो मैं हर चुका था। मायूस था कि सबने इतनी मदद की अब उनको क्या मुंह दिखाऊंगा। तब ही माइक से एनाउंस हुआ कि रजत पदक पाने वाला इस कैटेगरी में यूपी का मैं पहला खिलाड़ी हूं। साथ ही पता चला कि मैं जिससे हारा हूं वह राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी है। यह जान कर मुझे बड़ी खुशी हुई। उसके बाद मेरा चयन राष्ट्रीय टीम में हो गया। हमें एशिया स्तर का टूर्नामेंट खेलने थाईलैंड जाना था, लेकिन महामारी की वजह से गेम्स टल गए हैं। जैसे ही स्थितियां सामान्य होंगी थाईलैंड जाने की तैयारी शुरू हो जाएगी।