कानपुर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों किया रिसर्च,खोजी खुदकुशी निरोधी दवा

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(www.arya-tv.com)  कभी-कभी छोटी-छोटी परेशानियां आपके लिए मुसीबत बन जाती हैं। ऐसे में बहुत से शख्स ऐसे होते हैं जो कमजोर दिल के होने के कारण वह खुदकुशी जैसे कदम उठा लेते हैं। कोई व्यक्ति जब कई परेशानियों से जूझ रहा होता हैं तब उसके अंदर ऐसा कदम उठाने की सोच आने लगती है। ऐसे लोगों को इस प्रवृति से दूर करने के लिए कानपुर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने एक रिसर्च किया है। उस रिसर्च में डॉक्टरों को 95% सफलता भी मिल गई है।
यूपी में 11% लोग सुसाइड करते हैं
उत्तर प्रदेश में सुसाइड करने वालों की संख्या 11% है। डॉक्टरों ने बताया कि सबसे ज्यादा 36% लोग मानसिक तनाव के चलते सुसाइड कर रहे हैं। इसके बाद बेरोजगारी से तंग आकर सुसाइड करने वालों की संख्या हैं और सबसे कम संख्या है जो घरेलू कलह के चलते सुसाइड कर लेते हैं।

मगर बात आती है कि सुसाइड आदमी तभी करता है जब वह पूरी तरह से तनाव से घिर चुका होता है। उस दौरान उसका दिल और दिमाग काम करना बंद कर देता है। ऐसी परिस्थितियों में आने के बाद व्यक्ति सुसाइड कर लेता है।

ऐसे मरीजों पर केटामिन दवा का किया प्रयोग
कानपुर मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक धनंजय चौधरी ने बताया कि जो व्यक्ति खुदकुशी करने की सोचते हैं। उन पर हम लोगों ने एक रिसर्च की है। जिन लोगों के मन में ऐसी बातें आ रही थी। उन लोगों को केटामिन दवा दी गई। यह दवा देने का तरीका बिल्कुल अलग था। जैसे हर मरीजों को यह दवा दी जाती है, उससे अलग तरह से इसे दिया गया। यह कोर्स पूरे 2 हफ्ते तक चलता है।

इंजेक्शन के माध्यम से नहीं दी जाती है दवा
डॉक्टर धनंजय चौधरी ने बताया कि केटामिन दवा का प्रयोग बेहोशी के लिए हमेशा किया जाता था, लेकिन इस दवा का प्रयोग अब अवसाद ग्रस्त और खुदकुशी करने वाले लोगों पर कर रहे हैं। इस दवा को हम लोग इंजेक्शन के माध्यम से नहीं दे रहे हैं। बल्कि एक गिलास पानी में दवा की निर्धारित मात्रा को मिलाते हैं। फिर मरीज को पीने के लिए दे देते हैं। इस दवा को मरीज 40 मिनट के अंदर सिप करकर के पीता है। जब धीरे-धीरे यह दवा अंदर जाती है तो शरीर की हर एक नसों को बहुत ज्यादा आराम पहुंचता है।

जिनका मन अशांत होता है। वह भी रिलैक्स महसूस करते हैं। ऐसे में जब मरीज पूर्ण रूप से शांत अवस्था में आता है, तो उसके मन से अपने आप इस तरह का ख्वाब निकल जाता है। बस फर्क इतना होता है कि बेहोशी के लिए इस दवा की ज्यादा डोज प्रयोग की जाती है। इसमें कम डोज का इस्तेमाल करते हैं। इस कोर्स को जिन मरीजों ने पूरा किया बाद में उनकी काउंसलिंग की गई। उन्हें यह ख्वाब दोबारा कभी नहीं आया।

विदेशों में इस तरह का प्रयोग किया जाता है
डॉ. धनंजय चौधरी ने बताया कि इस तरह का प्रयोग विदेशों में किया जा रहा है। वर्तमान समय में भारत के अंदर बेंगलुरु में भी इसका प्रयोग होने लगा है। अब कानपुर मेडिकल कॉलेज में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है। इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले है।

शुरुआत में मरीज काफी डिप्रेशन में आता है
डॉ. चौधरी ने बताया कि जब शुरुआत में कोई मरीज आता है तो वह काफी डिप्रेशन में होता है, लेकिन जब उससे दवा की 1-2 खुराक दी जाती है, तो उसके बाद से ही उसको आराम मिलने लगता है। इसके बाद जब वह पूरा कोर्स कर लेता है फिर उसके मन से सुसाइड करने का आइडिया चला जाता है।

आप मानसिक तनाव में रहेंगे तभी आप का सुसाइड करने का आइडिया आता है। इसलिए सबसे पहले मरीज के तनाव को किसी तरह से कम करना है। यदि यह कंट्रोल हुआ तो फिर दिमाग से इस तरह के आइडिया कभी नहीं आएंगे।