सिर्फ जीडीपी से विकसित नहीं हो जाएगा भारत, इसे ‘डेनमार्क पहुंचना’ होगा

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(www.arya-tv.com) डेनमार्क का लक्ष्य: विकासशील देशों को विकसित राष्ट्रों में बदलने की चुनौती को समझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल होने वाला एक टर्म है- डेनमार्क पहुंचना।

इसमें असल में उस खूबसूरत और समृद्ध देश तक पहुंचने की बात नहीं है, बल्कि समृद्ध, लोकतांत्रिक, सुरक्षित, बेहतर शासन और कम भ्रष्टाचार वाले समाज की कल्पना करना है।

तीन स्तंभ: तो आखिरकार, ‘डेनमार्क पहुंचने’ में क्या शामिल है? बेशक, एक देश को अमीर होना चाहिए, लेकिन सिर्फ पैसा ही काफी नहीं है। लोगों को बेहतर जीवन स्तर का आनंद लेने की भी जरूरत है।

इसके लिए समाज को नियमों, एक मजबूत राज्य और लोकतांत्रिक जवाबदेही पर टिका होना चाहिए।

कानून का राज: ‘कानून का राज’ का मतलब है कि कानून हर किसी पर समान रूप से लागू होता है। इसका मतलब है कि जो कोई भी कानून तोड़ता है, चाहे वह कितना भी ताकतवर या प्रभावशाली क्यों न हो, उसे पकड़ा जाएगा और दंडित किया जाएगा।

इसका मतलब यह भी है कि जनता को सरकार के अत्याचार से बचाया जाएगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जैसा कि थॉमस जेफरसन ने अमेरिकी संविधान बनाते समय कहा था- सरकारें अपूर्ण लोगों से बनी होती हैं, जो सत्ता का दुरुपयोग करते हैं। कानून का राज उस पर लगाम लगाने का काम करता है।

सेवा देने वाला राज्य: कानून का राज अकेले काम नहीं करता, उसके साथ एक मजबूत राज्य की भी जरूरत होती है। एक मजबूत राज्य का मतलब तानाशाह शासन नहीं,

बल्कि ऐसा राज्य है जो जनता के भले के लिए कड़े नियम बनाता है और उनका पालन करवाता है। साथ ही, वह सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं और लैंगिक समानता, वित्तीय समावेशन जैसी विकासोन्मुखी सुविधाएं भी प्रदान करता है।

जवाबदेह सरकार: जनता के भले के लिए काम करने वाला एक मजबूत राज्य भी हमें ‘डेनमार्क’ तक नहीं पहुंचा सकता, अगर सरकार जवाबदेह नहीं है। सिर्फ कुछ साल के अंतराल पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कर लेना ही काफी नहीं है।

चुनावों के बीच में भी लोगों के पास यह सुनिश्चित करने के लिए तंत्र होने चाहिए कि चुने हुए नेता और नौकरशाही दोनों ही अच्छा शासन दें। इसलिए एक स्वतंत्र मीडिया और निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतांत्रिक जवाबदेही के प्रमुख तत्व बन जाते हैं।

क्रम महत्वपूर्ण है: डेनमार्क तक पहुंचने के रास्ते पर निर्भर करता है कि ये तीन स्तंभ किस क्रम में दिखाई देते हैं। इस संबंध में चीन और भारत की तुलना दिलचस्प है।

चीन ने ऐतिहासिक रूप से एक मजबूत राज्य का अनुभव किया है जो नियम लागू करता था और जिसने हाल के दशकों में उच्च विकास हासिल किया है। लेकिन कानून के शासन और लोकतंत्र की अनुपस्थिति से उस विकास की गुणवत्ता कमजोर हो गई है।

इसके विपरीत राज्य की क्षमता और संस्थागत लचीलापन की कमजोरी के बावजूद भारत एक लोकतंत्र बन गया। यह इंगित करता है कि हमें डेनमार्क तक पहुंचने के लिए कहां ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

सिर्फ चुनाव नहीं: लोकतंत्र अलग राय रखने और असहमति जताने की स्वतंत्रता से समृद्ध होता है। हालांकि आम बोलचाल में हम उन्हें मिला देते हैं, लेकिन लोकतंत्र स्वतः स्वतंत्रता की गारंटी नहीं देता है।

भाषण, सभा और धर्म की स्वतंत्रता सहित स्वतंत्रता के उदारवादी शासन के बिना लेकिन नियमित चुनावों और एक प्रतिनिधि सरकार की विशेषता वाला राजनीतिक लोकतंत्र संभव है।

सामाजिक समरसता: सामाजिक समरसता के बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लागू नहीं किया जा सकता। सामाजिक समरसता को एक टर्म में समझा जा सकता है- विविधता में एकता।

विचार यह है कि लोग अपने व्यक्तिगत विश्वासों और रुचियों के बावजूद एक साझा राष्ट्रीय पहचान और सामूहिक राष्ट्रीय हित को स्वीकार करते हैं।

सहमत होना मुश्किल: सामाजिक एकता एक अच्छी सोच है, लेकिन इसे हकीकत में लाना इतना आसान नहीं है। पिछले 75 सालों में हमने खुद इसका अनुभव किया है। इसमें लोगों को अपनी पसंद की जिंदगी जीने और अपने विश्वास रखने की स्वतंत्रता देना जरूरी है।

साथ ही उन्हें एक राष्ट्रीय पहचान और विचारधारा से जुड़ने के लिए प्रेरित करना भी जरूरी है। यह सरकार और लोगों के बीच एक समझौता होता है, जहां सरकार को कहीं लचीला होना होता है और कहीं लोगों को समझौता करना पड़ता है।

सबको विकास का फल: जाहिर सी बात है कि बिना व्यापक समृद्धि के कोई देश ‘डेनमार्क’ नहीं बन सकता। सिर्फ विकास बढ़ने से ही काम नहीं चलेगा। अनुभव बताता है कि अगर सचेत प्रयास नहीं किए जाएंगे तो विकास का लाभ असमान्य तरीके से बड़े लोगों को ही मिलता है,

जिससे असमानता और बढ़ती है। हमें ऐसी नीतियां चाहिए जो विपरीत असर करें – विकास का लाभ ज्यादा से ज्यादा गरीब वर्गों तक पहुंचे।

नौकरियों की पहेली सुलझाएं: असमानता से निपटने के लिए कोई एक या आसान उपाय नहीं है, इसके लिए कई तरफ से प्रयास करने की जरूरत है। एक महत्वपूर्ण क्षेत्र, निश्चित रूप से रोजगार पैदा करना है।

इस साल जब हम दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बने, तो “जनसंख्या लाभांश” की बहुत चर्चा हुई। लेकिन यह लाभांश अपने आप नहीं मिलता। यह तभी मिलेगा जब भारत लाखों युवाओं को नौकरी दे पाएगा जो श्रम बाजार में आ रहे हैं।

भारत का ‘डेनमार्क’ बनने का रास्ता आसान नहीं होगा लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। यह स्पष्ट है कि हमें सिर्फ विकास की मात्रा पर ही नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा।